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    Kartik Purnima 2025 : यूं ही नहीं कहते इसे छोटी काशी...ब्रिटिश सरकार ने 121 वर्ष पहले दे दिया था नगर पंचायत का दर्जा

    By Ashwani Bhardwaj Edited By: Praveen Vashishtha
    Updated: Wed, 05 Nov 2025 06:50 PM (IST)

    अनूपशहर का कार्तिक मेला, जो हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है, अपनी पहचान खो रहा है। 121 वर्ष पूर्व ब्रिटिश सरकार ने इसकी व्यवस्था के लिए नगर पंचायत बनाई थी, लेकिन अब स्थानीय निकाय द्वारा स्थान निर्धारित न करने से मेला का स्वरूप बदल गया है। श्रद्धालुओं के स्नान के तरीके बदले हैं और मनोरंजन के साधनों की कमी है, जिससे मेले का आकर्षण कम हो रहा है।

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    अनूपशहर में कार्तिक पूर्णिमा मेले पर स्नान करते श्रद्धालु। जागरण

    जागरण संवाददाता, अनूपशहर। कार्तिक मेला अविदित काल से लग रहा है। ब्रिटिश सरकार ने मेले की व्यवस्थाओं को लेकर 121 वर्ष पूर्व नगर पंचायत का गठन किया था। समय परिवर्तन के साथ मेला का स्वरूप बदल चुका है। स्थानीय निकाय मेला लगने का स्थान निर्धारित नहीं कर सकी, इससे मेला पहचान खो रहा है।
    प्राचीनकाल से गंगा किनारे मेले में 15 दिन पूर्व श्रद्धालु अपनी कुटिया बनाकर स्नान करते थे। किंतु अब वाहनों से सिर्फ कुछ घंटों में गंगा स्नान कर वापस लौट जाते है। शासन द्वारा मेला को राजकीय घोषित कर दिया गया है, इससे मेला बढ़ने की उम्मीद है। छोटी काशी के नाम से विख्यात अनूपशहर का कार्तिक मेला ऐतिहासिक होने के साथ हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है।

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    ब्रिटिश सरकार द्वारा कार्तिक मेला की व्यवस्थाओं को लेकर ही वर्ष 1904 में नगर पंचायत का दर्जा दिया गया था। अब नगर पंचायत से नगर पालिका का दर्जा मिल गया है। स्थानीय निकाय की लापरवाही के चलते ही वर्तमान में मेला पूरी तरह अपना स्वरूप हो चुका है। निकाय ने मेला लगाने के लिए कोई स्थान निर्धारित नहीं किया गया। जिन स्थानों पर मेला के दुकानदार दुकानें लगाते थे, वहां स्थाई निर्माण कर दिया गया। जिससे मेला में दुकान लगाने का कोई स्थान नहीं बचा। अब दुकानदारों को स्थाई दुकानों के आगे दुकान लगाकर दोगुना किराया व्यय करना पड़ा है।

    मेला के आयोजन में अच्छाई व कमी का आंकलन करने के लिए मेला आयोजन की कोई स्थाई कमेटी का गठन नहीं किया गया है। जबकि अधिकारी, चेयरमैन, सभासद बदल जाते है। मेला का फीड बैक नहीं मिलता है। प्रदेश सरकार द्वारा मेला को राजकीय मेला का दर्जा दे दिया गया है। इससे खासी आर्थिक मदद मिलने लगी है। प्राचीन काल में मेला बैल गाड़ियों से आवागमन करता था, किंतु अब ट्रैक्टर, कार, मोटर, बाइक से आवागमन होता है। एक दो दिन से अधिक कोई नहीं रुकता है।

    मेला की व्यवस्थाओं के लिए मेला आयोजन कमेटी का गठन किए बिना मेला को खोया स्वरूप वापस लौटाना काफी कठिन होगा। मेला में आकर्षण के लिए सर्कस, काला जादू, चरख, झूले आदि मनोरंजन के साधन लगाने का पालिका के पास कोई निश्चित स्थान नहीं है। जिससे निजी खेतों में लगाने पर उन्हें अधिक राशि खर्च करनी पड़ती है। इस वर्ष पालिका द्वारा रोडवेज बस अड्डे के सामने पालिका की जमीन में मनोरंजन के साधन लगाने को उपलब्ध कराई गई, जबकि एक अन्य निजी खेत में भी चरख आदि लगाए है, किंतु मेला के आखिरी दिन तक एनओसी का विवाद चलता रहा। जबकि पूर्व में सभी मनोरंजन के साधन को अनूपशहर में ही अधिकारी बुलाकर एनओसी मौके पर ही दिला दी जाती थी।

    अधिकारी किसी भी घटना को रोकने के लिए भीड़ एकत्र नहीं होने देना चाहते। इसी कारण मेला से एक दिन पूर्व जहांगीराबाद दोराहे से तथा डिबाई दोराहे से वाहनों को दूसरे रास्तों पर डाइवर्ट करना शुरू कर देते हैं। जबकि श्रद्धालुओं के वाहनों को डाइवर्ट करने की कोई पूर्व योजना नहीं होती है।