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    सेहत की बात : गर्भवती के लिए खतरे की घंटी एनीमिया, कानपुर में 80 प्रतिशत महिलाएं प्रभावित

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 08:18 PM (IST)

    कानपुर के जच्चा-बच्चा अस्पताल में 80% गर्भवती महिलाओं में एनीमिया पाया गया है जिससे शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास पर खतरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एनीमिया गर्भावस्था के लिए एक गंभीर खतरा है जिससे आक्सीजन की कमी होती है। डाक्टर रश्मि यादव ने बताया कि हीमोग्लोबिन की कमी से शरीर में आक्सीजन की सप्लाई प्रभावित होती है।

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    एनीमिया से गर्भ में पल रहे बच्चे को भी खतरा।

    जागरण संवाददाता, कानपुर। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) की ओर से एनीमिया (Anemia) गर्भवती के लिए सबसे बड़ा खतरा बन रहा है। इसकी चपेट में आने से गर्भवती के साथ उसके गर्भ में पल रहे शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास भी बाधित हो रहा है। जीएसवीएम मेडिकल कालेज के जच्चा-बच्चा अस्पताल की ओपीडी में हर दिन आ रहे 80 प्रतिशत मामलों में गर्भवतियों में एनीमिया का खतरा मिल रहा है। जिनको डे-केयर एनीमिया वार्ड में उपचारित किया जा रहा है।

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    एनीमिया के कारण खून में आक्सीजन की कमी हो जाती है। इस कारण शरीर को पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाती हे और शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। खून की कमी के कारण जच्चा और बच्चा में होने वाले खतरे को लेकर हर दिन इमरजेंसी में दर्जनों मामले आ रहे हैं। इसकी अनदेखी करने से शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित हो रहा है। पेश है अंकुश शुक्ल की रिपोर्ट...

    गर्भावस्था के दिनों में शरीर बहुत से बदलाव के दौर से गुजरता है। जो हार्मोंस के उतार-चढ़ाव और संतुलन बिगड़ने से बीमारियों में बदल जाता है और गर्भवती में मधुमेह, थायराइड, एनीमिया से ग्रसित कर देता है। यह स्थिति गर्भवती के साथ गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी खतरनाक होती है। जीएसवीएम मेडिकल कालेज की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. रश्मि यादव ने बताया कि एनीमिया की स्थिति में खून में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। इस कारण शरीर में आक्सीजन की सप्लाई प्रभावित होती है।

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    एनीमिया का स्तर 11 से कम

    हर दिन करीब 80 से 90 प्रतिशत गर्भवती पहुंचती हैं। जिनमें एनीमिया का स्तर 11 से कम होता है। जबकि 30 से 40 प्रतिशत मामलों में यह आकड़ा सात प्रतिशत से भी कम हो जाता है। जो खतरनाक श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में सर्जरी के दौरान जटिलता हो जाती है। इस स्थिति में गर्भवती की अनदेखी फेफड़ों में पानी भरना, दिल की गंभीरता और फिटल मूवमेंट प्रभावित होती है। उन्होंने काह कि शुरुआत में एनीमिया के कोई लक्षण नहीं होते हैं, यह सिर्फ थकान, कमजोरी और चक्कर आने जैसी समस्याओं के साथ प्रतीत होता है। इसलिए गर्भवतियों को गर्भावस्था के दौरान आयरन, विटामिन बी 12, फोलिक एसिड की जांच करानी चाहिए।

    बचाव के लिए यह करें

    • गर्भावस्था की शुरुआत के साथ ही विशेषज्ञ की देखरेख में जांच कराते रहें।
    • नियमित योग और प्राणायाम के साथ संतुलित आहार लें।
    • बिना डाक्टर की सलाह के दवाएं कतई नहीं लें।
    • पूरी नींद लें, मन को प्रसन्न रखें।
    • पोषण युक्त भोजन करें और शरीर में पानी की कमी न होने दें।

    ओपीडी और इमरजेंसी में सबसे ज्यादा एनीमिया से ग्रसित गर्भवती आती हैं। हर दिन ओपीडी में आने वाले मामलों में एनीमिया की समस्या लगभग हर गर्भवती में मिल रही है। ऐसी गर्भवतियों के लिए डे-केयर एनीमिया वार्ड संचालित किया गया है। जहां पर फेरिक कोर्बोक्सी माल्टोज का इंजेक्शन लगाकर हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाया जा रहा है।

    - डा. रेनू गुप्ता, विभागाध्यक्ष, अपर इंडिया शुगर एक्सचेंज जच्चा बच्चा अस्पताल।