Chhath Puja 2025 Arghya Time: कब है छठ पूजा अर्घ्य का शुभ मुहूर्त? डूबते-उगते सूर्य को अर्घ्य, निर्जला उपवास, पूजा विधि
Chhath Puja 2025 Arghya Time: सोमवार, 27 अक्टूबर को छठ पूजा 2025 के तीसरे दिन नदी घाटों पर छठ व्रती डूबते सूरज को अर्घ्य अर्पित करेंगे। खरना के साथ ही छठ व्रतियों ने 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू कर दिया है। छठ पूजा 2025 का यह महत्वपूर्ण दिन श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, जिसमें भक्त सूर्य देव और छठी मइया की उपासना करते हैं।

Chhath Puja 2025 Arghya Time: छठ पूजा 2025 के तीसरे दिन सोमवार, 27 अक्टूबर को छठ घाटों पर व्रती देंगे डूबते सूरज को अर्घ्य।
जागरण संवाददाता, पूर्णिया। Chhat Puja 2025 Arghya Time लोक आस्था का महापर्व छठ व्रत नहाय-खाय के साथ शनिवार से शुरू हो चुका है। छठ पूजा 2025 के सबसे कठिन व्रत की शुरुआत सोमवार को खरना के साथ हुई। सोमवार को व्रतियों ने स्वच्छता व पवित्रता के साथ खरना का प्रसाद तैयार किया तथा शाम में उसे ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू किया। अब निर्जला व्रत रखकर व्रती सोमवार को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगे तथा मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के बाद पारन करेंगे। खरना को लेकर पूरे शहर में माहौल भक्तिमय बना रहा। घरों से लेकर घाटों तक बज रहे छठ मइया के गीतों से श्रद्धा का वातावरण बना रहा। इस दौरान बाजार में भी काफी गहमा गहमी रही। हर चौक पर सजे सूप-टोकरी, नारियल, ईख, फल की दुकानों पर लोगों की भीड़ उमड़ती रही। इस दौरान केले, सुथनी, सिंघाड़ा आदि की कीमत आसमान पर रही।
रविवार को छठ व्रती महिलाएं दिन भर खरना की तैयारियों में लगी रहीं। दिन भर व्रती और उनके परिजन खरना पूजा की तैयारी में जुटे रहे और दिन भर खरना का प्रसाद बनाया। खरना की शाम गुड़ से बना खीर, सुहाड़ी के साथ व्रती महिला-पुरुषों ने खरना कर छठी मइया की पूजा-अर्चना कर उन्हें भोग लगाया। जिसके बाद स्वजनों और आसपास के लोगो को भी खरना का प्रसाद खिलाया गया। इसके साथ ही भगवान भास्कर को अर्घ्य समर्पित करने की तैयारी पूरी कर ली गई है। खरना समाप्त होने के साथ ही सोमवार को सारी सड़कें छठ घाटों की ओर मुड़ेगी। छठ व्रती महिलाएं और पुरुष अस्ताचल भगवान भास्कर को अर्घ्य समर्पित करेंगी। वहीं मंगलवार की सुबह उगते भास्कर को अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर उपवास तोड़ेंगी,जिसके बाद महापर्व का समापन होगा।
छठ पूजा 2025 : सूर्योपासना का महापर्व, छठ कब है? Chhath 2025 Date, Chhath Puja 2025 Date
- 27 अक्टूबर (सोमवार) : सूर्य को संध्याकालीन अर्घ्य (शाम 5:10 बजे से शाम 5:58 बजे तक)
- 28 अक्टूबर (मंगलवार): सूर्य को प्रातःकालीन अर्घ्य (प्रात: 5:33 बजे से सुबह 6:30 बजे तक)
अंतिम खरीदारी के लिए छठ व्रतियों की उमड़ी भीड़
जहां एक तरफ घरों में सुबह से ही महिलाएं खरना और छठ के प्रसाद के की तैयारी में जुटी हुई थी वहीं दूसरी तरफ छठ पूर्व अंतिम खरीदारी के लिए छठ व्रतियों की भीड़ बाजारों में उमड़ पड़ी। महापर्व का उत्साह पूरे जिले में चरम पर है। गुलाबबाग से लेकर फल एवं सब्जी मंडी खुश्कीबाग, आरएन साव चौक, मधुबनी, हरदा सहित जिला क्षेत्र के अन्य बाजारों में लोगों ने चीनी, चावल, गूड़, मैदा, तेल, घी से लेकर अदरख, नींबू, टाभ, केतारी, सेव, संतरा, नारियल, अरतापात, सिंघाड़ा से लेकर पूजा सामग्री की जम कर खरीदारी की।
छठ के गीतों से समूचा वातावरण गुंजायमान रहा
वैसे तो दीपावली के बाद से ही छठ के गाने बजने शुरू हो जाते हैं, लेकिन छठ महापर्व शुरू होते ही समूचा वातावरण छठ के गीतों से गुंजायमान हो रहा है। रूनकी-झुनकी बेटी मांगिला-पढ़ल पंडितवा... सुगउ के मरब धेनुष से सुगा गिरिहें मुरछाय... और बाट जे जोहे ला बटोहिया दौरा केकरा के जाय... जैसे छठ पर्व के गीतों से माहौल भक्तिमय बना हुआ है। हर तरफ छठ के जुड़े गीत बजते दिखे। वहीं छठ घाटों की तैयारी भी पूरी कर ली गई है। कई जगहों पर घर में ही अर्घ्य के लिए गड्ढा खोद कर घाट बनाया गया है। कुछ लोग गली-मोहल्ले में या खाली स्थानों पर मिनी पोखर तैयार कर उसे घाट का रूप दिया गया है। वहीं शहर की सभी प्रमुख नदी तालाबों में अर्घ्य के लिए पूरी तैयारी की गई है। जिला प्रशासन द्वारा भी छठ घाटों पर सुरक्षा और व्रतियों की सुविधा के लिए पर्याप्त व्यवस्था की गई है।
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य आज, छठ पूजा 2025 का उत्साह चरम पर
