Sawan 2025: आत्मिक उत्थान का मार्ग खोलती है सावन में भगवान शिव की आराधना
सावन की समाप्ति में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। इस माह को शिव जी की कृपा प्राप्ति के लिए बहुत ही उत्तम माना गया है। भक्त सावन में व्रत करते हैं और कई नियमों का पालन करते हैं ताकि महादेव की कृपा उन पर बनी रहे। चलिए जानते हैं सावन माह से जुड़ी और भी कई खास बातें जो इसे अन्य सभी महीनों से अलग बनाती हैं।
स्वामी कैलाशानंद गिरि निरंजन पीठाधीश्वर, आचार्य महामंडलेश्वर। सावन शिव आराधना का सबसे पवित्र महीना है। इस मास में प्रकृति, भक्ति और आध्यात्म का अनुपम संगम देखने को मिलता है। भक्तजन गंगा से जल भरकर शिवालयों में पहुंचते हैं और वह जल शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।
शिव सनातन हैं। वह न आदि हैं, न अंत हैं। वे ही सृष्टि के मूल कारण हैं। ब्रह्मा को रचयिता, विष्णु को पालनकर्ता और शिव को संहारक कहा गया है, लेकिन स्कंद पुराण में वर्णन है कि ये तीनों ही माहेश्वर अंश से उत्पन्न हुए हैं। अर्थात शिव ही मूल तत्व हैं।
क्यों कहा जाता है अनादि-अनंत
शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है शिवलिंग, जो स्वयं ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है। शिव की जलहरी समस्त सृष्टि को समाहित करती है। वे ही साकार हैं, वे ही निराकार। विद्या व अविद्या, प्रकट और अप्रकट, दोनों ही शक्तियां शिव से ही प्रकट होती हैं। जब सृष्टि में अंधकार हात गया था, जब जल ही जल था, तब भी शिव ही विद्यमान थे। यही कारण है कि उन्हें अनादि और अनंत कहा गया है।
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सावन में शिव पूजा का माहात्म्य
सावन में शिव पूजा का विशेष माहात्म्य इसलिए है, क्योंकि यह मास भक्तों को शिव की सान्निध्य प्राप्ति का अवसर देता है। जलाभिषेक, व्रत और रुद्राभिषेक के माध्यम से भक्त अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। श्रावण शिव की उपासना से स्वयं को अनुशासित कर इस जीवन और प्रकृति के आनंद को अनुभव करने की प्रेरणा देता है।
मिलते हैं ये लाभ
सावन में की गई शिव आराधना न केवल सांसारिक कल्याण देती है, बल्कि आत्मिक उत्थान का मार्ग भी खोलती है। शिव में ही संसार है और शिव ही मोक्ष का द्वार हैं। इसलिए सावन, श्रद्धा और शिव का समागम जीवन को दिव्यता से भर देता है।
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