Chhath 2025 : बलिया में सैंड आर्टिस्ट ने बालू से सजाई छठ की झांकी
बलिया में छठ पूजा के अवसर पर सैंड आर्टिस्ट रूपेश सिंह ने गंगा किनारे बालू से छठ की मनमोहक झांकी बनाई। तीन दिन में बनी इस झांकी में छठ मईया और सूर्य देव को अर्घ्य देते भक्तों को दर्शाया गया है। इस कलाकृति को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आ रहे हैं और तस्वीरें ले रहे हैं। छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण त्योहार है।

रेत कलाकार रुपेश सिंह ने छठ पूजा के अवसर पर एक अनोखी कलाकृति तैयार की है।
जागरण संवाददाता, बलिया। मुख्यालय से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित गुरवा ग्रामपंचायत में प्रधान सुधीर मौर्य के सहयोग से रेत कलाकार रुपेश सिंह ने छठ पूजा के अवसर पर एक अनोखी कलाकृति तैयार की है।
यह कलाकृति छठ ब्रातियों और हिंदू आस्था से जुड़े समाज के लिए एक सेल्फी पॉइंट के रूप में समर्पित की गई है। इस कलाकृति को बनाने में कलाकार ने 15 घंटे की कड़ी मेहनत की है, जिसमें मोहन सिंह और रुपेश सिंह की सैंड आर्टिस्ट टीम ने भी सहयोग किया।
छठ पूजा, जो कि सूर्य देवता और उनकी पत्नी उषा की पूजा का पर्व है, भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर भक्तगण नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होते हैं और सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
इस पर्व की विशेषता यह है कि इसमें श्रद्धालु उपवास रखते हैं और अपने परिवार की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं।
रुपेश सिंह की इस रेत कलाकृति ने न केवल स्थानीय लोगों का ध्यान आकर्षित किया है, बल्कि यह पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र बन गई है।
कलाकृति में सूर्य देवता की भव्य आकृति और छठ पूजा से जुड़े अन्य प्रतीकों को खूबसूरती से उकेरा गया है। इस प्रकार की कला न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को भी जीवित रखती है।
प्रधान सुधीर मौर्य ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इस प्रकार की कलाकृतियाँ समाज में एकता और सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस कलाकृति के माध्यम से युवा पीढ़ी को कला और संस्कृति के प्रति जागरूक किया जा सकता है।
इस आयोजन में उपस्थित लोगों ने कलाकृति की प्रशंसा की और इसे अपने सोशल मीडिया पर साझा करने का निर्णय लिया। इस प्रकार, रुपेश सिंह की मेहनत ने न केवल छठ पूजा के महत्व को उजागर किया है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि कला के माध्यम से हम अपनी संस्कृति को कैसे संरक्षित कर सकते हैं।
इस अनोखी कलाकृति ने गुरवा ग्रामपंचायत को एक नई पहचान दी है और यह दर्शाती है कि कला और संस्कृति का संगम किस प्रकार समाज को जोड़ सकता है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।