भगवान भास्कर की उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ के दूसरे दिन रविवार को खरना संपन्न हो गया। व्रतियों ने स्नान के बाद संध्या काल में गुड़ और चावल से खीर बनाकर तथा घी लगी रोटी का भोग छठी माता को लगाया। खीर व रोटी को प्रसाद के तौर पर लोगों के बीच बांटा गया। सोमवार को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगे तथा मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के बाद पारन करेंगे। छठ गीतों से पूरा वातावरण गूंज रहा है। हर घर से छठ गीत के बोल सुनाई दे रहे हैं। पहले डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्यास्त के बाद लोग अपने-अपने घर वापस आ जाते हैं। रात भर जागरण किया जाता है। दूसरे दिन सुबह पुन: संध्या काल की तरह दउरा में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर घाटों पर लोग जमा होते हैं। व्रत करने वाले सुबह के समय उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
होती हैं हर मन्नतें पूरी
छठ पूजा पर्व के विषय में मान्यता यह है कि जो भी छठ माता और सूर्य देव से इस दिन मांगा जाता है, वह मनोकामना पूरी होती है। अथर्वेद में भी इस पर्व का वर्णन है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से की गई इस पूजा से हर मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। माताएं अपने बच्चों व पूरे परिवार की सुख-समृद्धि, शांति व लंबी आयु के लिए व्रत रखती है। इस अवसर पर बहुत से लोग सूर्य देव को दंडवत प्रणाम करते हैं। सूर्य को दंडवत प्रणाम करने का व्रत बहुत ही कठिन होता है। लोग अपने घर में कुल देवी या देवता को प्रणाम कर नदी तट तक दंड करते हुए जाते हैं। पहले सीधे खड़े होकर सूर्यदेव को प्रणाम किया जाता है फिर पेट की ओर से जमीन पर लेटकर दाहिने हाथ से जमीन पर एक रेखा खींची जाती है। यही प्रक्रिया नदी तट तक पहुंचने तक बार-बार दोहरायी जाती है।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है महापर्व छठ
महापर्व छठ शुद्धि और आस्था का मिशाल है। यह पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देता है। लोगों को समानता और सद्भाव का मार्ग दिखाता है। अमीर-गरीब सभी माथे पर डाला लेकर एक साथ घाट पहुंचते हैं। यह पर्व प्रकृति से प्रेम को दर्शाता है। सूर्य और जल की महत्ता का प्रतीक यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। इस पर्व को भगवान सूर्य और परमब्रह्मा प्रकृति और उन्हीं के प्रमुख अंश से उत्पन्न षष्ठी देवी का उपासना भी माना जाता है।
सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं वे सर्वत्र व्याप्त हैं और रोज लोगों को दर्शन देते हैं। ऐसी मान्यता है कि सूर्योपासना का व्रत कर जो भी मन्नतें मांगी जाती हैं वे पूरी होती हैं और सारे कष्ट दूर होते हैं। पर्व नहाय-खाय से शुरू होता है। दूसरे दिन खरना इसके बाद अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य व सुबह में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इस पर्व को छोड़ा नहीं जाता, यदि व्रती व्रत करने में असमर्थ हो जाती है तो इस व्रत को घर की बहू या बेटे करते हैं।
सृष्टि चक्र का प्रतीक भी है छठ महापर्व
छठ महापर्व सृष्टि चक्र का प्रतीक भी है। इस पर्व में पहले डूबते सूर्य की पूजा होती है। फिर उगते सूर्य की। सूर्य ही हमारे जीवन का स्त्रोत हैं चाहे अपनी रोशनी से हमें जीवन देना हो या हमें भोजन देने वाले पौधों को भोजन देना, सूर्य का संपूर्ण जगत आभारी है। हम आजीवन उनके उपकारों से लदे रहते हैं। सूर्य अंधकार को विजित कर चराचर जगत को प्रकाशमान करते हैं। जगत में उगते सूर्य को पूजने की प्रथा है। यह बताता है कि हर अस्त में उदय छिपा है। हर मृत्यु में नवजीवन का रहस्य है।
सूर्य की बहन हैं छठी मइया
छठी मइया (षष्ठी) सूर्य की बहन हैं। इन्हीं को खुश करने के लिए महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए इन्हीं को साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना करते हुए नदी तालाब के किनारे छठ पूजा की जाती है। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया हैं। बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है।
मंहगाई के सितम पर नहीं रूक रहे भक्तों के कदम
छठ महापर्व को लेकर शनिवार और रविवार को बाजार में खरीदारी के लिए लोगों की भीड़ जुटी रही। मंहगाइ के सितम पर भी पूरा बाजार छठ के सामनों की खरीदारी करने के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं से पटा था। कसबा बाजार सहित तमाम जगहों पर स्थायी दुकानें सजाकर छठ की सामग्री बेची जा रही हैं। हालांकि सड़क के बीचोबीच दुकानें होने के कारण लोगों को आवाजाही में परेशानी हो रही है। चार पहिया वाहनों का प्रवेश तो दुश्वार हो गया है। लोग पूजन सामग्री खरीदने में व्यस्त दिखे।

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