स्पेस मेले में प्रतिभाओं के सपनों को मिली उड़ान, देशभर के 600 युवा विज्ञानियों ने 37 रॉकेट कीं लॉन्च
कुशीनगर में चार दिवसीय आयोजन में इसरो की ऐतिहासिक तस्वीर को पुनर्जीवित किया गया, जिसमें सीआर सत्या और वेलाप्पन नायर साइकिल पर राकेट नोज कोन ले जाते दिखे। धान-गन्ने की फसलों के बीच 600 युवा वैज्ञानिकों ने कंधे पर मॉडल रॉकेट लेकर 24 केनसैट और 13 मॉडल रॉकेट सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किए, जो भारत की अंतरिक्ष यात्रा की बुनियाद को आगे बढ़ाने का प्रतीक है।

अजय कुमार शुक्ल, कुशीनगर। धान और गन्ने की लहलहाती फसलें। माडल राकेट को कंधे पर ले जाते युवा विज्ञानी। कुशीनगर में चार दिनों तक इस तरह के दृश्य उस एतिहासिक तस्वीर की कहानी को पुनर्रेखांकित करते दिख रहे थे, जिसमें इसरो के राकेट विज्ञानी सीआर सत्या और उनके सहयोगी वेलाप्पन नायर साइकिल के कैरियर पर राकेट नोज कोन को ले जाते दिखते हैं।
अंतरिक्ष में भारत की ऊंची उड़ान की यात्रा में यह तस्वीर बुनियाद की रूप में देखी जाती है। जो सपना सीआर सत्या जैसे विज्ञानियों ने देखा था, उससे आगे जाने का इरादा मन में लिए छह सौ युवा भविष्य के हाथों तैयार 24 केनसैट राकेट और 13 माडल राकेट प्रक्षेपित किए गए।
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गोरखपुर से 60 किलोमीटर दूर है बुद्ध की निर्वाण स्थली कुशीनगर। वहां से 50 किलोमीटर दूर जंगलीपट्टी के समीप जीरो बंधे के पार नारायणी नदी का क्षेत्र। यहां 27 से 30 अक्टूबर तक नवाचार का अद्भुत आयोजन-नेशनल इन-स्पेस माडल राकेट्री कैनसैट इंडिया स्टूडेंट कंप्टीशन-2025। उत्तर भारत में अपनी तरह का यह पहला आयोजन दो हिस्सों में बंटा था।
पहला पांच जर्मन हैंगर में लैब, मानीटरिंग-ट्रेनिंग और कन्वेंसिंग सेंटर और दूसरा-लगभग एक किलोमीटर दूर लांच पैड। लांच पैड से उल्टी गिनती खत्म होने के साथ ही एग्जास्ट प्लम यानी प्रणोदक के दहन से निकलने वाली ज्वाला के साथ राकेट उड़ान भरता है और स्क्रीन मानीटरिंग कर रही टीम के साथ युवा विज्ञानियों की टोली अमेजिंग और सक्सेसफुल की गूंज के साथ रोमांच से भर जाती है।
र्वांचल के युवाओं में ललक बढ़ाने को हुई शुरुआत
एक वृहद स्पेस मेला देवरिया के सांसद शशांक मणि त्रिपाठी के अभिनव पहल की बदौलत मूर्त रूप ले सका है, जिसे वह अमृत प्रयास की संज्ञा देते हैं। कुशीनगर जिले के तमकुहीराज विधानसभा क्षेत्र में यह आयोजन हुआ है। इसकी शुरुआत पूर्वांचल के युवाओं में अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति ललक बढ़ाने और देश को एक नया लांचिंग पैड देने की संकल्पना के साथ हुई।
जुलाई में दो ट्रायल प्रक्षेपण किए गए तो 10 किमी का यह बड़ा क्षेत्रफल व रेतीली भूमि लांचिंग व रिकवरी के लिए पूरी तरह फिट पाई गई। बिहार की सीमा को छूते इस पिछड़े इलाके में संभावनाएं खोजी गईं तो इस क्षेत्र ने भी निराश नहीं किया। छह सौ युवा विज्ञानियों की सोच में यहां अंतरिक्ष आकार लेने लगा। भारत के अंतरिक्ष गौरव शुभांशु शुक्ल भी यहां पहुंचे और युवा विज्ञानियों के साथ मिल-बैठकर जानकारियां और विचार साझा किए। नवोन्मेष के लिए प्रेरित किया।
