UP के कुख्यात डकैत 'ठोकिया' के भाई सहित 4 को 10 साल की जेल, 20 वर्ष बाद आया फैसला
उत्तर प्रदेश के कुख्यात डकैत ठोकिया के भाई लालजी समेत चार लोगों को 20 साल पुराने अपहरण और फिरौती के मामले में प्रयागराज की अदालत ने 10 साल की जेल की सजा सुनाई है। 2004 के इस मामले में आरोप सिद्ध होने पर अदालत ने यह फैसला सुनाया, जिससे पीड़ित परिवार को न्याय मिला है।

जागरण संवाददाता, चित्रकूट। पाठा के कुख्यात और खूंखार डकैत अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया के गैंग पर 20 साल पहले दर्ज गैंगस्टर एक्ट के मुकदमे में आखिरकार अदालत ने फैसला सुना दिया। गैंग्स्टर कोर्ट के अपर सत्र न्यायाधीश रवि दिवाकर ने शुक्रवार को 106 पन्नों का विस्तृत निर्णय सुनाते हुए गिरोह के चार सदस्यों को 10 वर्ष की कठोर कारावास और दो-दो लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।
यह मुकदमा वर्ष 2005 में कोतवाली कर्वी में तत्कालीन प्रभारी हरिनाथ शर्मा ने दर्ज कराया था, जिसमें गैंग लीडर ठोकिया सहित कुल 10 डकैत आरोपित बनाए गए थे। आरोप पत्र के समय के समय ठोकिया सहित पांच आरोपियों की मौत हो गई थी, जबकि एक आरोपित बाद में मर गया था।
घात लगाकर किया था हमला
गौरतलब है कि 22 जुलाई 2007 को ददुआ के मारे जाने के बाद, अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया ने 23 जुलाई को साथियों संग एसटीएफ की टीम पर घात लगाकर हमला किया था, जिसमें छह जवान शहीद हो गए थे। इसी के बाद इस गैंग की खूंखार छवि और ज्यादा उभरकर सामने आई थी। अगस्त 2008 में ठोकिया भी सिलखोरी गांव में एक एनकाउंटर में एसटीएफ के हाथों मारा गया था।
वर्ष 2012 में पेश चार्जशीट में दस आरोपियों के नाम थे। इनमें से ठोकिया, उसके चाचा राजकरण, चुन्नीलाल, सुदेश पटेल उर्फ बलखड़िया और रामरुचि की पहले ही मौत हो चुकी थी। मुकदमे की सुनवाई के दौरान आरोपी कमलेश कुमार की भी मृत्यु हो गई। शेष बचे पांच आरोपियों में से ठोकिया का भाई कलेश पटेल, चाचा नत्थू पटेल, राममिलन उपाध्याय और हीरालाल को दोषसिद्ध पाया गया।
जवानों की हत्या का जिक्र
इनमें से लोखरिया मजरा घुरेटनपुर थाना भरतकूप निवासी कलेश पटेल और नत्थू पटेल कोर्ट में उपस्थित रहे, जबकि नैनी जेल में बंद राममिलन उपाध्याय (मानपुर) और हीरालाल (सिलखोरी) वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी पेश नहीं हो सके। आरोपपत्र में ठोकिया द्वारा की गई जघन्य घटनाओं जैसे दो सिपाहियों की हत्या, बगहिया नरसंहार और एसटीएफ के जवानों की हत्या का जिक्र किया गया था।
कोर्ट ने इन सभी घटनाओं को संज्ञान में लेते हुए चित्रकूट क्षेत्र में डकैतों के आतंक और उनके सामाजिक प्रभाव को भी रेखांकित किया। निर्णय में न्यायाधीश ने साफ कहा कि समाज में कानून व्यवस्था के लिए पुलिस की भूमिका अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने अपने फैसले में उल्लेख किया ‘माना पुलिस है खराब, पर बिना पुलिस के चलकर देखो’। यह पंक्ति पुलिस व्यवस्था की अनिवार्यता को दर्शाती है।
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