UP की इस यूनिवर्सिटी को लेकर बड़ा खुलासा, STF के कर्मचारियों ने भी कराई थी फर्जी डिग्री-मार्कशीट की खरीद
हापुड़ में मोनाड यूनिवर्सिटी के फर्जी डिग्री मामले में एसटीएफ ने दो साल की मेहनत के बाद कई राज्यों से सबूत जुटाए। अधिकारियों ने फर्जी ग्राहक भेजकर डिग्रियां खरीदीं। न्यायालय में आरोपियों की जमानत रद्द कराने के लिए प्रभावी साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएंगे। विजेंद्र हुड्डा के कार्यकाल के बाद के ही साक्ष्य अभी तक मिले हैं। जिलाधिकारी ने प्रभावी तथ्यों को न्यायालय में रखने के निर्देश दिए हैं।

ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। हापुड़ में मोनाड के फर्जी डिग्री मामले में नई जानकारी सामने आई है। एसटीएफ ने इस मामले में कार्रवाई करने से पहले दो साल तक मेहनत की थी। हरियाणा, पंजाब और राजस्थान तक भी एसटीएफ की टीम साक्ष्य जुटाने के लिए गईं थीं।
इसके साथ ही अधिकारियों ने भी मोनाड से फर्जी डिग्रियों की खरीद कराई थी, जिससे प्रभावी साक्ष्य हाथ लग गए थे। उसके बाद ही कार्रवाई का निर्णय लिया गया। अब एसटीएफ ने न्यायालय में प्रभावी साक्ष्यों को रखने की तैयारी कर ली है। जिससे आरोपितों की जमानत को केंसिल कराया जा सके। इस मामले में शुक्रवार को न्यायालय में जमानत पर सुनवाई होगी।
मोनाड यूनिवर्सिटी में फर्जी डिग्री-मार्कशीट की बिक्री का धंधा कोविड के तत्काल बाद आरंभ हो गया था। कोविड के समय पर यूनिवर्सिटी को विजेंद्र हुड्डा ने खरीद लिया था। अभी तक एसटीएफ के पास विजेंद्र हुड्डा के यूनिवर्सिटी लिए जाने के बाद तक की फर्जी डिग्री-मार्कशीट के ही साक्ष्य हैं। उससे पहले की फर्जी मार्कशीट अभी तक एसटीएफ के हाथ नहीं लगी है।
एसटीएफ के अधिकारियों ने बताया कि विजेंद्र हुड्डा से पहले की फर्जी मार्कशीट हाथ लगती है ताे उस समय की भी जांच आरंभकर दी जाएगी। एसटीएफ के अधिकारियों ने न्यायालय में रखने के लिए प्रभावी तथ्य जुटा लिए हैं। जिनके आधार पर न्यायालय में आरोपितों की जमानत अर्जियों को खारिज कराया जा सकेगा।
एसटीएफ के साक्ष्य प्रभावी होने का सबसे बड़ा पहलू यह है कि अधिकारियों ने फर्जी ग्राहक भेजकर खुद ही फर्जी डिग्री-मार्कशीट खरीद कराई थीं। एसटीएफ के उच्चाधिकारियों के अनुसार मोनाड पर छापामारी एकाएक नहीं की गई। ऐसा भी नहीं है कि दो-तीन महीने पहले किसी ने एसटीएफ से शिकायत की हो और उसके बाद कार्रवाई की गई है।
एसटीएफ के अधिकारियों के संज्ञान में फर्जी डिग्री का मामला 2023 में अक्टूबर में सामने आया था। उसके बाद एक स्पेशल टीम का गठन किया गया। टीम ने इस मामले में यूपी में तथ्य नहीं जुटाने का निर्णय लिया। इससे अभियान के लीक हो जाने का खतरा था। टीम ने राजस्थान, हरियाणा व पंजाब में अपना जाल बिछाया। वहां से साक्ष्य जुटाए गए। उसके बाद फर्जी ग्राहक तैयार करके माेनाड में भेजे गए। एसटीएफ द्वारा भेजे गए ग्राहकों ने पूरा मामला रिकॉर्ड कर लिया। उसके बाद डिग्रियों को सत्यापन के लिए भेजा गया।
यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने फर्जी डिग्रियों को सत्यापित करके असली बताते हुए रिपोर्ट दे दी। तब कहीं जाकर एसटीएफ की टीम ने हापुड़ में आकर तथ्य जुटाने आरंभ किए। हालांकि इसकी भनक मुख्य आरोपित व यूनिवर्सिटी के मालिक हुड्डा को लग गई थी। उन्होंने रातोंरात विदेश भागने का निर्णय कर लिया। इसकी जानकारी होते ही, आनन-फानन में छापामारी कर आरोपितों को दबोच लिया गया था।
जिलाधिकारी अभिषेक पांडेय ने भी एसटीएफ के अधिकारियों के साथ बैठक करके प्रभावी तथ्यों को न्यायालय में रखने को कहा है, जिससे आरोपितों को जमानत नहीं मिल सके। डीएम के आदेश पर ही इस मामले में तेज-तर्रार निजी अधिवक्ताओं को भी एसटीएफ का सहयोग करने के लिए नियुक्त किया गया है।
यूनिवर्सिटी के अंदर एक भी फर्जी मार्कशीट नहीं छापी गई है। यहां से फर्जी मार्कशीट की बिक्री नहीं की गई है। मेरे वीसी रहने के दौरान कैंपस में कोई अवैध धंधा संचालित नहीं हुआ है। कोई व्यक्ति अपने कक्ष में कुछ कर रहा हो या बाहर से लेकर आ रहा हो, तो मुझको जानकारी नहीं है। मेरे पास किसी की जांच का अधिकार नहीं है। - डा. प्रोफेसर एम.जावेद- वीसी मोनाड

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