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    Radha Ashtami 2025: किस दिन मनाई जाएगी राधा अष्टमी? यहां जानें धार्मिक महत्व

    राधा जी आनंदघन ईश्वर के मंगलमय आनंदभाव को रसरूप में उद्घाटित करने के लिए लीलापूर्वक अवतरित हुई हैं। प्रेमास्पद श्रीकृष्ण के लिए सर्वस्व समर्पण के बाद कुछ भी प्रतिदान न चाहकर वे प्रेम की लोकोत्तर परिभाषा रचती हैं। उनका यह औदात्य उन्हें विराट बनाता है। 31 अगस्त को राधा अष्टमी है।

    By Jagran News Edited By: Pravin Kumar Updated: Mon, 25 Aug 2025 12:49 PM (IST)
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    Radha Ashtami 2025: राधा अष्टमी की महत्वपूर्ण बातें

    आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण (पीठाधीश्वर, सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास, अयोध्या)। भारत की आध्यात्मिक भूमि में जो एक शब्द-रस की चिरंतन धारा बनकर प्रवाहित है, वह है ‘राधा’। क्या वेद, क्या पुराण, क्या आगम, क्या स्मृतियां, सर्वत्र राधा नाम का अमृत सीझा हुआ है। कृष्णोपासना की विराट परंपरा भी इसी राधा शब्द की उपासना में स्वयं को चरितार्थ करती है।

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    वृंदावनेश्वरी, रसिकेश्वरी और रासेश्वरी के विरुद से विख्यात पराशक्ति श्रीराधा समर्पण, अनुराग एवं तत्सुखसुखित्व की परम प्रमाण हैं। वे परमात्मा श्रीकृष्ण से सर्वथा अभिन्न हैं। श्रीकृष्ण का सौंदर्य-माधुर्यादि सब श्रीराधाजी की ही छाया है- जा तन की छाईं परे स्याम हरित दुति होइ। उपासकों को यह रहस्य विदित है, परंतु श्रीकृष्ण के साथ श्रीराधा को लेकर सामान्य जन प्रायः कुतूहल से भरे रहते हैं।

    नित्य गोलोक धाम में भगवान श्रीकृष्ण के साथ एकरस विहार करने वाली श्रीराधा ब्रह्मवैवर्तपुराण में स्वयं अपना परिचय देती हुई कहती हैं, ‘श्रीदामा के शाप के कारण श्रीहरि से मेरा सौ वर्षों का वियोग हुआ। उसी शाप को चरितार्थ करने हेतु मेरा प्राकट्य भूतल पर हुआ। माता कलावती द्वारा श्रीकृष्ण के अनन्य सेवक श्रीवृषभानु की मानसपुत्री होकर मैं प्रकट हुई हूं।’

     श्रीराधा जी का जन्म-कर्मादि अप्राकृत एवं दिव्य हैं। वे अयोनिजा (जो गर्भ से उत्पन्न न हो) हैं, जो आनंदघन ईश्वर के मंगलमय आनंदभाव को जगत में रसरूप में उद्घाटित करने के लिए लीलापूर्वक अवतरित हुई हैं। शाप के कारण श्रीकृष्ण के साथ उनकी विरह-लीला का विशेष प्रकाश हुआ है।

     पुराण कहते हैं कि ‘रा’ का अर्थ है रास और ‘धा’ का अर्थ है धारण। रासोत्सव में परमात्मा श्रीकृष्ण को आनंद की अवस्था में आलिंगनादि के द्वारा उन्हें धारण करने से राधा शब्द की क्रियसिद्ध होती है: रा च रासे च भवनाद्धा एव धारणादहो। हरेरालिंगनाधारात्तेन राधा प्रकीर्त्तिता॥

    परमानंद राशि और साक्षात कृष्णस्वरूपा राधा प्रेम की अलौकिक व्यंजना बनकर भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की पुंजीभूता विभूति के रूप में सर्वत्र वंदिता हैं। शास्त्र कहते हैं- ‘आदौ राधां समुच्चार्य पश्चात कृष्णं पश्चात्कृष्णं विदुर्ब्बुधाः।’ (विद्वज्जन पहले श्रीराधा का नाम लेकर बाद में श्रीकृष्ण का नाम लेते हैं।) प्रेम के विश्वव्यापी प्रसार में श्रीराधा एक रश्मिरेखा हैं।

    प्रेमास्पद श्रीकृष्ण के लिए सर्वस्व समर्पण के बाद कुछ भी प्रतिदान न चाहकर वे प्रेम की लोकोत्तर परिभाषा रचती हैं। उनका यह औदात्य उन्हें विराट बनाता है। बरसाने से लेकर संपूर्ण ब्रजमंडल और विश्वभर में श्रीराधा का वैभव वंदनीय है।

    ज्ञानियों में शिरोमणि उद्धव जी भी राधा जी के चरणों की धूल पाने को लालायित हैं, तो परमहंस-संहिता श्रीमद्भागवत के अद्वितीय प्रवक्ता श्रीशुकदेव को श्रीराधा जी नाम लेने से ही छह महीने की भावसमाधि लग जाती है: श्रीराधानाममात्रेण मूर्च्छा षाण्मासिकी भवेत्। इसीलिए सात दिनों में ही राजा परीक्षित की मुक्ति का विचार कर उन्होंने भागवत सप्ताह कथा में श्रीराधा जी का प्रत्यक्ष नामोल्लेख नहीं किया, ऐसा विद्वानों का मत है। 

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