UP News: पत्नी को पड़ गई रील देखने की आदत, पति से बंद हो गई बात; रिश्तों में दरार डाल रहा सोशल मीडिया!
फिरोजाबाद में इंटरनेट और मोबाइल का अत्यधिक उपयोग पारिवारिक रिश्तों में दरार और मानसिक बीमारियों का कारण बन रहा है। मनोरोग विभाग में ऐसे मामले बढ़ रहे हैं जहाँ दंपतियों के बीच मोबाइल के कारण झगड़े हो रहे हैं। चिकित्सक आभासी दुनिया और वास्तविकता के अंतर को समझाकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं और लोगों को घरवालों के साथ समय बिताने की सलाह दे रहे हैं।

जागरण संवाददाता, फिरोजाबाद। मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया अब पारिवारिक रिश्तों में दरार एवं लोगों में बीमारी का करण बन रही है। स्थिति यह है एक ही घर में रहते हुए लोग दिनभर बिना एक दूसरे से बात किए हुए ही गुजार देते हैं।
स्वशासी मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग में कई ऐसे मामले आए हैं। जिनमें दंपती के बीच मोबाइल के कारण कहासुनी और मारपीट होने लगी। रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच गया। तब स्वजन उन्हें लेकर अस्पताल पहुंचे। मनोरोग विभाग में हर माह ऐसे 10 से अधिक मामले आते हैं।
केस-वन
टूंडला के एक दंपती की शादी एक वर्ष पूर्व हुई थी। पत्नी को मोबाइल पर रील्स देखने की आदत पड़ गई। स्थिति थी कि अकेले न होने पर भी रील देखने में व्यस्त रहती। कुछ कहने पर पति से विवाद करने लगती। दंपती की आपस में बातचीत बंद हो गई। फिर बात-बात में विवाद होने लगा। जब घरवालों को पता चला तो मेडिकल कॉलेज अस्पताल लेकर पहुंचे। काउंसिलिंग के बाद अब स्थिति में सुधार है।
केस-दो
सिरसागंज के एक दंपती के 15 वर्ष के बेटे को रील और आनलाइन गेम खेलने की आदत पड़ गई। वह स्कूल से आते ही अपने कमरे का दरवाजा बंद कर मोबाइल देखने में व्यस्त हो जाता। घरवाले मोबाइल छीन लेते तो वह माता-पिता से झगड़ने लगता। उनकी कोई बात सुनने को तैयार नहीं होता। परेशान स्वजन उसे मेडिकल कॉलेज लेकर आए। काउंसिलिंग एवं उपचार के बाद उसकी आदत में सुधार है।
इंटरनेट मीडिया पर अधिक समय देना है बड़ी वजह
अधिक मोबाइल का उपयोग के साथ इंटरनेट मीडिया और आनलाइन गेम खेलने का नशा ऐसा होता है कि लोग सब कुछ भूल जाते हैं। वे इसमें इतना खो जाते है कि उन्हें सिर्फ एकांत अच्छा लगता है। वह चुपचाप अपनी दुनिया में खोए रहते हैं। उनके आसपास क्या हो रहा है। इससे उनका कोई सरोकार नहीं रहता। लोग खाली समय का उपयोग करने के लिए इसको देखना शुरू करते हैं, लेकिन कब यह नशे की तरह हावी हो जाता है। लोगों को इसका पता ही नहीं चलता है।
मनोरोग विभाग में हर माह आते 10 से अधिक मामले
मेडिसिन एवं मनोरोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर मनोज कुमार बताते हैं कि इंटरनेट मीडिया आभासी दुनिया है। इससे पीड़ित मरीजों को काउंसिलिंग के जरिए आराम से आभासी दुनिया और वास्तविकता का अंतर बताया जाता है। इससे होने वाले नुकसान की जानकारी दी जाती है। कुछ मामलों में होता है कि मरीज स्वयं छोड़ना चाहता है, लेकिन मोबाइल देखने का नशा इस कदर होता है कि छोड़ नहीं पाता है। तब उन्हें दवा देकर इसका उपचार किया जाता है।
ये है वजह
- घरवालों से बात कम करना।
- आभासी दुनिया की चमक-दमक भरी जिंदगी से स्वयं की तुलना करना।
- वास्तविक दुनिया से कटकर आभासी दुनिया में खो जाना।
- अविश्वास की भावना उत्पन्न होना और शक करना।
- सामने वाली की बात को अनसुना कर देना।
ये उपचार
- घरवालों के साथ समय बिताएं, उनसे बातचीत करें।
- एक साथ बाहर घूमने जाएं, साथ में बैठकर खाएं।
- वास्तविक और आभासी दुनिया का फर्क समझें।
- दिन में कितनी देर मोबाइल का उपयोग करना है इसकी समय सीमा तय करें और सख्ती से पालन करें।
अक्सर ऐसे मरीज सामने आते हैं, जिन्हें मोबाइल पर रील्स, गेम खेलने की आदत लग चुकी होती है। स्वजन उनकी इस आदत से परेशान होते हैं। मना करने पर विवाद, हंगामा करने लगते हैं। ऐसे लोगों को प्रेम से बातचीत कर धीरे-धीरे वास्तविक और आभासी दुनिया का अंतर बताया जाता है। फिर इसके लाभ और नुकसान को बताया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर दवाएं भी देते हैं।
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