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    Sawan 2025: आत्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है सावन, धार्मिक कार्यों का मिलता है कई गुना फल

    सावन समाप्ति में अब कुछ कुछ ही समय बचा है। भोलेनाथ की इस प्रिय अवधि में भक्त उनकी विधिवत रूप से पूजा-अर्चना करते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। कई साधक सावन सोमवार का भी व्रत करते हैं। यह पूरी अवधि भोलेनाथ की कृपा प्राप्ति के लिए बहुत ही खास मानी गई है। चलिए इस विषय पर प्रसिद्ध साध्वी ऋतंभरा जी के विचार जानते हैं।

    By Jagran News Edited By: Suman Saini Updated: Fri, 01 Aug 2025 11:05 AM (IST)
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    Sawan 2025 जानिए सावन माह का महत्व।

    साध्वी ऋतंभरा, वात्सल्य ग्राम वृंदावन। सावन में किए गए कार्यों का साधक को कई गुना फल प्राप्त होता है। यह अवधि न केवल महादेव की कृपा प्राप्ति के लिए खास है, बल्कि आत्म-शुद्धि, भक्ति, तप और मन की शांति के लिए भी सावन का विशेष महत्व माना गया है।

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    जानिए पौराणिक कथा

    पौराणिक मान्यता है कि मंथन' के परिणामस्वरूप अमृत, श्रावण मास में हुए 'समुद्र लक्ष्मीजी, कौस्तुभमणि, पारिजात वृक्ष, कामधेनु, ऐरावत हाथी, उच्चैःश्रवा, धन्वंतरि, चंद्रमा, अप्सराएं, शंख, हलाहल विष, वरुणी और ज्येष्ठा प्रकट हुए थे। इन सबका तो देवताओं में वितरण हो गया परंतु क्षण भर में प्राणों का हरण कर लेने वाले हलाहल विष को कौन ग्रहण करेगा? यह गंभीर विषय था।

    किसका प्रतीक है श्रावण

    विष के प्रकट होते ही सारी सृष्टि भयाक्रांत हो उठी। कोई तैयार नहीं हो सका तो भगवान शंकर ने सबकी रक्षा को विष पान किया। उसे अपने कंठ में ही रोक लिया, तब से ही वह नीलकंठ हैं। इस घटना के कारण भी श्रावण माह शिव भक्ति के लिए विशेष माना जाता है।

    श्रावण मास में कई लोग उपवास रखते हैं। यह उपवास भक्ति, आत्म-शुद्धि जाते हैं। श्रावण भक्ति, तप और और मन की शांति के लिए किए पवित्रता का प्रतीक है।

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    इसलिए खास है श्रावण

    श्रावण भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने, आत्मिक उन्नति और पारिवारिक सुख-शांति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दौरान किए गए धार्मिक कार्यों का फल कई गुणा अधिक मिलता है। श्रावण में केवल शिवजी की आराधना से ही बात नहीं बनेगी।

    हमें शिवत्व को भी अपने जीवन में धारण करना होगा। जैसे उन्होंने हलाहल विष का पान करके परम त्याग का एक उदाहरण प्रस्तुत किया था, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में कड़वे अनुभवों को अपने कंठ में ही रोककर हृदय तक जाने से बचाना चाहिए। इससे हमारा हृदय द्वेष की अग्नि से दग्ध होने से बच जाएगा।

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