सबसे बड़ा सुख-दुख और सफलता क्या है… जानना चाहते हैं, तो पढ़ें महात्मा विदुर की ये बातें
विदुर नीति महाभारत के काल में जितनी प्रासांगिक थी उतनी ही आज भी है। यदि उनकी बातों को कोई व्यक्ति जीवन में उतार ले तो वह जीवन के विभिन्न पहलुओं को न सिर्फ समझ सकेगा बल्कि उनमें सफलता भी हासिल कर लेगा। विदुर नीति के अनुसार पांच ऐसी बातें हैं जिन्हें जानकर और समझकर आप भी जीवन में कई उपलब्धियों को हासिल कर सकते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। धृतराष्ट्र और पांडु के भाई विदुर दासी के गर्भ से जन्मे थे। उनको ज्ञान, सच्चाई और कर्तव्यपरायणता के लिए जाना जाता है। राजनीतिक कुशलता और नीतिशास्त्री होने की वजह से विदुर को हस्तिनापुर का प्रधानमंत्री बनाया गया था।
उनके बारे में कहा जाता है कि वह समय से पहले ही आने वाली परिस्थितियों के बारे में जान लेते थे। उन्होंने धृतराष्ट्र को महाभारत के युद्ध से पहले ही परिणामों के बारे में बता दिया था। मगर, दुर्भाग्य से तब पुत्र मोह में फंसे धृतराष्ट्र ने उनकी बात नहीं मानी और वह युद्ध लड़ा गया, जिसमें कौरवों का नाश हो गया।
महात्मा विदुर ने कहा है…
सबसे बड़ा सुख- किसी का कर्ज न होना ही सबसे बड़ा सुख है। महात्मा विदुर कहते हैं कि जो व्यक्ति ऋण के बोझ में दब जाता है, उसे कोई सुख नहीं मिलता। वह हमेशा चिंता में ही जिंदगी बिताता है और हमेशा परेशान ही रहता है। अगर आपने सही समय पर ऋण नहीं चुकाते हैं, तो यह आपकी छवि को खराब करता है
सबसे बड़ी सफलता- मृत्यु के समय किसी बात का पछतावा नहीं होना है। यह सुख उसी व्यक्ति को मिल सकता है, जिसने जीवन भर सत्य और नैतिकता के रास्ते को चुना हो। छोटे से लालच में किए गए अनैतिक कार्य मृत्यु के समय याद आते हैं और जीव के प्राण आसानी से नहीं छूटते हैं।
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सबसे बड़ा दुख- विदुर ने दरिद्रता को सबसे बड़ा दुख बताया है। उनके अनुसार, दरिद्रता किसी को भी मानसिक और शारीरिक, दोनों तरह से कमजोर बना सकती है। व्यक्ति दूसरों पर निर्भर रहने को मजबूर हो जाता है, जिससे उसका आत्म-सम्मान कम हो जाता है। वहीं, व्यक्ति अन्याय और शोषण का शिकार भी होता है।
सबसे बड़ी व्याधि- स्त्री को पाने की चिंता को विदुर ने सबसे बड़ी व्याधि बताया है। वह कहते हैं, जो व्यक्ति काम भावना के अधीन हो जाता है, वो किसी स्त्री को पाने के लिए अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है। ऐसे में उसका सामान्य जीवन तहस नहस हो जाता है।
सबसे बड़ा शोक- विदुर ने अपनी नीति में आत्म-सम्मान बेच देने को सबसे बड़ा शोक बताया है। उनका मानना था कि ऐसा व्यक्ति अंदर ही अंदर घुटता रहता है और समय-समय पर अपमानित होता है। जब कोई व्यक्ति अपना आत्म-सम्मान खो देता है, तो वह गलत रास्ते पर भी जा सकता है और अपने जीवन को बर्बाद कर सकता है।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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