महात्मा गांधी की चिट्ठी से आहत हुए थे लोकनायक जयप्रकाश नारायण, पत्नी ने लिया था ब्रह्मचर्य का प्रण
Loknayak Jayaprakash Narayan बलिया जिले के सिताब दियारा से कांग्रेस सरकार को चुनौती देने वाले लोकनायक जय प्रकाश नारायण की कर्मभूमि भले ही बलिया बिहार की सीमा पर बसा सिताबदियारा रहा हो लेकिन उनका कद वैश्विक था।

जागरण संवाददाता, बलिया। बात उन दिनों की है, जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण की शादी 1920 में प्रभावती से हुई थी। उस वक्त वे 18 साल के थे, जबकि उनकी पत्नी 14 की। शादी के दो साल बाद ही वह शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। उन्होंने कैलिफोर्निया विश्व विद्यालय और विस्कासिन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। समाजशास्त्र से एमए किया। इसी बीच उनकी पत्नी महात्मा गांधी (बापूजी) के आश्रम में काम करने चली गईं, वहां बापू ने जेपी की पत्नी को आजीवन ब्रह्मचर्य का प्रण करवा दिया, क्योंकि इसका असर दांपत्य पर भी पड़ा। रिश्तों में खालीपन आ गया जेपी ने जब ये बात जानकर नाराजगी प्रकट की तो गांधीजी ने उन्हें कड़ा पत्र लिखा। इस पत्र ने जयप्रकाश को बहुत आहत किया।
1929 में जब जेपी वापस भारत लौटे तो असहयोग आंदोलन चरम पर था। जवाहरलाल नेहरू के कहने पर वह न केवल आजादी की लड़ाई में कूदे बल्कि कांग्रेस के सदस्य भी बने। गांधी शांति प्रतिष्ठान दिल्ली के चेयरमैन कुमार प्रशांत बताते हैं कि ये चिट्ठी गांधीजी ने प्रभावती की जानकारी के बगैर लिखी थी। हालांकि जेपी को पत्र के जरिए प्रभावती के उच्च लक्ष्यों के बारे में भी ज्ञात हुआ। गांधीजी ने जीवन में ब्रह्मचर्य के उद्देश्यों की विवेचना की थी। यही वजह रही कि जयप्रकाश को भी लगा कि वाकई उनकी पत्नी ने देश के लिए कितना बड़ा बलिदान दिया है। बाद में असहयोग आंदोलन में कस्तूरबा गांधी और कमला नेहरू के साथ प्रभावती ने अगुवाई की थी।
कुमार प्रशांत ने बताया कि संपूर्ण क्रांति आंदोलन के समय वह काफी दिनों तक सिताबदियारा स्थित उनके पुराने घर पर रूके थे। वह अपने मेहमानों का खूब ख्याल रखते थे। कोई दिक्कत नहीं होने दी। संघर्ष की रात आज भी याद है, उनके साथ जेल भी जाना हुआ।
जेपी से मशविरा के बाद प्रभावती ने उठाया था कदम
गांधीजी ने ब्रजकिशोर प्रसाद को पत्र लिखा था। आग्रह किया था कि वे अपनी बेटी को आश्रम में रहने की अनुमति दें। जयप्रकाश ने अमेरिका से अपने पिताजी को चिट्ठी लिखकर अनुरोध किया कि वे प्रभावती को साबरमती आश्रम जाने दें। कुमार प्रशांत कहते हैं कि आश्रम में प्रभावती पर गांधीजी का ऐसा प्रभाव पड़ा कि ब्रह्मचर्य का व्रत लेने की बात उनके दिमाग में बैठ गई। हालांकि पहले गांधीजी ने उन्हें ऐसा करने से मना किया था। जयप्रकाश से मशविरा करने को कहा। फिर प्रभावती ने जयप्रकाश को अमेरिका पत्र लिखा। जवाब आया कि पत्र का क्या जवाब दूं। वापस आने पर बात करूंगा। लौटने के बाद प्रभावती से प्रेरित होकर जेपी ने भी ब्रह्मचर्य व्रत लिया।
प्रभावती के निधन से टूट गए थे जेपी
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय कहते हैं कि 1970 के आसपास वह सिताबदियारा में थे। जगदीश राय उनकी देखरेख कर रहे थे। उसी दौरान उन्हें फोड़ा हुआ, उसके इलाज के लिए जेपी, प्रभावती व जगदीश बनारस आए। शिवप्रसाद गुप्त अस्पताल में उनका आपरेशन हुआ। आपरेशन के दौरान गलती से प्रभावती जी की बहन का एक तार (चिट्ठी) उनके पास पहुंच गया। उसमें उनकी बहन ने प्रभावती से पूछा था कि तुम्हारे रोग का क्या हाल है। जांच हुई या नहीं। उन दिनों दोनों लोग अस्वस्थ थे। उन्हें अंदेशा होता था कि किसकी आयु छोटी है। उस तार के जरिए जेपी को मालूम हुआ कि उनकी पत्नी को कैंसर की शिकायत है। यह बात वह जेपी से छुपाए रखी। बाद में जेपी उन्हें लेकर टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट मुंबई लेकर गए। वहां पता चला कि चौथे स्टेज का कैंसर है। अप्रैल 1973 में उनका निधन हो गया, इसके बाद जेपी काफी टूट गए।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।