नारायणी तट पर मिली धान की धरोहर, उन्नत किस्में विकसित करने में समर्थ और कम लागत में होगा ज्यादा उत्पादन
कुशीनगर में नारायणी नदी के तट पर धान की प्राचीन प्रजातियां मिली हैं, जो कृषि विज्ञानियों के लिए महत्वपूर्ण खोज है। ये प्रजातियां धान की मूल जनक हैं और भविष्य में उन्नत किस्में विकसित करने में सहायक होंगी। इनमें जलवायु सहनशीलता और रोग प्रतिरोधक क्षमता है, जिससे किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन मिलेगा। झरना प्रजाति मधुमेह रोगियों के लिए भी सुरक्षित है। यह खोज कृषि, स्वास्थ्य और किसानों के लिए लाभकारी है।

नारायणी तट पर मिली धान की धरोहर।
अजय कुमार शुक्ल, कुशीनगर। नारायणी नदी के तट पर मिली धान की हजारों वर्ष पुरानी प्रजातियां कृषि विज्ञानियों के शोध को नई दिशा देंगी। प्राकृतिक वनस्पतियों के बीच मिली ये जंगली प्रजातियां न केवल धान की मूल जनक मानी जाती हैं, बल्कि भविष्य की उन्नत किस्में विकसित करने में समर्थ हैं। इनमें मौजूद जलवायु-सहनशीलता, रोग-प्रतिरोध और पोषण संबंधी गुण आने वाले वर्षों में किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन दिलाने में सहायक होंगे।
झरना (झारन) जैसी प्रजातियां कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स के कारण मधुमेह रोगियों के लिए भी उपयुक्त, सुरक्षित और पौष्टिक विकल्प के रूप में उभरती हैं। इस खोज से कृषि विज्ञान, स्वास्थ्य और किसान-तीनों को प्रत्यक्ष लाभ मिलने की संभावना है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. सुधीर अहलावत और नैनी कृषि संस्थान के प्रोफेसर वैदूर्य प्रताप शाही ने रामपुर बरहन, दरोगाडीह और लक्ष्मीपुर गांवों के तटवर्ती इलाकों में तीन दिन के सर्वेक्षण में इन प्रजातियों को चिन्हित किया।
उनके अनुसार सर्वेक्षण में पुष्टि हुई कि खेड़ा, सेंगर, भदई और झरना जैसी प्रजातियां धान की मूल जनक किस्में हैं। ये प्रजातियां प्राकृतिक वातावरण में स्वतः उगती हैं और जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखे तथा अन्य आपदाओं में भी जीवित रहती हैं। विज्ञानी मानते हैं कि इनकी आनुवांशिक विशेषताएं धान की नई पीढ़ी को अधिक मजबूत और अनुकूलनीय बनाने में सक्षम हैं। झरना धान तो सभी आधुनिक किस्मों का आधार है।
यह प्रजाति किसी भी मौसम में स्वतः उगने और रोगों से लड़ने की क्षमता रखती है। अब इस प्रजाति को आगे शोध के लिए एनबीपीजीआर नई दिल्ली भेजा जा रहा है, जहां इसके जीन को संरक्षित कर उन्नत किस्में विकसित करने की दिशा में काम होगा।
संस्था के जीन बैंक में वर्तमान में एक लाख से अधिक जंगली प्रजातियां संरक्षित हैं, जिनमें अब कुशीनगर की धरोहर भी शामिल होगी। कुशीनगर की इस जैविक संपदा को किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताने वाले विज्ञानियों का मानना है कि यदि इन प्रजातियों के गुणों को भविष्य की धान किस्मों में स्थानांतरित किया गया, तो कम लागत में अधिक उत्पादन मिलेगा।
जलवायु परिवर्तन के संकट के बीच यह ‘क्लाइमेट-स्मार्ट’ कृषि की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा ही कृषि विज्ञान के भविष्य को नई दिशा देने वाली ‘अनमोल जैविक निधि’ साबित हो सकती हैं।
मधुमेह रोगियों के लिए सुरक्षित है झरना
एनबीपीजीआर के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. सुधीर अहलावत बताते हैं कि झरना धान का ग्लाइसेमिक इंडेक्स बहुत कम है, जिससे यह कार्बोहाइड्रेट को धीरे-धीरे रिलीज करता है। इससे रक्त शर्करा अचानक नहीं बढ़ती।
यही कारण है कि पोषण विशेषज्ञ इसे मधुमेह रोगियों के लिए आदर्श विकल्प मानते हैं। इसके पोषण तत्व भी अन्य सामान्य धान किस्मों की तुलना में बेहतर पाए जाते हैं। यह धान की अगली पीढ़ी की उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों का प्रमुख स्रोत बनेगा।

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