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    हादसे में 2 मेडिकल छात्रों की मौत: पिता बोले- तमाशबीन बने रहे लोग, दोनों बच्चों को नहीं मिला इलाज

    Updated: Mon, 01 Dec 2025 08:20 AM (IST)

    आगरा में सड़क हादसे के बाद मेडिकल छात्रों को समय पर मदद नहीं मिली। मृतक छात्र के पिता ने बताया कि लोग तमाशा देखते रहे, अस्पताल ले जाते तो जान बच जाती। ...और पढ़ें

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    मृतकों के फाइल फोटो।

    जागरण संवाददाता, आगरा। लोग समय पर मदद करते तो दोनों बच्चों की जान नहीं जाती। हादसे के बाद दोनों बच्चे आधा घंटे सड़क पर पड़े रहे, और वहां जुटे लोग तमाशा देखते रहे। आज मेरे बेटे की जान गई है, कल किसी और का बेटा हो सकता है। हादसे में मृत मेडिकल छात्र सिद्ध के पिता राजेश अग्रवाल यह कहकर रोने लगते हैं।

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    हादसे के बाद आधा घंटे पड़े रहे मेडिकल छात्रों को समय पर नहीं मिला उपचार


    विमल वाटिका कमला नगर निवासी राजेश अग्रवाल की जनरेटर के पार्टस बनाने की फैक्ट्री है। पिता को बेटे सिद्ध के हादसे की जानकारी शाम 6:30 बजे मिली। वह स्वजन के साथ घटनास्थल पर दौड़ पड़े, वहां पता चला कि सिद्ध को बाइपास स्थित अस्पताल ले जाया गया। वहां पहुंचने पर सिद्ध और उनके मित्र तनिष्क के सिर में गंभीर चोट होने के चलते दोनों को सिकंदरा हाईवे रेनबो अस्पताल लेकर गए। वहां से चिकित्सकों ने एसएन इमरजेंसी रेफर कर दिया। वह इमरजेंसी पहुंचे, वरिष्ठ चिकित्सकों की टीम मौजूद थी। मगर, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।


    पुलिस पहुंचने के बाद ई-रिक्शा से एसएन इमरजेंसी लेकर पहुंचे लोग


    पिता राजेश अग्रवाल ने बताया कि घटनास्थल पर स्वजन को कुछ लोगों ने बताया कि दोनो बच्चे हादसे के बाद आधा घंटे तक वहीं पड़े रहे थे। वहां जुटे लोग दोनों को अस्पताल ले जाने की जगह एक दूसरे से पुलिस को काल करने के लिए कहते रहे। एक राहगीर द्वारा 112 नंबर पर हादसे की सूचना देने पर पुलिस पहुंची, तब तक आधा घंटे से अधिक बीत चुके थे।

    पुलिस के पहुंचने पर लोग ई-रिक्शा से सिद्ध और तनिष्क को अस्पताल लेकर गए। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सड़क हादसों में गोल्डन आवर (एक घंटा) अहम होता है।पिता राजेश अग्रवाल ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि आज मेरे बेटे की जान गई है, कल किसी और का बेटा हो सकता है। लोग घायलों को समय से अस्पताल पहुचाएं तो कई बेटों की जान बच सकती है।

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    दादी का सपना पूरा करने को डॉक्टर बने थे सिद्ध


    सिद्ध की दादी विद्या देवी का सपना था कि वह डाक्टर बनें।वह दादी से बेहद प्यार करते थे। दादी का सपना पूरा करने को वह बचपन से डाक्टर बनना चाहते थे। इसी सपने के साथ उन्होंने अपनी पढाई पूरी की। दादी का सपना पूरा किया। उनके बड़े भाई अक्षत गर्ग बेंगलुरू में साफ्टवेयर इंजीनियर हैं।



    प्रतीक्षा ही करती रह गईं मां


    मां नीरू अग्रवाल बेटे सिद्ध की प्रतीक्षा ही करती रह गईं। वह दोपहर लगभग दो बजे घर से खाना खाकर निकले थे। मां से कहा था कि मित्रों के साथ घूमने जा रहे हैं, शाम को लौटेंगे। मां ने उनकी पसंद का खाना बनाया था। बेटे के लौटने की प्रतीक्षा कर रही थीं। शाम को बेटे की मौत की खबर मिली तो वह बेहोश हो गईं।

    तनिष्क से थी गहरी मित्रता


    हरदोई के रहने वाले मेडिकल छात्र तनिष्क से सिद्ध की गहरी मित्रता थी। दोनाें अक्सर एक साथ ही निकलते थे। दोनों परिवारों को भी उनकी मित्रता के बारे में पता था। कभी सिद्ध या तनिष्क का मोबाइल नहीं मिलता तो स्वजन किसी एक काे काल करके दूसरे के बारे में जानकारी ले लेते थे। पिछले दिनों की दोनों की परीक्षा खत्म हुई थी, तनिष्क दो दिन बाद घर लौटने की तैयारी कर रहे थे। परीक्षाओं के बाद वह घूमने निकले थे।