बाबा कीनाराम जन्मोत्सव : 169 वर्ष तक जनकल्याण के लिए लीलाएं करने के बाद बाबा कीनाराम ने ली समाधि
अनिल कुमार गुप्ता के अनुसार बाबा कीनाराम जिनका जन्म 1601 में हुआ बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और संत शिवराम से दीक्षा ली। गिरनार पर्वत पर उन्हें दत्तात्रेय जी ने दर्शन दिए। वाराणसी के क्रीं कुंड में उन्होंने अघोरपंथ की गद्दी स्थापित की।

जागरण संवाददाता, अनिल कुमार गुप्ता, टांडाकला (चंदौली)। “जो न कर सकें राम, वह करें कीनाराम।” यह कहावत उस समय चर्चा में आई जब एक निःसंतान महिला भक्त शिरोमणि तुलसीदास के पास पुत्र की याचना के लिए पहुंची। तुलसीदास ने बताया कि तुम्हारे भाग्य में संतान सुख नहीं है। अतः तुम्हे संतान नहीं हो सकती।
वह महिला बाबा कीनाराम के पास पहुंची। बाबा ने अपनी छड़ी पांच बार उसके माथे से छुआई। जिसके फलस्वरूप उसके पांच पुत्र हुए, तभी से यह कहावत प्रचलित हो गई। 169 वर्षों तक जनकल्याण के लिए अनेक लीलाएं करने के बाद बाबा कीनाराम ने वर्ष 1770 में समाधि ले ली।
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महा कपालिक संत अघोराचार्य बाबा कीनाराम का जन्म सन 1601 में भाद्र पक्ष के अघोरचतुरदशी तिथि में जनपद के रामगढ़ गांव में अकबर सिंह की पत्नी मनसा देवी के तन से हुआ। परामर्श के अनुसार बालक के दीर्घ जीवी और महान कीर्तिमान होने के नाते बचपन से ही वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। खाली समय में वे अपने मित्रों के साथ रामधुन गाते थे।
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बारह वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह कर दिया गया और तीन वर्ष बाद गौना निश्चित हुआ। गौने की पूर्व संध्या पर इन्होंने अपनी मां से दूध-भात खाने के लिए मांगा। उस समय दूध भात खाना अशुभ माना जाता था। जो कि मृतक संस्कार के बाद खाया जाता था। मां के मना करने के बाद भी उन्होंने हठ करके दूध भात खाया। अगले दिन उनकी पत्नी की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ। समाचार से पता चला कि उनकी पत्नी की मृत्यु एक दिन पूर्व सायंकाल में ही हो चुकी थी। पूरा गांव आश्चर्यचकित था कि घर पर बैठे बैठे कीनाराम को पत्नी की मृत्यु की जानकारी कैसे हो गई।
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कुछ समय बाद घरवाले फिर से विवाह के लिए दबाव डालने लगे। जिससे परेशान होकर बाबा कीनाराम ने घर छोड़ दिया। घर छोड़ने के बाद वे घूमते हुए गाजीपुर जिले के कारों ग्राम जोकि अब बलिया जिले में है, वहां पहुंचे। वहां रामानुजी परंपरा के संत शिवराम की बड़ी प्रसिद्धि थी। कीनाराम जी उनकी सेवा में जुट गए और उनसे दीक्षा देने की प्रार्थना की। बाबा कीनाराम कुछ समय वहां रहकर के साधनाएं कीं। पत्नी की मृत्यु के बाद जब संत शिवराम ने पुनर्विवाह किया तो बाबा कीनाराम ने उन्हें छोड़ दिया।
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साक्षात भगवान शिव के अवतार ने बाबा कीनाराम को दिया था दर्शन
बाबा गिरनार पर्वत पर पहुंचे, जो औघडपंथी संतों की पुण्य तपोभूमि मानी जाती है। यहीं साक्षात शिव के अवतार महागुरु दत्तात्रेय ने बाबा कीनाराम को दर्शन दिए। इससे पूर्व दत्तात्रेय ने गुरु गोरखनाथ को भी यहीं दर्शन दिए थे। कीनाराम उत्तराखंड के जंगलों में पहुंचे। वहां विभिन्न स्थलों पर बाबा ने कई वर्षों तक साधनाएं कीं। तत्पश्चात वे वाराणसी के क्रीं कुंड में पहुंचे और यहां धूनी रमाई। क्रीं कुंड को बहुत ही सिद्ध स्थल माना जाता है। एक बार बाबा कालूराम ने कहा था कि यहां सभी तीर्थों का वास है। क्रीं कुंड में ही बाबा कीनाराम ने अघोरपंथ की सर्वोच्च गद्दी स्थापित की। यहां बाबा की जलाई हुई धूनी आज भी प्रज्वलित है।
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