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प्रक्षेपण की सफलता को देख युवा विज्ञानियों को देश के लिए अंतरिक्ष विज्ञान का भविष्य बताया। इन-स्पेस के चेयरमैन डा. पवन गोयनका भी अपनी खोजी नजर के साथ यहां आए। उन्होंने यहां स्थायी लांच पैड बनाने की मंशा जताई। आयोजन में जुटी युवा विज्ञानियों की फौज जिस जीजीविषा के साथ तकनीक के एक-एक पेंच को समझ और सुलझा रही थी, उससे स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था कि वह दिन दूर नहीं जब-"यह कोई राकेट साइंस थोड़े है", जैसा जुमला वक्त के अंतरिक्ष में विलीन हो जाएगा।
चार दिन उड़ान के
| दिन | प्रक्षेपण की योजना | वास्तविक प्रक्षेपण | परिणाम | 
|---|---|---|---|
| पहला दिन | 10 | 4 | सभी सफल | 
| दूसरा दिन | 20 | 10 | सभी सफल | 
| तीसरा दिन | 30 | 13 | सभी सफल | 
| अंतिम दिन | 40 | 10 | कारण - खराब मौसम | 
| 1000 मीटर की ऊंचाई तक गए राकेट | |||
भागीदारी
- 600 युवा विज्ञानियों ने हिस्सा लिया
- 47 कालेजों के छात्र यहां पहुंचे
- 133 छात्राएं शामिल रही
- 40 टीमों में बंटे थी युवा विज्ञानी
- 120 वरिष्ठ विज्ञानियों ने  किया मार्गदर्शन
- 37 सफल प्रक्षेपण किए गए
- 24 कैनसेट और 13 माडल राकेट हुए लांच
प्रतियोगिता नहीं, यह विकसित भारत के युवा मस्तिष्कों का उद्घाटन
देवरिया के सांसद शशांक मणि बताते हैं कि देवरिया–कुशीनगर का यह इलाका सदियों से ज्ञान, साधना और संस्कृति की भूमि रहा है। लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में यहां का नाम पीछे रह गया था। इन–स्पेस और इसरो की टीम से जब चर्चा हुई, तो लगा कि अब समय आ गया है कि हम अपने पूर्वांचल के बच्चों को अंतरिक्ष की उड़ान के लिए तैयार करें। यही सोच कैनसैट और मॉडल राकेट्री प्रतियोगिता के रूप में साकार हुई है। यह मेरे लिए भावनात्मक क्षण था।
कल्पना कीजिए… जहां लोग आने से कतराते थे, उसी धरती से अब राकेट उड़ रहे हैं। जब बच्चों ने 37 सफल लांच किए, तो लगा जैसे पूरी धरती नई ऊर्जा से भर गई हो। यह सिर्फ प्रतियोगिता नहीं थी, बल्कि विकसित भारत के युवा मस्तिष्कों का उद्घाटन था। यह आयोजन उत्तर भारत में विज्ञान शिक्षा की नई संस्कृति की शुरुआत है।
उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि इसे हर साल आयोजित किया जाए। आने वाले वर्षों में इसे ‘अमृत प्रयास वार्षिक इनोवेशन फेस्ट’ के रूप में विकसित करेंगे, जिसमें रूरल इनोवेशन एक्सपो भी जोड़ा जाएगा। सांसद शशांक मणि ने कहा कि मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि नवाचार अब किसी महानगर की जागीर नहीं है।
देवरिया–कुशीनगर से जो विज्ञान की लौ जली है, वह आने वाले वर्षों में भारत के अंतरिक्ष अभियान को रोशन करेगी। हम सब मिलकर उस भारत की ओर बढ़ रहे हैं जहां एक किसान का बेटा भी सैटेलाइट बना सकेगा, और एक गांव की बेटी अंतरिक्ष में डेटा विश्लेषण कर सकेगी।

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