Hartalika Teej 2025: प्रेम व समर्पण का पर्व है हरितालिका तीज
हरितालिका तीज एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है जिसे महिलाएं मनाती हैं। यह व्रत देवी पार्वती और भगवान शिव के मिलन की याद दिलाता है जिसमें पार्वती जी ने शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। डा. चिन्मय पण्ड्या के अनुसार यह पर्व वैवाहिक संबंधों की स्थिरता और स्त्री की आस्था का प्रतीक है।
डा. चिन्मय पण्ड्या प्रतिकुलपति, (देवसंस्कृति विश्वविद्यालय व आध्यात्मिक विचारक)। हिंदू धर्म में पर्वों और त्योहारों की शृंखला में महत्वपूर्ण पर्व है हरितालिका तीज, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। यह पर्व यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम केवल भावना नहीं, बल्कि एक तपस्या है। हरितालिका तीज स्त्री के त्याग, शक्ति और श्रद्धा को उजागर करता है और उसे एक नई ऊंचाई प्रदान करता है।
देवी पार्वती ने किया था ये व्रत
धार्मिक मान्यता है कि यह पर्व देवी पार्वती और भगवान शिव की उस पौराणिक कथा पर आधारित है, जिसमें पार्वती जी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इस व्रत को उनकी सहेलियों ने उनका हरण करके, घने जंगल में ले जाकर करवाया था, इसलिए इसे हरतालिका तीज कहा जाता है।
देवी पार्वती की निष्ठा से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। उसी की स्मृति में हरितालिका तीज का व्रत रखा जाता है।
आस्था का प्रतीक
हरितालिका तीज एक धार्मिक व्रत के साथ साथ यह समाज में वैवाहिक संबंधों की स्थिरता और स्त्री की आस्था का भी प्रतीक है। यह पर्व नारी की सहनशक्ति, प्रेम, समर्पण और आत्मबल को प्रकट करता है। जब आज के समय में रिश्तों में दरारें और अस्थिरता बढ़ रही हैं, तब ऐसे पर्व हमें फिर से संस्कारों और मूल्यों की ओर लौटने की प्रेरणा देते हैं।
भारतीय संस्कृति
हरितालिका तीज भारतीय नारी के धैर्य, प्रेम और तपस्या की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में सच्चे प्रेम और संबंधों की नींव संयम, श्रद्धा और समर्पण पर टिकी होती है। साथ ही भारतीय संस्कृति हमें आस्था, आचरण और व्यवहार में भी जीवित रहने की प्रेरणा देती है।
भारत की यही धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं हैं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को परिवर्तन के बावजूद अखंड, निरंतर और उज्ज्वल बनाए रखा है।
युग बदलते गए, समाज में अनेक बाहरी बदलाव आए, पर हिंदू धर्म और इसकी परंपराएं समय-समय पर आवश्यक परिमार्जन के साथ स्वयं को प्रासंगिक बनाए रखने में सफल रहीं। यही कारण है कि इसे सनातन धर्म कहा गया है, यानी ऐसा धर्म जो अनादि, शाश्वत और अटूट है।
आत्मिक शुद्धि और जीवन निर्माण
गायत्री परिवार के संस्थापिका वंदनीया माता भगवती देवी शर्मा जी अपने प्रवचनों में कहती रही हैं कि हर पर्व का उद्देश्य केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और जीवन निर्माण है। हरितालिका तीज जैसे व्रत नारी शक्ति को अपनी आत्म-तपस्या, श्रद्धा और साधना के बल पर ईश्वर से एकात्मता की अनुभूति कराते हैं।
धार्मिक अनुष्ठान और आध्यात्मिक साधना
हरितालिका तीज धार्मिक अनुष्ठान और आध्यात्मिक साधना भी है, इसमें स्त्री अपने पति के दीर्घायु जीवन के लिए प्रार्थना करती है और स्वयं के आंतरिक उत्थान और आत्मबल की अनुभूति भी करती है। यह व्रत नारी को बताता है कि संयम, त्याग और तपस्या से जीवन को नई दिशा दी जा सकती है।
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