Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    परम सत्य नारायण कौन हैं और उनका अनुभव कैसे करें?

    By Jagran NewsEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Mon, 15 Dec 2025 05:08 PM (IST)

    श्रीमद्भागवत महापुराण में जीवन-दर्शन व प्रबंधन के असंख्य सूत्र, कथा और दृष्टांतों के रूप में गुंथे हुए हैं, जिनका अनुशीलन मानव जीवन को दिशा प्रदान करत ...और पढ़ें

    Hero Image

    जीवन प्रबंधन।

    Zodiac Wheel

    वार्षिक राशिफल 2026

    जानें आपकी राशि के लिए कैसा रहेगा आने वाला नया साल।

    अभी पढ़ें

    आचार्य नारायण दास, (श्रीमद्भागवत मर्मज्ञ, आध्यात्मिक गुरु)। एक प्रसंग में विदेहराज निमि के दरबार में नौ विरक्त योगेश्वर संन्यासियों का मंगलागमन हुआ। राजा ने विनम्रतापूर्वक उनके समक्ष अनेक जिज्ञासाएं प्रस्तुत कीं। पूर्व में चार प्रश्नों के समाधान हो चुके हैं, अब उन्होंने अपनी पांचवीं जिज्ञासा अभिव्यक्त की

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नारायणाभिधानस्य ब्रह्मणः परमात्मनः।
    निष्ठामर्हथ नो वक्तुं यूयं हि ब्रह्मवित्तमः।।

    हे महापुरुषो! जिन परब्रह्म परमात्मा को धर्मशास्त्रों में नारायण कहा गया है, कृपया उनके स्वरूप का उपदेश दीजिए। राजा निमि का यह प्रश्न केवल उनकी निजी जिज्ञासा नहीं, बल्कि प्रत्येक साधक के स्वात्मानुसंधान का प्रतीक है, जो जीवन के मूलतत्व को समझना चाहता है। सभा में विद्यमान नौ योगेश्वरों में इस बार मुनिवर पिप्पलायन महाभाग ने अत्यंत दार्शनिक भाव में उपदेशित किया-

    शक्ति से स्थिर

    हे राजन्! यह संपूर्ण सृष्टि जिसकी सत्ता से समुत्पन्न होती है, जिसकी शक्ति से स्थिर रहती है और अंत में जिसमें विलीन हो जाती है, वही परम सत्य नारायण हैं। वे न तो किसी कारण से उत्पन्न हैं, न ही किसी पर निर्भर हैं। वे ही जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति-इन तीनों अवस्थाओं में साक्षी रूप से विद्यमान रहते हैं, तथा समाधि में भी एकरस और अचल बने रहते हैं। शरीर, इंद्रिय, प्राण और अंत:करण उसी चेतना से संजीवित होकर अपने-अपने कार्य करते हैं।

    यहां पिप्पलायन मुनिवर्य यह स्पष्ट करते हैं कि नारायण कोई सीमित देवस्वरूप नहीं, अपितु सृष्टि के कार्य-कारण दोनों हैं। जैसे कुंभकार मिट्टी से घट बनाता है, तो मिट्टी उपादान कारण है और कुंभकार निमित्त कारण, वैसे ही भगवान नारायण सृष्टि के निर्माण और संचालन दोनों के कारण हैं। वे ही मनुष्य की तीनों अवस्थाओं में केवल द्रष्टा हैं, जाग्रत में क्रियाशीलता, स्वप्न में अनुभव और सुषुप्ति में शांति और सबके साक्षी हैं। वह शाश्वत और नित्य हैं। नारायण ही चेतना के प्रमुख स्रोत हैं। शरीर, इन्द्रियां, प्राण और मन सभी उनकी सत्ता से ही कार्यरत हैं। जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश संपूर्ण जगत को आलोकित करता है, उसी प्रकार नारायण की चेतना से संपूर्ण जीवन गतिशील होता है। अतः नारायण केवल नाम नहीं, अपितु वह परम सत्य, नित्य साक्षी और सृष्टि का मूलाधार हैं।

    सत्य और असत्य

    भागवत का यह दार्शनिक निष्कर्ष अत्यंत गंभीर और सारगर्भित है। सत्य और असत्य, दृश्य और अदृश्य, सब कुछ ब्रह्मस्वरूप हैं। "सर्व खल्विदं ब्रह्म" अथवा "एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति" या वासुदेवः सर्वम्" । ब्रह्म न जन्म लेता है, न नष्ट होता है। वह न बढ़ता है, न घटता है। वह देश, काल और वस्तु से परे, अविनाशी, सर्वव्यापक और ज्ञानस्वरूप है। जैसे एक ही प्राण भिन्न-भिन्न स्थलों में विभिन्न नामों से पहचाना जाता है, वैसे ही ज्ञान एक होते हुए भी इंद्रियों के माध्यम से अनेकता का भ्रम उत्पन्न करता है। यह भ्रम ही संसार है, और उसका विलुप्त हो जाना ही आत्मबोध है।श्रीमद्भागवतमहापुराण के अनुसार, नारायण का अनुभव किसी सीमित रूप में नहीं, अपितु सर्वव्याप्त चेतना के रूप में किया जाए। वही सृष्टि के मूल में हैं, वही उसके संचालनकर्ता हैं, और अंततः वही उसमें नित्य विद्यमान रहते हैं। उनके बिना न तो जीवन संभव है, न ज्ञान, न ही अस्तित्व।

    यह भी पढ़ें: भगवान राम से किसी को मिला ज्ञान और किसी को भक्ति, पढ़ें रामायण से जुड़ी प्रमुख बातें

    यह भी पढ़ें:  अपने विचारों को कैसे बदलें और बनें अधिक जागरूक?