फ्री अल्ट्रासाउंड सुविधा धरी रह गई, मरीज निजी सेंटरों में देने को मजबूर हजारों रुपए
सरकारी अस्पतालों में मुफ्त अल्ट्रासाउंड की सुविधा होने के बावजूद मरीजों को निजी सेंटरों पर हजारों रुपए देने पड़ रहे हैं। इस कारण मरीजों को आर्थिक रूप से काफी परेशानी हो रही है, क्योंकि उन्हें निजी केंद्रों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। मरीजों को नि:शुल्क अल्ट्रासाउंड सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
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अनूप गुप्ता, जागरण, बरेली। हेपेटाइटिस, गले में गांठ, थायराइड आदि गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीजों के जल्द ठीक होना तो दूर, इलाज समय से शुरू कराने में ही लाले पड़ रहे हैं, क्योंकि अल्ट्रासाउंड की जांच कराने में तीन हफ्ते और कई बार एक महीने तक का इंतजार करना पड़ रहा है।
वजह यह है कि जिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की जांच कराने के लिए जितने मरीज आ रहे हैं, उनमें से हर दिन बमुश्किल 20 से 25 फीसदी मरीजों की ही जांच हो पा रही है। बाकी लोगों को अगली तारीख दे दी जाती है। ऐसे में अक्सर मरीजों को जांच कराने में एक महीने तक का समय लग जाता है, जिससे बीमारियों के बढ़ने का खतरा बना रहता है।
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जिला अस्पताल में हर दिन करीब एक से डेढ़ हजार लोगों की ओपीडी होती है। इनमें से आधे मरीजों को अगर पेट संबंधी कोई परेशानी है या फिर गले में गांठ, थायराइड या हेपेटाइटिस की दिक्कत का पता लगाना हो, तो चिकित्सक आम तौर पर पर्चे पर अल्ट्रासाउंड जांच कराने को लिख देते हैं। सस्ते इलाज के लिए आए मरीजों का लंबा संघर्ष यहीं से शुरू हो जाता है।
कारण यह है कि जिला अस्पताल में यह जांच कराना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। अल्ट्रासाउंड जांच के लिए यहां रोजाना 200 से 250 तक मरीज पहुंचते हैं, जिनकी जांच के लिए यहां सिर्फ एक रेडियोलाजिस्ट डा. राजकुमार ही तैनात हैं। ऐसे में मुश्किल से 60 से 70 लोगों की ही जांच हो पाती है। बाकी मरीजों को अगली तारीख दे दी जाती है।
दूर-दराज से आने वाला कोई मरीज अगर उस तारीख पर नहीं पहुंचता, तो उसे फिर से नई तारीख मिलती है। नतीजतन मरीजों को जांच कराने में तीन सप्ताह से एक महीने तक का वक्त लग जाता है। ऐसे में जिन मरीजों की तबीयत गंभीर है और जिन्हें फौरन इलाज की जरूरत है, उन्हें जांच पूरी न होने के कारण चिकित्सकों से सही और समय पर दवाइयां भी नहीं मिल पा रही है।
सरकारी में फ्री, प्राइवेट में 700 से 1500 रुपये तक फीस
सस्ते इलाज के लिए दूर-दराज से आने वाले मरीजों को तब झटका लगता है, जब जिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड फ्री होने के बावजूद उन्हें मजबूरी में निजी रेडियोलाजी सेंटरों पर ऊंची फीस देकर जांच करानी पड़ती है। जबकि प्राइवेट सेंटरों पर सामान्य जांच के लिए कम से कम 900 रुपये चार्ज देना पड़ता है।
एक निजी रेडियोलाजिस्ट के अनुसार, सामान्य जांच के अलावा भी कई अन्य श्रेणियों की जांचें होती हैं, जिनके लिए मरीजों से 1200 से 1500 रुपये तक फीस ली जाती है। चूंकि इलाज के दौरान मरीजों को कई बार अल्ट्रासाउंड की जरूरत पड़ती है, इसलिए केवल जांच कराने में ही उनकी जेब ढीली हो जाती है।
बर्बाद हो रही अल्ट्रासाउंड की दूसरी मशीन
जिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड के लिए अभी केवल एक ही मशीन से काम लिया जा रहा है, जबकि दूसरी मशीन धूल फांक रही है। वजह यह है कि करीब दो साल पहले यहां तैनात रेडियोलाजिस्ट डा. राजीव अग्रवाल का स्थानांतरण हो गया था। उनके बाद से अब तक उस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई। चिकित्सकों का कहना है कि जब जांचों की संख्या बहुत अधिक होती है तो कुछ मदद जूनियर डाक्टरों से ली जाती है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
यह सही है कि यहां जिस संख्या में मरीज अल्ट्रासाउंड कराने के लिए आते हैं, उसके मुकाबले जांचों की संख्या काफी कम है। रेडियोलाजिस्ट न होने से समस्या और भी गंभीर है। इसके लिए कई बार उच्चाधिकारियों को अवगत कराया जा चुका है।
– डा. राजकुमार, प्रभारी, अल्ट्रासाउंड विभाग, जिला अस्पताल

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