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    August Kranti 2025 बटेश्वर में जली थी अगस्त क्रांति की ज्वाला, युवाओं ने फूंका था अंग्रेजों का कार्यालय

    Updated: Sun, 10 Aug 2025 04:02 PM (IST)

    अगस्त क्रांति के दौरान बटेश्वर में युवाओं ने अंग्रेज़ों की जंगलात कोठी पर धावा बोला और वन विभाग के कार्यालय में आग लगा दी। युवाओं ने टेलीफोन और बिजली के तार भी काट दिए थे। इस आंदोलन में अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। ग्रामीणों पर भारी जुर्माना भी लगाया गया था। बटेश्वर के लोगों ने आज़ादी की जंग में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

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    बटेश्वर के जंगल में इसी कोठी में लगा दी थी क्रांतिकारियों ने आग।

    जागरण संवाददाता, आगरा। यमुना किनारा स्थित प्राचीन शिव मंदिरों की शृंखला को प्रसिद्ध बटेश्वर अगस्त क्रांति में मूक नहीं रहा था। यहां भी आजादी की ज्वाला जमकी−धधकी थी, जिसमें अंग्रेजों की जंगलात कोठी को ध्वस्त करने के साथ ही वन विभाग के कार्यालय में आग लगा दी गई थी। टेलीफाेन व बिजली के तार काट दिए गए थे। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी भी इस आंदोलन में शामिल हुए थे। क्रांतिकारियों को ब्रिटिश सरकार के दमन का सामना करना पड़ा था।

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    आठ अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी के देश की आजादी के लिए करो या मरो के आह्वान के बाद ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध देश के कोने-कोने में चिंगारी सुलग उठी थी। 26 अगस्त, 1942 को बटेश्वर के बाजार में पीपल के पेड़ के नीचे ग्रामीण आल्हा का लुत्फ उठा रहे थे।

    26 अगस्त, 1942 को युवाओं ने एकत्रित होकर बोला था वन विभाग के कार्यालय पर धावा

    गांव के लीलाधर वाजपेयी उर्फ ककुआ ने कहा, कि महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो को अंतिम क्रांति घोषित कर दिया है। लीलाधर की हुंकार के बाद युवाओं में देशभक्ति की भावना ने उफान मारा। गांव के करीब 300 से अधिक युवाओं ने बटेश्वर स्थित अंग्रेजों की जंगलात कोठी और कर्मचारियों के आवास ध्वस्त कर दिए। वन विभाग के बिजकौली स्थित कार्यालय में आग लगा दी।

    अटल बिहारी वाजपेयी को भी ब्रिटिश पुलिस ने पकड़ा था, कुछ दिन बाद हुए थे रिहा

    टेलीफाेन व बिजली के तार काट डाले। 27 अगस्त, 1942 को आजादी के मतवालों ने जंगलात कोठी पर तिरंगा फहराकर आजादी की घोषणा कर दी थी। 27 अगस्त, 1942 को ब्रिटिश फौज ने बैराग्य हवेली पर मशीनगन रखकर दहशत फैलाई। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व उनके भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी को गिरफ्तार कर लिया गया था। अंग्रेजों ने 40 हजार रुपये का जुर्माना ग्रामीणों पर लगाया था।

    आंदोलन के समय नाबालिग थे वाजपेयी

    बटेश्वर के लोगों पर स्पेशल जल कैलाशनाथ बांचू के न्यायालय में मुकदमा चला था, जिसका फैसला 30 मार्च, 1943 को सुनाया गया। लीलाधर वाजपेयी को छह वर्ष और शोभाराम को तीन वर्ष की सजा हुई। उनकी पैरवी वकील पं. बैजनाथ शर्मा ने की थी। अटल बिहारी वाजपेयी और प्रेम बिहारी वाजपेयी को नाबालिग होने पर 15 दिन बाद वायसराय कौंसिल के सदस्य गिरजाशंकर वाजपेयी के हस्तक्षेप पर रिहा कर दिया गया था। 

    आजादी की जंग में कूद पड़े थे

    बटेश्वर के लोगों ने जीवन की परवाह किए बगैर 1931 से आजादी को जंग शुरू कर दी थी। स्व. नरायनदास गुप्ता उर्फ बागला व स्व. मातादीन संतोषी को वर्ष 1931, 1941, 1942 में जेल भेजने के साथ जुर्माना भी लगाया गया। स्व. भवानी प्रसाद दुबे को वर्ष 1942 में सात वर्ष की सजा सुनाई गई। स्व. मुन्नालाल 1942 में जेल गए। स्व. रुकमिनी देवी को 1931 में 3 माह की सजा सुनाई गई।

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