'मंदिरों की तरह बचाएं तालाब, नहीं तो डूबेंगे और सूखेंगे शहर', स्वर्ण जयंती में बोलीं डॉ. सुनीता नारायण
सीएसई की महानिदेशक और पर्यावरणविद् डॉ. सुनीता नारायण ने गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के स्वर्ण जयंती समारोह में कहा कि बढ़ते जलवायु संकट से शहरों को बचाने का समाधान स्थानीय जल स्रोतों की रक्षा में है। उन्होंने चेताया कि भारतीय शहर बाढ़ और सूखे जैसे दो चरम संकटों के बीच फंसते जा रहे हैं।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। 'देश के शहरों को बढ़ते जलवायु संकट से बचाने का रास्ता स्थानीय जल स्रोतों की रक्षा में ही छिपा है।' यह दो टूक संदेश प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की महानिदेशक पद्मश्री डॉ. सुनीता नारायण ने शनिवार को गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के स्वर्ण जयंती समारोह में दिया। उन्होंने कहा कि भारत के शहर दो चरम संकटों, बाढ़ और सूखे के बीच फंसते जा रहे हैं और इसका सबसे बडॉ समाधान है कि तालाबों, नालों और वर्षा जल संरक्षण को मंदिर जैसी पवित्रता के साथ बचाया जाए।
डॉ. नारायण ने स्पष्ट कहा कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बडॉ प्रभाव पानी पर दिख रहा है। कहीं बादल फटने जैसे हालात, कहीं महीनों तक सूखा। ऐसे में वर्षा की हर बूंद को रोकना ही शहरों के भविष्य को सुरक्षित कर सकता है। उन्होंने चेतावनी दी- अगर तालाबों और प्राकृतिक जल मार्गों को न बचाया गया तो शहर बरसात में डूबेंगे और गर्मी में सूखेंगे। तालाब सिर्फ जल संग्रहण नहीं, बल्कि भूजल रीचार्ज का सबसे बडॉ आधार हैं। जिस शहर ने तालाब बचाए, उसने अपना भविष्य बचाया।
उन्होंने हिमालयी राज्यों की नाजुक स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि वहां विकास के नाम पर विनाश हुआ है। पहाड़ों की आर्थिक ताकत उनकी सुंदरता है, लेकिन अनियंत्रित निर्माण, नदी-प्रवाह अवरोध व लगातार हाइड्रो पावर परियोजनाओं ने आपदाओं को जन्म दिया है। हिमाचल, उत्तराखंड व कश्मीर में हाल की तबाहियां इसी का परिणाम हैं।
सीवर नहीं, फीकल स्लज प्रबंधन देश के लिए उपयुक्त
डॉ. नारायण ने दिल्ली के प्रदूषण और जल प्रबंधन की विफलताओं का उल्लेख करते हुए कहा-आज भी दिल्ली की 50 प्रतिशत आबादी सीवर लाइन से नहीं जुड़ी। नालों में जाने वाला गंदा पानी बिना उपचार के नदियों-तालाबों को प्रदूषित कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश के लिए महंगे भूमिगत सीवरेज नेटवर्क से बेहतर विकल्प फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट हैं, जिन्हें केंद्र सरकार अब बढ़ावा दे रही है।
कचरा प्रबंधन : प्लास्टिक ने बनाई अनसुलझी समस्या
डॉ. नारायण के अनुसार शहरों के 60–70 प्रदूषित कचरे में गीला कचरा होता है। जब तक घर-घर गीला और सूखा कचरा अलग नहीं होगा, तब तक प्लास्टिक और कचरे की समस्या खत्म नहीं हो सकती। उन्होंने इंदौर का माडल सुझाते हुए कहा कि हर शहर को गीले कचरे से खाद और गैस बनाने की दिशा में बढ़ना चाहिए।

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