Allahabad High Court: पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई और बेटे को फिलहाल मिली राहत
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई व बेटे सहित अन्य लोगों को जानलेवा हमले के मामले में हाथरस जिला अदालत द्वारा जारी गैर ...और पढ़ें

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई व बेटे सहित अन्य लोगों को जानलेवा हमले के मामले में हाथरस जिला अदालत द्वारा जारी गैर जमानती वारंट के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष हाजिर होने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि यदि 30 सितंबर तक यह लोग हाजिर होते हैं तो इनको गिरफ्तार न किया जाए। बांड लेकर जमानत पर रिहा कर दिया जाए।
यह भी कहा अदालत ने
न्यायालय ने यह भी कहा है कि याची गण ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमे से डिस्चार्ज करने के लिए अर्जी दे सकते हैं। जिस पर न्यायालय 3 माह में निस्तारण करे। यदि ट्रायल कोर्ट का फैसला याचीगण के विरुद्ध आता है तो वह 15 दिन के भीतर सरेंडर कर ट्रायल का सामना करें।
समन आदेश और एनबीडब्लू को दी गई याचिका में चुनौती
यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने विनोद उपाध्याय व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। मामले के अनुसार याचिका में 25 मार्च 2021 को जारी समन आदेश व एक अप्रैल 2022 को जारी गैर जमानती वारंट को चुनौती दी गई थी। याचिका में पुलिस की अंतिम रिपोर्ट खारिज करने के फैसले को भी चुनौती दी थी।
याची के अधिवक्ता का कहना था कि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान 8 फरवरी 2017 को उनके जुलूस पर फायरिंग हुई जिसमें पुष्पेंद्र नाम के व्यक्ति की मौत हो गई। इसमें तत्कालीन समाजवादी पार्टी के एमएलए देवेंद्र अग्रवाल, अतुल अग्रवाल, चंदन अग्रवाल, राकेश अग्रवाल और पुनीत गुप्ता सहित 25-30 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई।
एमएलए पक्ष की ओर से इस मुकदमे को कमजोर करने और क्रास एफआइआर दर्ज कराने की नीयत से रिंकू ठाकुर की सीएचसी सेफू से फर्जी मेडिकल रिपोर्ट बनवाई गई जिसमें दिखाया गया कि उसके पैर में गोली लगी है। तथा रिंकू को आगे की जांच के लिए जिला चिकित्सालय आगरा भेज दिया गया जहां से वह फरार हो गया।
बाद में उसे गिरफ्तार कर अगले दिन दोबारा मेडिकल जांच के लिए सीएससी सेफू ले जाया गया। वहां पर उसी डाक्टर ने जिसने पहले दिन मेडिकल जांच की थी दोबारा मेडिकल जांच में रिपोर्ट दी कि रिंकू ठाकुर के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई।
इस दौरान क्रास मुकदमा दर्ज कराने के लिए रिंकू के पिता ने न्यायालय के समक्ष 156 (3) के तहत अर्जी दाखिल की जिस पर कोर्ट के आदेश से सेफू थाने में शशिकांत शर्मा, चिंटू गौतम, रामेश्वर उपाध्याय, विनोद उपाध्याय व चिराग वीर उपाध्याय सहित 40 50 लोगों अज्ञात लोगों के खिलाफ जानलेवा हमला करने, जान से मारने की धमकी देने व एससी एसटी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया।
इस मुकदमे में पुलिस ने जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी जिसके खिलाफ दाखिल प्रोटेस्ट अर्जी पर कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट रद कर अग्रिम विवेचना का आदेश दिया। अग्रिम विवेचना के बाद पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट को फर्जी पाया तथा कई डाक्टरों का बयान लेने के बाद दोबारा फाइनल रिपोर्ट लगा दी। ट्रायल कोर्ट ने इसे भी खारिज करते हुए को समन जारी किया है।
दूसरी ओर विपक्ष के अधिवक्ता का तर्क था कि रामवीर उपाध्याय तत्कालीन कैबिनेट मंत्री व प्रभावशाली नेता थे इसलिए पुलिस उनके दबाव में काम कर रही थी। राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस ने मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी। रिंकू ठाकुर की मेडिकल रिपोर्ट फर्जी नहीं है क्योंकि दूसरे दिन की जांच में डॉक्टर ने लिखा है कि कोई नई चोट नहीं पाई गई जबकि पहले दिन की जांच में उन्होंने बुलेट इंजरी का जिक्र किया है।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि मामला अभी बहुत शुरुआती स्तर पर है और इस स्थिति में कोई भी निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा। कहा गया यह एससी एसटी एक्ट के प्रावधानों का दुरुपयोग हो सकता है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि रिंकू ठाकुर की मेडिकल रिपोर्ट ट्रायल का विषय है क्योंकि सीएचसी के जिस डाक्टर ने पहले बुलेट इंजरी होने की बात लिखी है उसी ने दूसरे दिन अपनी जांच में कहा है कि कोई चोट नहीं पाई गई। न्यायालय ने कहा कि इस स्तर पर कोई भी निष्कर्ष निकालना या टिप्पणी करना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे मुकदमे का ट्रायल प्रभावित हो सकता है।

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