Sawan 2025: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग हवा में तैरता था, जानिए इस मंदिर के टूटने, लुटने और फिर बनने की कहानी
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थित भगवान शिव का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसका निर्माण और विध्वंस का इतिहास रोचक है। मान्यता है कि सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग (Somnath temple mystery) हवा में तैरता था। मंदिर का संबंध चंद्रदेव से है जिन्होंने श्राप से मुक्ति के लिए शिव की आराधना की।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थापित है सोमनाथ ज्योतिर्लिंग। यह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जहां भगवान शिव एक ज्योति के रूप में प्रकट हुए थे।
इस मंदिर के निर्माण, विध्वंस (Somnath temple destruction) और फिर से बनने की यात्रा बड़ी रोचक है। कहते हैं कि सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग (Somnath Temple Mystery) हवा में तैरता रहता था।
मुगल आक्रांता महमूद गजनी यह देखकर अचंभित रह गया था। सोमनाथ मंदिर की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इस मंदिर का संबंध भगवान चंद्रदेव से है, जिन्होंने अपने ससुर दक्ष प्रजापति से के श्राप से मुक्त होने के लिए यहां पर भगवान भोलेनाथ की आराधना की थी।
चंद्र देव को श्राप से यहां मिली मुक्ति
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष की 27 पुत्रियों में से चंद्रदेव रोहिणी को ज्यादा प्रेम करते थे। जब इस बात की शिकायत दक्ष की अन्य पुत्रियों ने अपने पिता से की, तो उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि उनकी उनका प्रकाश खत्म हो जाए।
इससे दुखी होकर चंद्र देव ब्रह्मा की शरण में पहुंचे और उन्होंने श्राप से मुक्त होने का उपाय पूछा। तब ब्रह्म देव की सलाह पर चंद्रमा ने प्रभास तीर्थ क्षेत्र पहुंचकर भगवान शिव की कठोर तपस्या करने लगे। इसे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अंधकार के श्राप से मुक्ति का आशीर्वाद दिया और अपने मस्तक पर धारण किया।
इसी वजह से इस मंदिर को सोमनाथ के नाम से जाना जाता है। सोम यानी चंद्रमा। सोमनाथ की आधिकारिक वेबसाइट में दी गई जानकारी के अनुसार, चंद्रदेव ने यहां सोने से मंदिर का निर्माण कराया था। इसके बाद रावण ने चांदी से यहां पर मंदिर बनवाया था। भगवान श्री कृष्ण ने चंदन की लकड़ी से सोमनाथ मंदिर का निर्माण कराया था।
8 करोड़ साल पुराना है ज्योतिर्लिंग
सोमनाथ मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट पर इस मंदिर के स्थापित होने की जानकारी दी गई है। इसके अनुसार, श्रीमद् आज जगतगुरु शंकराचार्य वैदिक शोध संस्थान वाराणसी के अध्यक्ष स्वामी गजानन सरस्वती ने स्कंद पुराण के प्रभास खंड की परंपराओं से मंदिर की स्थापना की तिथि बताई है।
उनके अनुसार, मंदिर की स्थापना 7 करोड़ 99 लाख 25 हजार 105 साल पहले हुई थी। इस प्रकार यह मंदिर आदिकाल से लाखों हिंदुओं का प्रेरणा स्रोत माना जाता है।
गृहमंत्री पटेल ने कराया पुनर्निर्माण
आधुनिक मंदिर का पुनर्निर्माण सरदार वल्लभभाई पटेल ने एक संकल्प के साथ कराया है। उन्होंने 13 नवंबर 1947 को सोमनाथ मंदिर के खंडहरों का दौरा किया था। उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 11 में 1951 को इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की थी।
725 में हुआ था पहला हमला
गुजरात सरकार की वेबसाइट के अनुसार, फारसी विद्वान अलबरूनी ने इस मंदिर के बारे में विस्तृत विवरण दिया था, जिसकी वजह से यह मंदिर उसे समय में काफी प्रसिद्ध रहा। पहली बार 725 में सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने मंदिर विध्वंस कराया था।
1025 में गजनी ने तोड़ा था मंदिर
इसके बाद साल 1025 में अफगान के क्रूर आक्रमणकारी मोहम्मद गजनी ने इस मंदिर पर हमला किया था। कहते हैं उस समय इस मंदिर में 300 संगीतकार और 500 नृत्यांगनाएं रहती थीं। गजनी ने अपने हमले में 70 हजार रक्षकों को मारकर शहर और मंदिर पर कब्जा कर लिया। उसने मंदिर की संपत्ति लूटी और मंदिर को तहस-नहस कर दिया था।
1297 में खिलजी ने लूटा मंदिर
इसके बाद 1297 में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने मंदिर को तोड़ा और खाजाना लूटा। इसके बाद गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने 1394 में मंदिर को लूटा और तोड़ा। इसके बाद उसके बेटे अहमदशाह ने 1412 में मंदिर को फिर से तोड़ा और खजाना लूटा।
यह भी पढ़ें- Mahakaleshwar Jyotirlinga: काल का भी यहां नहीं चलता बस, सबसे शक्तिशाली ज्योतिर्लिंग है महाकाल का मंदिर
औरंगजेब ने दो बार तुड़वाया मंदिर
आखिर में मुगल शासक औरंगजेब ने पहले 1665 में मंदिर को तोड़कर संपत्ति लूटी। इसके बाद जब उसने देखा कि फिर से वहां मंदिर बन गया है और हिंदू भगवान शिव की पूजा करने जाने लगे हैं, तो साल 1706 में इस मंदिर पर हमला कर मंदिर को तोड़कर इसकी संपत्ति फिर लूटी थी।
1783 में अहिल्याबाई ने कराया निर्माण
हालांकि, बाद में जब मराठों ने मुगलों के खिलाफ जंग छेड़ी और उनके अधिकार में भारत का बड़ा हिस्सा आया, तब इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। इसके बाद 1950 में देश के गृहमंत्री रहे सरदार वल्लभभाई पटेल ने संकल्प लेकर आधुनिक मंदिर का निर्माण कैलाश महामेरू प्रसाद शैली में कराया।
यह भी पढ़ें- Sawan 2025: सावन में करें इस स्तुति का पाठ, 12 ज्योतिर्लिंगों की कृपा से मिटेंगे सात जन्मों के पाप
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।