Mobile Addiction: डेढ़-दो साल में ही मोबाइल फोन ने छीन ली खुशियां, बच्चे बन गए उपद्रवी
गोरखपुर में मोबाइल की लत से बच्चों में मेनिया के मामले बढ़ रहे हैं। देर रात तक मोबाइल देखने से नींद पूरी न होने के कारण डोपामिन का स्राव बढ़ जाता है जिससे चिड़चिड़ापन और मारपीट जैसे लक्षण दिखते हैं। विशेषज्ञ बच्चों को मोबाइल देते समय सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं क्योंकि बोलना सीखने में भी दिक्कतें आ रही हैं।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। मोबाइल एडिक्शन की वजह से अवसाद के अनेक रोगी ओपीडी में पहुंचते हैं। लेकिन, अब इसकी वजह से बच्चे मेनिया (उन्माद रोग) के शिकार भी होने लगे हैं। डाक्टरों के अनुसार देर रात तक मोबाइल देखने से नींद पूरी नहीं हो रही है।
इस वजह से उनके मस्तिष्क में डोपामिन न्यूरो ट्रांसमीटर का स्राव अधिक हो रहा है। इससे चिड़चिड़ापन, तेज आवाज में बोलना, ज्यादा बोलना, बात-बात पर विवाद करना, तोड़-फोड़ व स्वजन से मारपीट उनकी दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। ऐसे बच्चे गलत काम से रोकने पर माता-पिता को दुश्मन समझने लगे हैं।
जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में इस सप्ताह एक 11 साल की बच्ची को लेकर स्वजन पहुंचे। जो मात्र डेढ़ साल में ही मेनिया (उन्माद रोग) की शिकार हो गई थी। इसका प्रमुख कारण रहा कि देर रात तक मोबाइल देखती थी, इसकी वजह से उसकी नींद पूरी नहीं हो पाती थी।
एक दिन रात को घर से भाग गई, माता-पिता ने रोकने की कोशिश की तो उन्हें दुश्मन समझने लगी और घृणा करने लगी। बात-बात पर तेज आवाज में बोलना, तोड़-फोड़ व मारपीट उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। उसने स्कूल जाना बंद कर दिया। आर्यनगर की 14 वर्षीय बच्ची व तारामंडल के 15 वर्षीय किशोर के साथ भी यही हुआ।
देर रात तक इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट डालना और लाइक-कमेंट देखना उनकी आदत में आ गया। लाइक-कमेंट कम मिलने से पहले अवसाद में चले गए। जब स्वजन ने मोबाइल कम देखने या न देखने की सलाह दी तो मारपीट पर उतारू हो गए। कभी अवसाद और कभी मेनिया से पीड़ित हो रहे थे। उनका तीन माह से उपचार चल रहा है। इन सभी बच्चों को डेढ़ से दो साल पहले स्वजन ने मोबाइल दिया था।
बोलना नहीं सीख पा रहे छोटे बच्चे
समेकित क्षेत्रीय कौशल विकास पुनर्वास एवं दिव्यांगजन सशक्तीकरण केंद्र (सीआरसी) में प्रति सप्ताह मोबाइल एडिक्शन के शिकार पांच-छह बच्चे ऐसे पहुंच रहे हैं तो तीन साल या इससे अधिक उम्र के हो गए हैं और बोलना नहीं सीख पाए हैं। जो थोड़े-बहुत बोल भी रहे हैं वे हकला रहे हैं, आवाज साफ नहीं निकल रही है।
स्वजन ने सीआरसी को बताया कि उन्हें फुसलाने के लिए शुरुआत में मोबाइल थमा दिया जाता था। बाद में वे मोबाइल से खेलने लगे। अब मोबाइल छोड़ना ही नहीं चाहते। छीनने पर रोने लगते हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि मोबाइल की वजह से ही वे बोलना नहीं सीख पाए। वे बोलना सीख सकें, इसके लिए उनसे बार-बार बात करने की जरूरत है।
पहले मोबाइल एडिक्शन की वजह से मेनिया के शिकार बच्चे दो-चार माह में एक आते थे। लेकिन इधर तीन माह में ही तीन बच्चे आए जो मोबाइल की वजह से इस बीमारी के शिकार हो गए थे। उनका उपचार चल रहा है। बच्चों को मोबाइल दें तो समय-समय पर ध्यान भी देते रहें कि वे मोबाइल उपयोग कर रहे हैं या दुरुपयोग। पढ़ाई के लिए मोबाइल यदि जरूरी है तो उतना ही जरूरी उनकी निगरानी भी है।
-डा. अमित शाही, मानसिक रोग विशेषज्ञ जिला अस्पताल
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