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    कौशांबी में परिवार नियोजन में अब ‘जीवनसंगिनी’ का साथ देंगे जीवनसाथी, बढ़ती जागरूकता से पुरुषों की बढ़ी भागीदारी

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Sat, 06 Dec 2025 05:40 PM (IST)

    कौशांबी में परिवार नियोजन के प्रति पुरुषों में जागरूकता बढ़ रही है, जिससे वे जीवनसंगिनी का साथ देने के लिए आगे आ रहे हैं। सरकार द्वारा चलाए जा रहे जाग ...और पढ़ें

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    कौशांबी में परिवार नियोजन को लेकर पुरुषों की बढ़ती भागीदारी नया दृष्टिकोण प्रदर्शित कर रहा है। 

    जागरण संवाददाता, कौशांबी। जब जीवनसाथी ‘जीवनसंगिनी’ का सच्चा सहयोगी बनता है, तब परिवार में आपसी समझ, सम्मान और विश्वास भी बढ़ता है। पति-पत्नी एक-दूसरे की जरूरतों को बेहतर समझते हैं और भविष्य को लेकर योजनाएं अधिक स्पष्ट और सुव्यवस्थित बनाते हैं।

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    परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी केवल एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक संवेदनशीलता और समानता का प्रतीक है। जब जीवनसाथी कदम से कदम मिलाकर चलते हैं, तभी परिवार वास्तव में सुरक्षित, स्वस्थ और खुशहाल बनता है।

    परिवार नियोजन की जिम्मेदारी लंबे समय तक मुख्यतः महिलाओं पर ही केंद्रित रही है, चाहे वह गर्भनिरोधक गोलियां हों, कापर-टी, इंजेक्शन या बंध्याकरण। लेकिन बदलते सामाजिक माहौल, बढ़ती जागरूकता और लैंगिक समानता की सोच के साथ अब जीवनसाथी भी बराबरी की भूमिका निभाने की ओर बढ़ रहे हैं।

    यह परिवर्तन न केवल महिलाओं के बोझ को कम करेगा, बल्कि परिवार नियोजन को अधिक प्रभावी और सहमति-आधारित बनाएगा। पुरुष नसबंदी एक अत्यंत सरल, सुरक्षित और कम समय लेने वाली प्रक्रिया है, जिसके बारे में अब पहले की तुलना में अधिक जागरूकता फैल रही है। समाज में इससे जुड़े भ्रम और मिथक धीरे-धीरे टूट रहे हैं, जिससे अधिक पुरुष आगे आकर इस विकल्प पर विचार कर रहे हैं।

    इसके साथ ही पुरुष अब परिवार नियोजन से जुड़े निर्णयों में भागीदारी दिखा रहे हैं। इनकी बराबर की भागीदारी से परिवार नियोजन एक साझा दायित्व बनता है, जिससे महिलाओं पर शारीरिक और मानसिक भार कम होता है। यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण न केवल परिवारों के स्वास्थ्य और स्थिरता में वृद्धि करता है, बल्कि समानता पर आधारित समाज के निर्माण में भी योगदान देता है।

    क्यों जरूरी है पुरुषों की भागीदारी

    -परिवार नियोजन सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक साझा जिम्मेदारी है।

    -पुरुषों की भागीदारी से महिलाओं पर पड़ने वाला शारीरिक और मानसिक बोझ कम होता है।

    -यह स्वस्थ और खुशहाल परिवार के लक्ष्य को हासिल करने में मदद करता है, जिससे बच्चों की परिवरिश, शिक्षा और स्वास्थ्य बेहतर हो पाता है।

    सरकार और स्वास्थ्य विभाग के कदम

    -पुरुष सहभागिता से ही होगा यह सपना साकार जैसे थीम के साथ जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।

    -पुरुषों को नसबंदी के लिए प्रेरित करने के लिए विशेष पखवारा आयोजित किए जा रहे हैं।

    -पुरुष नसबंदी कराने वाले लाभार्थियों को सरकार द्वारा प्रोत्साहन राशि तीन हजार रुपये दी जाती है।

    -स्वास्थ्यकर्मी सारथी रथ, हेल्थ मेले और काउंसिलिंग के जरिए पुरुषों से जुड़ी गलत धारणाओं को दूर कर रहे हैं।

    तीन साल के आंकड़ों पर एक नजर

    वर्ष, पुरुष नसबंदी, महिला बंध्याकरण

    2022-23, 61, 2845

    2023-24, 82, 3413

    2024-25, 96, 3585

    2025-26, 92, 1793 

    जागरूकता सप्ताह में जिले को प्रदेश में मिली दूसरी रैंक

    पुरुष नशबंदी को लेकर 28 नवंबर से चार दिसंबर तक चलाए गए अभियान में पुरुषों में जोश देखने को मिला। जीवनसंगिनी के साथ बराबर की सहभागिता निभाने के लिए आगे बढ़े। सात दिवसीय अभियान के दौरान जहां 333 महिलाओं ने नसबंदी कराई, वहीं 56 पुरुषों ने आगे बढ़ते हुए एनएसवी अपनाते हुए समाज में एक मिशाल कायम की। पुरुषों की इस जागरूकता से जिले को प्रदेश में दूसरी रैंक मिली है।

    क्या कहते हैं सीएमओ

    सीएमओ डॉ. संजय कुमार ने बताया कि पुरुष नसबंदी एक सुरक्षित और वैज्ञानिक तरीका है, जिससे महिला पर शारीरिक और मानसिक बोझ कम होता है। यह पुरुष की क्षमता या स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करता है। इसके लिए पुरुष नसबंदी जागरूकता अभियान और प्रोत्साहन राशि जैसे कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे पुरुष भी इस जिम्मेदारी में आगे आ रहे हैं।

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