World Photography Day: यादों का सफर: भारी-भरकम कैमरों से मोबाइल में कैंद होती सुनहरी तस्वीरें
विश्व फोटोग्राफी दिवस पर पुराने कैमरों से लेकर आधुनिक मोबाइल फोटोग्राफी तक का सफर याद किया गया। 1902 के भारी-भरकम लकड़ी के कैमरों से शुरुआत हुई। समय के साथ तकनीक ने तस्वीरें खींचना आसान बना दिया। अब हर किसी के हाथ में मोबाइल कैमरा है जिससे तुरंत फोटो खींचकर गैलरी में सहेज सकते हैं।

संजय यादव, जागरण, कानपुर। फोटोग्राफी का इतिहास अपने आप में एक अनोखा सफर है। विश्व फोटोग्राफी दिवस पर आज यह समझना दिलचस्प है कि कैसे समय के साथ कैमरे का स्वरूप बदलता गया और यादों को संजोने का तरीका भी।
बीते समय में फोटो खींचना आसान काम नहीं था। 1900 के शुरुआती दशक में कैमरे लकड़ी के बने संदूक जैसे भारी-भरकम हुआ करते थे। इन्हें उठाना और कहीं ले जाना बेहद मुश्किल था। इन्हीं में से एक 1902 का कैमरा रंजीत नगर निवासी और विंटेज सामानों के कलेक्टर बब्बू लांबा के पास आज भी सुरक्षित है। उनका कहना है कि ऐसे कैमरों का इस्तेमाल खासतौर पर ग्रुप फोटो खींचने के लिए किया जाता था।
रंजीत नगर स्थित संग्रहालय में मौजूद विंटेज कैमरे l जागरण
तकनीक के साथ बदलाव आया और 1939 में स्पाई कैमरे सामने आए। इन्हें ‘हिट कैमरा’ कहा जाता था। आकार में छोटे होने के कारण इनका अधिक इस्तेमाल शीत युद्ध के दौरान हुआ। हालांकि ये आम लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं थे। इसके बाद 1948 में पोलाराइड लैंड कैमरे आए। ये अपने समय में क्रांतिकारी बदलाव थे क्योंकि इसमें फोटो खींचने के तुरंत बाद उसका प्रिंट भी मिल जाता था।
सन् 1936 में कोरोना सबमिनिएचर (हिट) कैमरे का आविष्कार हुआ। इन्हें जासूसी कैमरा भी कहते थे। शीत युद्ध के समय इनका अधिक इस्तेमाल हुआ l जागरण
धीरे-धीरे कैमरे का आकार छोटा होता चला गया। 70 और 80 के दशक में फिल्म रोल कैमरों का दौर रहा। फोटो खींचने के बाद उन्हें स्टूडियो में धुलवाना पड़ता था, जिसके लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता। यही इंतजार उस समय की यादों की खासियत भी हुआ करता था।
डिजिटल युग में कदम रखते ही कैमरे का चेहरा पूरी तरह बदल गया। अब मोबाइल फोन ने हर किसी के हाथ में कैमरा ला दिया है। तस्वीरें खींचने के बाद तुरंत देखना, एडिट करना और शेयर करना आसान हो गया है। यादों को सहेजने के लिए भारी-भरकम एलबम की जरूरत नहीं रही। आज सारी यादें मोबाइल की गैलरी में सुरक्षित रहती हैं।
बब्बू लांबा कहते हैं कि पुराने कैमरों को देखकर यह एहसास होता है कि फोटोग्राफी सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि कला और मेहनत भी थी। आज भले ही तस्वीरें खींचना आसान हो गया हो, लेकिन उन पुराने कैमरों का अस्तित्व हमें यह याद दिलाता है कि फोटोग्राफी का हर युग अपने समय में खास था।
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