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    Sawan 2025: सृष्टि के कण-कण में देवों के देव महादेव हैं समाहित

    आप केवल नाम या रूप नहीं हैं आप वह प्रकाशमान चेतना हैं जो शिव तत्व है। जो संपूर्ण ब्रह्मांड को समाहित करता है। वह सत्ता जिसमें हर जीवन समाया है वह रहस्यमय शिव तत्व है। यह ब्रह्मांड प्रतिदिन उत्सव मना रहा है। यह आनंद है। समाधि को अधिकतर शिव सायुज्य अथवा शिव की उपस्थिति के रूप में जाना जाता है।

    By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 04 Aug 2025 01:14 PM (IST)
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    Sawan 2025: देवों के देव महादेव की महिमा

    श्री श्री रवि शंकर (आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु)। यह संपूर्ण सृष्टि शिव की लीला है। शिव अस्तित्व की एकमात्र शाश्वत अवस्था हैं! शिव वह निष्कलंक सरलता हैं, जिसमें किसी नियंत्रण का बंधन नहीं होता।

    क्या शिव कोई व्यक्ति हैं? क्या उनका कोई रूप है? क्या वह कहीं बैठे हैं? नहीं, शिव संपूर्ण ब्रह्मांड हैं। शिव तत्व वह है, जहां से सब कुछ आया है, जिसमें सब कुछ स्थित है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है। इस जगत में कुछ भी शिव तत्व से बाहर नहीं है। शिव ही संपूर्ण सृष्टि हैं।

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    शिव तत्व चेतन है। चैतन्य कैसा है? यह न तो प्रकाश है, न ही कोई वस्तु। यह चिदाकाश स्वरूप है, आकाशवत। इसलिए चित्रों में शिव सदा नीलवर्ण में रंगे जाते हैं। इसका अर्थ है आकाश की तरह नीले। उन्होंने सिर पर चंद्रमा को धारण किया है। सभी दिशाएं मानो उनकी जटाएं हैं।

    सब कुछ उनके भीतर है। कुछ भी उनसे बचा नहीं है। शिव का अर्थ है, चित्त की उस स्थिति को जानना, जो समय से परे है। वह चतुर्थ अवस्था, जो जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति नहीं है, उसे ही शिवतत्व कहा गया है। जब आप ध्यान में होते हैं, तो आप किस अवस्था में होते हैं?

    क्या आप जाग रहे होते हैं? आप सो नहीं रहे हैं और आप स्वप्न नहीं देख रहे हैं, लेकिन कुछ सुखद अनुभव में आ रहा है। वह चौथी अवस्था शिव अवस्था शिव तत्व कहलाती है। शिव निर्गुण-निराकार दिव्यता है। वही द्रष्टा है, दृष्टि है और दृश्य भी। शिव वही चेतना है, जो सृष्टि के कण-कण में है, जो अस्तित्व का सार है, जो लक्ष्य भी है और पथ भी।

    शिव इस समस्त सृष्टि में व्याप्त हैं। उनका कोई जन्म नहीं, कोई अंत नहीं। वे अनादि, अनंत हैं। वे ही वह आनंदस्वरूप चेतना हैं, जिन्हें तप और योग के माध्यम से जाना जा सकता है। जब यह अनुभव प्रकट होता है, तो आत्मा से उद्घोष होता है-शिवोऽहम्, अर्थात “मैं शिव हूं”।

    वह आत्मा है और आप वही हैं। हमें इसे जानना होगा। यही एकमात्र बात है, जिसे जानना है। इसे जानने के बाद आप कहते हैं- 'शिवोऽहम् शिवोऽहम्।' एक व्यक्ति जो पहले 'अहम्-अहम्' अर्थात 'मैं-मैं कहता है, वह भीतर जाने के बाद पिघलता है।

    तब वह अहम् कहना बंद कर देता है और 'शिवोऽहम्' मैं शिव हूं, कहता है। इसका अनुभव करने के बाद भी आपको शांत बैठना चाहिए। अंत में केवल यह भाव शेष रहता है-शिव: केवलोऽहम्, अर्थात् केवल “शिव ही हैं, और कुछ नहीं।”

    पका वास्तविक स्वरूप शिव है और शिव ही शांति हैं, अनंतता हैं, सौंदर्य हैं और अद्वैत सत्ता हैं। समस्त सृष्टि- सूर्य, चंद्रमा, तारे, वायु, बादल, जल, पृथ्वी एक ही पदार्थ से बनी है। उसी एक पदार्थ को शिव कहा जाता है।

    समाधि को अधिकतर शिव सायुज्य अथवा शिव की उपस्थिति के रूप में जाना जाता है। इस अवधारणा को शब्दों में व्यक्त करना अत्यंत कठिन है, क्योंकि इसे केवल महसूस किया जा सकता है। शब्द केवल इसे करीब ला सकते हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर सकते।

    संत इसे कोटि कल्प विश्राम कहते हैं, अर्थात एक पल में अरबों वर्षों का घनीभूत विश्राम। यह सजगता के साथ गहन विश्राम की ऐसी स्थिति है, जो सभी पहचानों से मुक्ति दिलाती है। जब मन परमात्मा के सान्निध्य में विश्राम करता है, उसे वास्तविक विश्राम का अनुभव होता है।

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    आपको क्या लगता है कि आप क्या हैं? आप केवल एक नाम नहीं हैं, मात्र एक रूप नहीं हैं। आप वह प्रकाशमान चेतना हैं, जो शिव तत्व है। वह जो संपूर्ण ब्रह्मांड को समाहित करता है। वह सत्ता, जिसमें हर जीवन समाया है, वह रहस्यमय शिव तत्व है।

    यह ब्रह्मांड संघर्ष या पीड़ा नहीं है, यह प्रतिदिन उत्सव मना रहा है। यह आनंद है। जो इसे नहीं जानता, वह पीड़ित है, उदास या दुखी है। जो जानता है कि यह सारी सृष्टि एक नृत्य है, वह आनंद पाता है। यह सत्य शिव तत्व है।