Vamana Avatar: क्यों भगवान विष्णु को लेना पड़ा था वामन अवतार? रहस्यमयी है वजह
भगवान विष्णु का वामन अवतार बेहद कल्याणकारी माना गया है। इसका उद्देश्य दैत्यराज बलि को पराजित कर देवताओं को उनका अधिकार लौटाना और धर्म की रक्षा करना था, क्योंकि बलि ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। आइए इस अवतार की संपूर्ण कथा के बारे में जानते हैं, जो इस प्रकार हैं -

Vamana Avatar: वामन अवतार की कथा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Vishnu Vamana Avatar Reason: भगवान विष्णु के दशावतारों में से पांचवां अवतार वामन अवतार है, जिसे सबसे रहस्यमयी अवतारों में से एक माना जाता है। इस अवतार में भगवान विष्णु एक बौने ब्राह्मण बालक के रूप (Vamana Avatar) में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। इस अवतार की वजह सिर्फ एक दैत्य राजा को पराजित करना नहीं था, बल्कि देवताओं के अधिकार को फिर से वापिस करना और धर्म की रक्षा करना था।

राजा बलि का अहंकार
श्रीमद्भागवत पुराण और वामन पुराण के अनुसार, श्री हरि के वामन अवतार लेने की मुख्य वजह दैत्यराज बलि थे। राजा बलि, महान भक्त प्रह्लाद के पौत्र और विरोचन के पुत्र थे। वे बहुत परोपकारी, शक्तिशाली और दानवीर थे। अपनी शक्ति और पुण्य के बल पर उन्होंने देवताओं को पराजित कर दिया था और इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। अपने पुत्रों की ये हालत देखकर देवमाता अदिति ने भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की। उनकी भक्ति से खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेकर देवताओं को उनका अधिकार वापस दिलाएंगे।
तीन पग भूमि
जब राजा बलि नर्मदा नदी के तट पर अंतिम यज्ञ कर रहे थे, तभी भगवान विष्णु ने बौने ब्राह्मण वामन का रूप लिया और उनके पास पहुंचे। वामन ने राजा बलि से केवल तीन पग भूमि दान में मांगी। हालांकि दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने तुरंत पहचान लिया था कि वामन स्वयं भगवान विष्णु हैं। उन्होंने राजा बलि को यह दान देने से रोका और चेतावनी दी कि यह दान उनके लिए विनाशकारी होगा। दानवीर राजा बलि ने गुरु की बात नहीं मानी और तीन पग भूमि दान करने की प्रतिज्ञा ले ली।
भगवान का विराट स्वरूप
प्रतिज्ञा होते ही, वामन ने अपना विराट रूप धारण किया। पहले पग में उन्होंने पूरी पृथ्वी लोक को नाप लिया। दूसरे पग में उन्होंने स्वर्ग लोक सहित पूरे ब्रह्मांड को नाप लिया। जब तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा, तो दान की प्रतिज्ञा के चलते राजा बलि ने अपना वचन निभाने के लिए अपना सिर आगे कर दिया।
भगवान विष्णु उनके इस दान भाव से खुश होकर राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बना दिया। और देवताओं को उनका अधिकार वापस दिलाकर धर्म की स्थापना फिर से की।
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