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    Gurubani: गुरबाणी से मिलती है जीवन को नई राह, जरूर जानें ये बातें

    गुरबाणी ज्ञान का अथाह सागर है जो मानवता को संबोधित है। यह नाम सिमरन श्रम और बांटकर खाने के महत्व को उजागर करती है। गुरबाणी सेवा को एक नया अर्थ देती है नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाती है और समान अधिकारों का प्रतिनिधित्व करती है। यह पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा देती है और सिखाती है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कैसे करें।

    By Jagran News Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 18 Aug 2025 12:31 PM (IST)
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    Gurubani: गुरबाणी से सीखें ये प्रमुख बातें।

    डा. गुंजनजोत कौर प्रमुख, (श्री गुरुग्रंथ साहिब अध्ययन विभाग, पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला)। ‘गुरबाणी इस जग महि चानण, करमि वसे मनि आए’ अर्थात गुरबाणी ज्ञान का अथाह सागर है। सभी बाणीकारों ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब के सैद्धांतिक उपदेशों में अपने ऐतिहासिक आचरण व कर्मों के माध्यम से एक सकारात्मक एवं रचनात्मक संस्कृति के निर्माण का आधार प्रदान किया। उन्होंने संपूर्ण जीवनशैली को एक अनूठा रूप दिया है। सभी बाणीकार उच्च आध्यात्मिकता से जुड़े हैं।

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    श्री गुरु ग्रंथ साहिब न केवल सिखों का धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि इसका संदेश संपूर्ण मानवता को संबोधित है। गुरबाणी की आध्यात्मिकता के विभिन्न रंगों की पहचान इस प्रकार है -

    नाम सिमरन/एक शाश्वत ईश्वर में विश्वास: गुरुओं ने गुरबाणी में आध्यात्मिकता के सिद्धांतों के माध्यम से मानवीय चिंताओं की पहचान की और आत्मा को उसकी वास्तविकता/सत्य का बोध कराया। एक शाश्वत ईश्वर और नाम सिमरन में विश्वास पर बल देते हुए उन्होंने सभी कर्मकांड का त्याग किया और कहा कि वह ‘सृष्टि का निर्माता है। पालनहार, उद्धारकर्ता, निर्गुण, सगुण रूप वाला है।

    निर्भय, द्वेष-मुक्त एवं सर्वव्यापी है, फिर भी एक है।’गुरबाणी एक शाश्वत ईश्वर में विश्वास के साथ-साथ नाम सिमरन पर बल देती है। गुरबाणी का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को नाम जपने के लिए प्रोत्साहित करना है।

    श्रम करना और बांटकर खाना: सिख धर्म के तीन मूल सिद्धांतों में नाम जप के अलावा किरत (श्रम) करना और बांटकर खाना, मानव अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दे हैं। इनमें श्रम को सबसे ऊपर रखा गया है। सिख धर्म में श्रम सांसारिक कार्य नहीं, बल्कि धार्मिक कार्य है।

    गुरु साहिब ने स्वयं शारीरिक श्रम को प्राथमिकता दी और सिख समुदाय के लिए उच्च-शुद्धता वाले श्रम-जीवन जीने का मूल आदर्श प्रस्तुत किया।

    सेवा: यद्यपि विश्व के प्रमुख धर्मों में सेवा का सिद्धांत किसी न किसी रूप में मिलता है, लेकिन मध्यकाल से पहले सेवा का कोई रचनात्मक रूप नहीं मिलता। सिख धर्म के इस सिद्धांत को अपनाने से पहले, सेवा करने वालों को घृणा व तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था लेकिन गुरमत ने ऊंच-नीच का भेद मिटाकर सेवा को एक नया अर्थ दिया और सभी को समानता का दर्जा दिया।

    दुनिया के प्रमुख धर्मों में, सिख धर्म ने सेवा को जो स्थान दिया है, वह बेजोड़ है। गुरबाणी में लिखा है, ‘विच दुनिया सेव कमाइए, ता दरगाह बैसणु पाइए।’

    नैतिक मूल्य: गुरबाणी ने सामाजिक बुराइयों के निवारण हेतु नैतिक व आचार-विचार के मूल्यों का भी पाठ पढ़ाया है। वर्तमान जीवन से उच्च नैतिक मूल्यों का हनन हो रहा है, परन्तु गुरबाणी की प्रेरणा से अनैतिकता व सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध जन संघर्ष छेड़कर एक स्वस्थ व सभ्य समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा।

    समान अधिकारों का प्रतिनिधित्व: समाज में प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से मृत्यु तक जीवन जीने के लिए मूल अधिकारों व पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति को मानवाधिकार कहा जा सकता है क्योंकि राज्य में नागरिकों द्वारा मानवाधिकारों का आनंद तभी लिया जा सकता है, जब उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हो। अतः गुरबाणी के अनुसार, स्वतंत्र व समान जीवन के बिना शांति संभव नहीं है।

    पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा: आधुनिक युग के ज्वलंत मुद्दों का समाधान भी गुरबाणी चिंतन में है। वर्तमान में ज्ञान-विज्ञान की प्रत्येक प्रणाली में धर्म या ईश्वरीय सत्ता के स्थान पर मानव स्वार्थ केंद्र बिंदु बन गया है जिससे प्राकृतिक संसाधनों का आंधाधुंध दोहन हो रहा है।

    गुरबाणी ईश्वर की ओर से प्रदत्त संसाधनों के इस महान उपहार को संरक्षित करते हुए इनका उपयोग करना सिखाती है।

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