अयोध्या से रेफर हुई बच्ची लखनऊ में अस्पताल-दर-अस्पताल भटकती रही, बेड न मिलने से तोड़ दिया दम
अयोध्या में गंभीर रोगियों को लखनऊ के अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे हैं जिससे उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकना पड़ रहा है। हाल ही में बुखार से पीड़ित एक बच्ची को लखनऊ रेफर किया गया लेकिन बेड न मिलने के कारण उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा जहाँ उसकी मौत हो गई। सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।

जागरण संवाददाता, अयोध्या। जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज से रेफर हाेने वाले गंभीर रोगियों को लखनऊ में बेड नहीं मिल रहा। तीमारदार 108 नंबर एंबुलेंस से एक से दूसरे अस्पतालों में भटकने को मजबूर है। चिकित्सक लाख अनुरोध के बाद भी वापस कर दे रहे हैं।
इसका नतीजा है कि बेड की तलाश में भटकते-भटकते रोगी की मौत हो जा रही है। ऐसा ही नया प्रकरण दो दिन पहले देखने को मिला। बुखार से पीड़ित गंभीर बालिका को मेडिकल कालेज हायर सेंटर लखनऊ के रेफर कर दिया गया।
एंबुलेंस से पहुंचने पर भी सरकारी अस्पताल में बेड ही नही मिला। मजबूरी में स्वजन निजी अस्पताल में भर्ती कराए, जहां पर उसकी मौत हो गई। इसके बाद भी रोगियों को हर तरफ कागजों में अच्छे इलाज का दावा किया जा रहा है।
विकासखंड तारुन के ग्राम गौरा गांव निवासी महेश निषाद की 11 वर्षीय पुत्री सरस्वती को 14 जुलाई को बुखार आया था। इसके बाद उसे शहर के नाका स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। दूसरे दिन सुबह तक राहत न दिखने पर चिकित्सक जिला अस्पताल रेफर कर दिए।
वहां पहुंचने पर इमरजेंसी में उपस्थित चिकित्सक ने रिपोर्ट देखने के बाद राजर्षि दशरथ मेडिकल कालेज रेफर कर दिया। इसी तरह वहां से भी चिकित्सक ने रिपोर्ट देखने के बाद हायर सेंटर लखनऊ रेफर कर दिया।
इसके बाद महेश पुत्री को 108 नंबर एंबुलेंस से मेडिकल कालेज लखनऊ पहुंचे। आराेप है कि वहां पर इमरजेंसी में पीली पर्ची बनवाने के बाद भी डाक्टर ने बेड न हाेने की बात कर एंबुलेंस से उतारने से मना करा दिया।
चिकित्सक के सामने वे पुत्री ही जान बचाने के लिए गिड़गिड़ाता रहा, लेकिन उनकी एक न सूनी। इसके बाद उसी एंबुलेंस से राम मनोहर लोहिया अस्पताल और पीजीआई गया पर हर जगह बेड न हाेने का हवाला देकर भर्ती करने से मना कर दिया।
इसके बाद मजबूरी में वहीं के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां पर सरस्वती की 17 जुलाई की रात 10 बजे मौत हो गई। यह पीड़ा किसी एक महेश की नही इसी तरह जिले के सरकारी अस्पतालों से रेफर हाेने के बाद वापस आने वाला हर कोई अपना दर्द बयां करते फिर रहा।

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