Sawan 2025: केवल पूजा-पाठ और व्रत ही नहीं है भगवान शिव की वास्तविक भक्ति, ये बातें भी हैं जरूरी
सावन का महीना अपनी समाप्ति कि ओर बढ़ रहा है। इस माह में भक्त सावन सोमवार का व्रत करते हैं और भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करते हैं। लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भक्ति केवल पूजा-पाठ और व्रत करने तक ही सीमित नहीं हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं इस विषय में।
डॉ. चिन्मय पण्ड्या देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति। भगवान शिव की छवि हमारे मन में एक तपस्वी, भोलेनाथ और त्रिनेत्रधारी के रूप में अंकित है। शिव केवल एक देवता ही नहीं है, वरन् एक चेतना भी हैं। वह चेतना जो सृष्टि के हर तत्व में समाहित है। वे संहार के देवता हैं, परंतु उनका यह संहार केवल बाह्य का नहीं, बल्कि हमारे भीतर बसे दुर्गुणों का होना चाहिए।
तभी पूजा-अर्चना होगी फलित
श्रावण में जब भगवान शिव पूजा, अर्चना कर रहें हैं, तब आत्मावलोकन करें और उनके चरणों में अपने दुर्गुणों को समर्पित करें। तभी हमारी पूजा अर्चना फलित होगी। आज हम जिस समाज में जी रहे हैं, वह बाहरी स्वच्छता और विकास की वकालत का पक्षधर है, लेकिन भीतर की गंदगी जैसे क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ और अहंकार, ज्यों की त्यों बनी रहती है। यही दुर्गुण मनुष्य को सबसे अधिक कलुषित करते हैं। जब हम इन्हें पकड़कर रखते हैं, तो वे हमारी सोच और समाज को भी दूषित करते हैं।
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बनें सात्विक विचार वाले सच्चे मानव
सावन के महीने में जब हम भगवान शिव की विशेष आराधना करते हैं, तब हमें उनसे यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि जैसे उन्होंने समुद्र मंथन के समय विष को पीकर सृष्टि को बचाया, वैसे ही हम भी अपने भीतर के उन्हें शिव को अर्पित करें जिससे सात्विक विचार वाले सच्चे मानव बन सकें तो यह सावन माह की सबसे श्रेष्ठ भक्ति बन सकती है।
स्वयं को बदलना भी है जरूरी
अक्सर भक्ति को हम केवल पूजा-पाठ और व्रतों तक सीमित कर देते हैं, लेकिन शिव की भक्ति का वास्तविक अर्थ स्वयं को बदलना है। उनकी तीसरी आंख केवल प्रतीक नहीं, वह जागरूकता है, यह जानने की शक्ति कि हमारे भीतर क्या सही है और क्या गलत?
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