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    Chandraprabha Abhyaran: वाराणसी से 57 KM दूर है चंद्रप्रभा अभयारण्य,सुंदरता में देता हैं नियाग्रा फॉल को टक्कर

    By Jagran NewsEdited By: Swati Singh
    Updated: Sat, 22 Jul 2023 09:15 AM (IST)

    Chandraprabha Abhyaran उत्तर प्रदेश सुंदरता में उत्तराखंड और हिमाचल से कम नहीं है। यूपी में आपको पहाड़ों सी सुंदरता और झरने देखने को मिलते हैं। वाराणसी से लगभग 57 किलोमीटर दूर चंदौली जिले में विंध्य पर्वत की गोद में स्थित चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य अति सुंदर दर्शनीय स्थल है। यहां प्रकृति ने फुरसत से झरने बनाए हैं। चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य का नाम चंद्रप्रभा नदी के नाम पर पड़ा था।

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    वाराणसी से 57 KM दूर है चंद्रप्रभा अभयारण्य

    चंदौली, प्रेम शंकर त्रिपाठी। वाराणसी से लगभग 57 किलोमीटर दूर चंदौली जिले में विंध्य पर्वत की गोद में स्थित चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य अति सुंदर दर्शनीय स्थल है। यहीं ऊंची पहाड़ियां है तो गुफाओं में बने भित्ति चित्र भी हैं। बाग, मचान, सनसेट प्वाइंट एंव चट्टानी गुफाओं के अलावा यहां निवास करने वाले आदिवासियों के पारंपरिक नृत्य-संगीत से सजी शाम जीवन भर न भूलने वाली स्मृतियों का हिस्सा बन जाती है।

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    जनपद में पिछले एक सप्ताह से कहीं तेज तो हल्की बारिश का सिलसिला जारी है। बारिश से जहां धरती की प्यास बुझ गई है, वहीं विंध्य पर्वत की श्रृंखलाएं झरने में तब्दील हो गईं हैं। सैकड़ों फीट ऊंची पहाड़ियों से कल-कल करते गिरते दूधिया पानी की जलधार देख ऐसा लग रहा, मानों पानी नहीं पिघली चांदी हो। बारिश ने हरे भरे पहाड़ों की शोभा में चार चांद लगा दिया है।

    इस मनोरम दृश्य को देख लोग पुलकित तो हो ही रहे हैं, मीलों फैले चंद्रप्रभा अभयारण्य की हरियाली के बीच पक्षियों का कलरव मन को सुकून पैदा कर रहा है। शनिवार को वनांचल के पर्वतीय इलाकों में हुई बारिश ने पशु पक्षियों को चहकने के लिए विवश कर दिया। तेज बारिश से विंध्य पर्वत की श्रृंखलाएं झरना बन गईं।

    निराली है प्राकृतिक छटा

    शिमला के सौंदर्य को समेटे विंध्य पर्वत की छटा निराली है। बारिश के दिनों में कल- कल करते झरनों की मधुर आवाज जेहन को तार-तार कर देती है। दूध जैसे सफेद व निर्मल पानी की धार विशाल चट्टानों को चीरते हुए जब सैकड़ों फीट खाई में गिरती है तो ऐसा लगता है जैसे पानी नहीं रूई के गोले आपस में गलबहियां कर रहे हों। पानी की फुहारें बादलों की गति अद्भुत नजारा उत्पन्न करती है।

    इस मनोरम दृश्य का अवलोकन कर लोगों का मन बाग-बाग हो जाता है। कल तक पानी की आस में आसमान निहार रहे वन्य जीवों की चहक देखते ही बन रही है। दादुर, मोर , पपीहा की आवाज से वन जहां गुलजार हो गया है, वहीं हिरणों के झुंड मन को आह्लादित कर रहे हैं। यहां की सुंदरता लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।

    कभी यहां था एशियाई सिंहों का राज

    78 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य का नाम चंद्रप्रभा नदी के नाम पर पड़ा था। इसका मतलब चांद की चांदनी होता हैष यह कर्मनाशा की सहायक नदी है और दोनों नदियां गंगा में मिलती हैं। अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1957 में की गई थी। अगले दो दशक तक अभयारण्य एशियाई सिंहों के लिए लोकप्रिय रहा।

    आज यहां तेंदुआ, लकड़बग्घा,भेड़िया, जंगली सूअर, सांभर, चिंकारा, चीतल, साही, घड़ियाल, अजगर व पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखने को मिलती हैं। अभयारण्य में बर्ड पार्क भी है, जिसमें पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। निकट ही कैमूर पर्वतमाला पर स्थित नौगढ़ का किला और 'चंद्रकांता' उपन्यास के रहस्यों को अपने में समेटे विजयगढ़ का किला भला कौन नहीं देखना चाहेगा।

    अनुपम आभा वाले जलप्रपात

    चंद्रप्रभा अभयारण्य में मौजूद दो जलप्रपात देवदरी और राजदरी की अनुपम आभा और सुंदरता का शब्दों में बखान करना नामुमकिन है। घने जंगल के बीच ऊंचाई से नीचे गिरते स्वच्छ पानी की तेज आवाज की लोकप्रियता हाल के वर्षों में प्रदेश और देश की सीमा को वर्षों में प्रदेश और देश की सीमा को लांघकर विदेश तक पहुंच गई है। वर्षाकाल में चंद्रप्रभा बांध से पानी छोड़ा जाता है तो दोनों जलप्रपात विश्व विख्यात नियाग्रा फॉल से कम सुंदर नहीं लगते। यही कारण है कि इस वर्ष अब तर अमेरिका, इंग्लैंड, कोरिया, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस समेत 107 देशों के पर्यटक यहां आ चुके हैं।

    सुविधाएं बढ़ने से बदल रही तस्वीर

    कुछ वर्ष पहले यहां रात गुजारने की कोई व्यवस्था नहीं होने से सैलानी आते, लेकिन शाम होते-होते लौट जाते थे। अब चकिया-नौगढ़ मार्ग के मध्य जमसोती के पूर्व घने जंगलों के बीच ठहरने की व्यवस्था से तस्वीर बदल रही है। ट्रेकिंग और सफारी की सुविधा के साथ रात में चांद निहारने के लिए टेलीस्कोप की व्यवस्था भी है।