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    Cloudburst: बादल फटने की दोगुनी हुईं घटनाएं, मौसम विज्ञानी ने बताया अभी और ज्यादा खतरा

    By vivek mishra Edited By: Anurag Shukla1
    Updated: Tue, 19 Aug 2025 08:31 PM (IST)

    Cloudburst हिमालयी क्षेत्रों में इस साल बादल फटने की घटनाएं दोगुनी हो गई हैं। पिछले वर्ष जहां 40–50 घटनाएं दर्ज हुई थीं वहीं इस वर्ष यह संख्या बढ़कर 80 तक पहुंच गई है। वरिष्ठ मौसम विज्ञानी डा. एस.एन. सुनील पांडेय ने जागरण विमर्श में बताया कि जलवायु परिवर्तन और पहाड़ों पर प्राकृतिक जल निकासी के रास्तों को रोकना इसकी मुख्य वजह है।

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    जागरण विमर्श कार्यक्रम को संबोधित करते मौसम वैज्ञानिक एसएन सुनील पांडेय। जागरण

    जागरण संवाददाता, कानपुर। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़, कठुआ और उत्तरकाशी के धराली और रुद्रप्रयाग में केदारघाटी के कुछ हिस्सों में बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं। इससे तबाही काफी ज्यादा हुई है। तबाही की मुख्य वजह पहाड़ों पर प्राकृतिक जल निकासी को रोकना है।

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    पहाड़ों पर अक्सर देखने में आ रहा है कि वहां नदी के रास्ते के आसपास में छोटे छोटे पर्यटन स्थल बसाए जा रहे हैं। जब पहाड़ों पर किसी एक स्थान पर बादल फटते हैं तो वहां पानी का सैलाब तबाही मचाता है। इसलिए अब जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बचाव के लिए हर नागरिक को पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए आगे आकर जिम्मेदारी निभानी होगी।

    ये बातें वरिष्ठ मौसम विज्ञानी डा. एसएन सुनील पांडेय ने कहीं। उन्होंने दैनिक जागरण कार्यालय, सर्वोदय नगर में जागरण विमर्श सत्र में जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़, कठुआ और उत्तरकाशी के धराली और रुद्रप्रयाग में केदारघाटी के कुछ हिस्सों में बादल फटने से मची तबाही की वजह और उसके समाधान विषय पर विस्तृत व्याख्यान दिया।

    उन्होंने कहा कि तापमान में प्रत्येक डिग्री की वृद्धि के साथ वायुमंडल की नमी धारण करने की क्षमता सात प्रतिशत बढ़ जाती है। ऊंचे बादल जब पर्वतीय भूभाग से बाहर नहीं निकल पाते हैं तो कम समय में एक छोटे से क्षेत्र में भारी बारिश करते हैं। 20-30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में घंटे भर के अंदर 100 मिमी से ज्यादा बारिश को बादल फटना कहा जाता है।

    ऐसी घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाना तकरीबन मुश्किल रहता है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से संवेदनशील हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं। पिछले वर्ष तक बादल फटने की 40-50 घटनाएं हुईं थीं। जबकि इस वर्ष ये संख्या बढ़कर 80 तक पहुंच गईं हैं। इसकी मुख्य वजह घटते वन क्षेत्र, वनों की अधाधुंध कटाई और पहाड़ों पर गलत निर्माण शैली है।

    पहाड़ों पर होने वाली बारिश और पिघल रहे ग्लेशियर की वजह से छोटे तालाब और छोटी-छोटी झीलें विकसित हो रही हैं। जब पहाड़ों से टकराकर बादल फटते हैं तो 150 किमी प्रति घंटे की गति से आने वाले पानी का वेग और झील का पानी मिलकर बाढ़ का रूप ले लेता है। इसकी वजह से बसाहट वाले इलाकों में तबाही मचती है।

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