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    अब आलू खाने से नहीं बढ़ेगा ब्लड शुगर, यूरिक एसिड भी रहेगा कंट्रोल; DNA नियंत्रित कर बीज से की जाएगी बुवाई

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 10:27 PM (IST)

    सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट ने आलू पर किए शोध को पूरा कर लिया है। अब आलू की बुवाई कंद की जगह बीज से होगी, जिससे आलू की गुणवत्ता में सुधार होगा। बीज में डीएनए को नियंत्रित करके सोलानिन और चाकोनिन को कम किया जा सकेगा, जिससे कई बीमारियों से राहत मिलेगी। नई विधि से तैयार आलू के बीज अगले साल से किसानों को मिलेंगे।

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    ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। आलू पर चल रहा सीपीआर इंडिया का शोध अब पूरा हो गया है। इससे आलू की बुवाई कंद की बजाय बीज से कराने की तैयारी है। बीज में आलू के डीएनए-क्रामोजोम को नियंत्रित करना आसान होगा। उससे आलू की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकेगा। वहीं जीन में बदलाव से आलू के सेवन से ग्लूकोइनडेक्स में सुधार होता है, जिससे मधुमेह और अन्य बीमारियों के रोगी इसका आराम से प्रयोग कर सकेंगे।

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    वहीं, आलू की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकेगा। उसके बाद आलू में कार्बोहाईड्रेट, सोलानिन और चाकोनिन काे कम किया जा सकेगा। जिससे कई प्रकार की बीमारियों और आलू के सेवन से पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सकेगा।

    सीपीआर इंडिया ने इसका शोध पूरा कर लिया है। अगले साल से टीपीएस डिपलाइड विधि से तैयार होने वाली आलू की नई प्रजातियों का बीज उपलब्ध होगा। इससे आलू को भी बीज से बोया जाएगा। अभी तक अभी तक आलू का कंद टेट्रालाइड तकनीक से तैयार किया जाता है।

    आलू देश-दुनिया के सभी क्षेत्रों में पैदा होने वाली फसल है। इसका प्रयोग भी विभिन्न रूप से लगभग सभी लोग करते हैं। अभी तक आलू परंपरागत तरीके से बोया जाता है। इसके कंद को भूमि में दबाकर नई फसल तैयार की जाती है। इस कंद को टेट्रालाइड विधि से तैयार किया जाता है। इसके जीन में क्रोमोसोम के चार गुणसूत्र होते हैं।

    ऐसे में किसी न किसी गुणसूत्र में पुरानी प्रजाति के गुणधर्म पहुंचने की आशंका बनी रहती है। सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीपीआरआई) इंडिया द्वारा एक शोध को हाल ही में पूरा किया गया है। इसमें आलू का बीज अेट्रालाइड की बजाय डिपलाइड विधि से तैयार किया जाएगा। इसके जीन में क्रोमोसोम के दो गुणसूत्र होंगे।

    उनको एक्सपर्ट आसानी से नियंत्रित कर पा रहे हैं। इससे आलू के परंपरागत गुणधर्म में बदलाव किया गया है। इससे आलू का ग्लूकोइंडेक्ट सुधारा गया है। जिससे ग्लूकोज के रिलीज होने की गति को कम किया जा सकेगा। वहीं कार्बोहाइड्रेट का स्तर भी कम किया जा सकेगा। इससे मधुमेह और मोटापे के रोगियों द्वारा आलू सामान्य रूप से प्रयोग किया जा सकेगा।

    वहीं, आलू के डीएनए में सोलानिन और चाकोनिन को नियंत्रित किया जा सकेगा। इससे जी घबराने, सिर चकराने, पेट फूलने और उल्टी होने की पारंपरिक परेशानियों को कम किया जा सकेगा। ऐसे में आलू को कम कैलौरी के खाद्य पदार्थ के रूप में तैयार करने में मदद मिल सकेगी।

    इससे ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर के रोगी आराम से प्रयोग कर सकेंगे। आलू से गाउट या बढ़े हुए यूरिक एसिड वाले लोगों को परेशानी होती है। नई प्रजातियों के आलू में प्यूरीन की मात्रा को कम किया जा सकेगा। इससे गुर्दे के रोगी भी आराम से प्रयोग कर सकेंगे।

    आलू में यह होगा बदलाव

    कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डाॅ. अरविंद यादव ने बताया कि आलू की बुआई अब कंदों (ट्यूबर) के बजाय 'सच्चे आलू के बीज' (टीपीएस) से की जा सकती है। जिससे आलू उत्पादन की प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव आया है। आलू के बीज, या टीपीएस, आलू के पौधों के फूल आने के बाद बनने वाली फलियों से प्राप्त छोटे-छोटे बीज होते हैं।

    ये सामान्य कंद वाले बीजों से अलग होते हैं। इससे फसलों में होने वाली बीमारियों को भी नियंत्रित किया जा सकेगा। आलू के बीज से अक्सर कई तरह के वायरस और बीमारियां फैलने का खतरा होता है। टीपीएस से इसको कम किया जा सकता है। जिससे स्वस्थ और रोग-मुक्त फसल पैदा हो सकेगी।

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    हमने आलू का शोध पूरा कर लिया है। आने वाले साल में आलू को कंद की बजाय बीज से बोया जाएगा। इसको ट्रायल के लिए प्रत्येक प्रदेश को दिया जाएगा। उसके बाद किसानों को आवंटन आरंभ हो जाएगा। बीज से आलू की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार हो रहा है। इसमें कार्बोहाईड्रेट सहित कई तत्वों को नियंत्रित कर लिया गया है। इससे आलू की फसल में कम बीमारी लगेगी और आलू का सेवन करने से भी बीमारों को डर नहीं लगेगा।


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    - डाॅ. नीरज शर्मा- इंडिया हेड- सेंट्रल पोटेटो रिसर्च इंस्टीट्यूट-इंडिया।