नेपाल की Gen Z क्रांति: भ्रष्टाचार से जंग... पर वोटिंग में ही झोल; App से बनेगा लोकतंत्र?
नेपाल में भ्रष्टाचार-रहित लोकतांत्रिक सिस्टम बनाने के लिए युवाओं का टेक-ड्रिवन मूवमेंट चर्चा में है। लेकिन Discord जैसे ऐप पर आंतरिक वोटिंग की वजह से ये आंदोलन विवादों में आ गया है। विदेशी यूजर्स भी वोट डाल पा रहे हैं जिससे प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठे हैं। नेताओं के चयन को लेकर भी ग्रुप में गहरे मतभेद सामने आए हैं।

टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। ईमानदार इरादों के बावजूद भ्रष्टाचार-रहित लोकतांत्रिक सिस्टम बनाने के लिए नेपाल का टेक-ड्रिवन यूथ प्रोटेस्ट कई खामियों से भरा हुआ है। इसके ऑर्गेनाइजर्स ने आपसी सहमति बनाने के लिए Discord चैट प्लेटफॉर्म पर इंटरनल वोटिंग का इस्तेमाल किया। लेकिन नेपाल के Gen Z द्वारा ऐप पर पोल चलाने की यह व्यवस्था कमजोरियों से भरी है, क्योंकि इसमें गैर-नेपाली नागरिक भी अहम मुद्दों पर वोट डाल सकते हैं, जिसमें पसंदीदा प्रतिनिधि चुनना भी शामिल है। इसकी जानकारी इंडिया टुडे ने अपनी एक रिपोर्ट में दी है।
इस खामी को दिखाने के लिए India Today की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम ने 'Youth Against Corruption' चैनल पर कई बार वोट डाला, जिसमें 1,30,000 से ज्यादा मेंबर जुड़े हुए हैं। ये वोट नेपाल से बाहर से और बिना किसी वैध नेपाली क्रेडेंशियल्स के डाले गए। ताकि उनकी भागीदारी नतीजों को प्रभावित न करे, बाद में उन्हीं पोल्स से 'unvote' कर दिया और अंतिम टैली पर 'जीरो' योगदान रहा। लेकिन, ये शक पैदा करता है कि संदिग्ध विदेशी एक्टर्स ने इसी कमजोरी का फायदा उठाकर नेपाली Gen Z मूवमेंट में दखल दी होगी।
इंडिया टुडे की टीम ने एक डेमो वीडियो में दिखाया गया कि गैर-नेपाली नागरिक वोट डाल सकते हैं। हालांकि, डेमो के बाद इन वोट्स को हटा दिया गया ताकि अंतिम परिणाम प्रभावित न हो। ऐसी खामियां विदेशी दखल की गंभीर चिंता उठाती हैं, खासकर उस समय जब हिमालयी देश राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा है- और जब अमेरिका, चीन, पाकिस्तान जैसे कई देशों की रुचि नेपाल में बनी रहती है।
बुधवार को प्रदर्शनकारियों ने जब अपने अगले प्रतिनिधि को चुनने के लिए वोट डाले, तब ऑनलाइन पोल में वोटर की पहचान के लिए कोई सिस्टम नहीं था। इसमें यूजर्स को बिना किसी रोकटोक कई पोल्स में वोट करने की छूट थी, जिससे पूरे प्रोसेस की पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सवाल उठे।
इस दौरान हुए कई पोल्स में से एक में बुधवार शाम को सिर्फ 3,833 वोटों ने सुषिला कार्की को पसंदीदा विकल्प बनाया, हालांकि ऑनलाइन कम्युनिटी में जल्द ही मतभेद उभर आए। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के मंगलवार को इस्तीफे के बाद मेंबर्स एकजुट होकर एक ही नेता के पीछे नहीं आ पाए, क्योंकि कई नामों को नेपाल के युवाओं की असली आवाज बताया जा रहा था।
पूर्व चीफ जस्टिस सुषिला कार्की- जो देश की पहली महिला चीफ जस्टिस रही हैं- जल्दी ही प्रमुख दावेदार बनकर उभरीं। समर्थकों का कहना था कि कानून और संविधान की गहरी समझ उन्हें बेहतरीन उम्मीदवार बनाती है। एक यूजर ने लिखा, 'सुषिला कार्की को कानून और संविधान का ज्ञान है। वह शानदार तरीके से लीड कर सकती हैं।' लेकिन विरोधियों ने उन्हें 'अमेरिका की कठपुतली' कहकर खारिज कर दिया।
दूसरा नाम बलेंद्र शाह का सामने आया- जो रैपर, इंजीनियर और काठमांडू के मेयर हैं। उनकी ऑनलाइन मौजूदगी काफी बड़ी है, जिसमें 8 लाख से ज्यादा इंस्टाग्राम फॉलोअर्स शामिल हैं। ग्रुप के मॉडरेटर्स उन्हें लीडर के तौर पर पसंद करते थे, लेकिन उन्होंने प्रतिनिधि की भूमिका निभाने से मना कर दिया।
कम्युनिटी का एक हिस्सा NGO हामी नेपाल के अध्यक्ष और 'Youth Against Corruption' डिस्कॉर्ड ग्रुप के फाउंडर सुदान गुरंग को आगे बढ़ाने के पक्ष में था। लेकिन उनकी संबद्धताओं और फंडिंग पर सवाल उठे, एक यूजर ने आरोप लगाया, 'उनके समर्थक और बैकर्स आर्म डीलर्स हैं।'
ऑक्सफोर्ड ग्रेजुएट और 2023 इलेक्शन में इंडिपेंडेंट कैंडिडेट रहे सागर ढकाल को भी युवाओं का एक हिस्सा सपोर्ट कर रहा था। बहस यहीं खत्म नहीं हुई। Gen Z मेंबर्स ने रवी लामिछाने, दुर्गा प्रसाई और हरका सम्पांग जैसे नाम भी बतौर संभावित प्रतिनिधि आगे रखे। फिर भी कई लोग तर्क दे रहे थे कि इन नामों में से कोई भी शुरुआत से प्रोटेस्ट का हिस्सा नहीं था और उन पर आरोप लगा कि वे केवल अशांति का राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं।
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