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    क्रय केंद्र पर अंगूठा न लगने पर ऐसे होगी धान खरीद, फर्जीवाड़ा रोकने के लिए प्रशासन अलर्ट

    Updated: Tue, 07 Oct 2025 09:03 PM (IST)

    गाजीपुर में धान खरीद को पारदर्शी बनाने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। अब किसानों और केंद्र प्रभारियों की आँखों को स्कैन करके धान की तौल की जाएगी। इससे पहले उंगली के निशान लिए जाते थे जिसमें कई बार दिक्कत होती थी। इस नई व्यवस्था से किसानों को भुगतान में भी देरी नहीं होगी और धोखाधड़ी पर भी लगाम लगेगी।

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    आंख की पुतली स्कैन कर होगी धान व बाजार की खरीद।

    जागरण संवाददाता, गाजीपुर। जनपद में किसानों से एक अक्टूबर से बाजार व एक नंबर से धान की खरीद होनी है। इसके लिए जनपद में 153 केंद्र धान व तीन केंद्र बाजरा के लिए खोले गए है। इसमें 51 मिलों को संबंद्ध किया गया है। धान खरीद में फर्जीवाड़ा रोकने के लिए इस बार शासन ने तकनीक का सहारा लिया है।

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    किसान व केंद्र प्रभारियों की आंखों की स्कैनिंग के बाद ही तौल हो सकेगी। अगर इन दोनों के स्थान पर कोई भी बिक्री या खरीद का प्रयास करेगा तो सिस्टम उसे रोक देगा।

    अब तक धान क्रय केंद्रों पर ई-पाप मशीन के माध्यम से ही खरीद होती थी। इसमें आधार सत्यापन के लिए अंगुली या अंगूठे का निशान लिया जाता था।

    उसके बाद ही तौल होती थी, लेकिन कई बार बुजुर्ग किसानों की अंगुलियों के निशान साफ नहीं आने या चोट के कारण उन्हें बैरंग कर दिया जाता था या फिर इसके आधार पर तौल में उन्हें नियम से छूट दे दी जाती थी, जिसकी आड़ में माफिया भी फायदा उठाते थे।

    केंद्र प्रभारियों के स्थान पर खरीद में दूसरे लोगों के भी क्रय केंद्रों पर सक्रिय रहने व तौल करने के मामले सामने आए। इस तरह की गड़बड़ियों को रोकने के लिए शासन ने इस बार ई-पाप मशीन में नया फीचर जोड़ा गया है, जिसके तहत आंख की पुतली स्कैन करके ही धान की खरीद की प्रक्रिया की जा सकेगी। जिससे किसानों को अंगुली या अंगूठे की छाप देने की आवश्यकता नहीं होगी।

    इससे फर्जीवाड़े पर भी काफी हद तक अंकुश लग सकेगा। जिला विपणन अधिकारी अनुराग पांडेय ने बताया कि पहले केंद्र प्रभारी अपनी आंख की पुतली स्कैन कर मशीन को सक्रिय करेगा। उसके बाद किसान की पुतली की स्कैनिंग होगी। दोनों का मिलान होने के बाद तौल की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

    इससे किसानों को भुगतान में होने वाली देरी भी नहीं होगी। क्योंकि पूर्व पहले कई बार सत्यापन विफल होने के कारण खरीद ऑनलाइन पोर्टल पर अंकित नहीं हो पाती थी, जिस कारण किसानों को भुगतान में समय लगता था।

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