मुस्लिम नेतृत्व का संतुलन साधेगी अखिलेश-आजम की मुलाकात, रामपुर जाकर साथ का भरोसा देंगे सपा अध्यक्ष
कभी सपा का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा कहे जाने वाले आजम खां की 23 महीने बाद हुई रिहाई ने पार्टी को रणनीतिक संतुलन की कसौटी पर ला खड़ा किया है। एक तरफ आजम खां हैं जो अपने भावुक बयानों से माहौल बनाने में जुटे हैं दूसरी तरफ पार्टी के अन्य कई ऐसे मुस्लिम नेता जिनको डर सता रहा है कि कहीं उनकी उपयोगिता और कीमत कम न हो जाए।

दिलीप शर्मा, लखनऊ। कभी सपा का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा कहे जाने वाले आजम खां की 23 महीने बाद हुई रिहाई ने पार्टी को रणनीतिक संतुलन की कसौटी पर ला खड़ा किया है। एक तरफ आजम खां हैं, जो अपने भावुक बयानों से माहौल बनाने में जुटे हैं, दूसरी तरफ पार्टी के अन्य कई ऐसे मुस्लिम नेता, जिनको डर सता रहा है कि कहीं उनकी उपयोगिता और कीमत कम न हो जाए।
सपा के अंदर इस राजनीतिक द्वंद के तीसरा सिरे पर खुद पार्टी नेतृत्व भी खड़ा है, जो अगले पंचायत चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक की बिसात बिछा रहा है। तैयारी तो पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) के नारे के साथ हो रही है, परंतु इन नारे में शामिल शब्दों के अलग-अलग मतलब गिनाकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद ही यह साफ कर चुके हैं कि उनकी कोशिश अगड़ों सहित अन्य वर्गों का भी साथ पाने की है, जिससे भाजपा की हिंदुत्व की रणनीति को कमजोर किया जा सके।
ऐसे में आजम खां जैसे कट्टर मुस्लिम चेहरे की वापसी को इस तरह अमल में लाया जा रहा है कि इससे पार्टी की रणनीति पर दुष्प्रभाव न हो। बुधवार को आजम से अखिलेश की मुलाकात में नेतृत्व का संतुलन साधने की यही कोशिश होगी और संदेश होगा कि पार्टी ने आजम को अकेला नहीं छोड़ा है।
सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल आजम खां 23 सितंबर को सीतापुर जेल से रिहा हुए हैं। उनके जेल में रहने के दौरान ही सपा नेतृत्व पर पूरा साथ न देने के सवाल उठते रहे थे। रिहाई के बाद आजम ने पार्टी नेतृत्व पर सीधा हमला तो नहीं बोला और न ही कोई चाहत जताई, परंतु उनके भावुक बयानों से साफ है कि वह अब पार्टी के अंदर पूरी तवज्जो और बड़ी भूमिका चाहते हैं। हालांकि पिछले लोकसभा चुनावों में मुरादाबाद में रुचि वीरा को टिकट मिलने के पीछे आजम के प्रभाव को ही वजह माना गया था। पार्टी नेतृत्व यह अच्छी तरह जानता है कि यदि आजम को खारिज किया तो उनके समर्थकों में असंतोष बढ़ सकता है।
रामपुर सहित कई जिलों में, विशेषकर मुस्लिम समाज में उनकी पकड़ मानी जाती है। हालांकि पार्टी यह भी नहीं चाहती कि आजम ही पार्टी का पूरा मुस्लिम चेहरा हों और दूसरे नेता उपेक्षित या उनके हस्तक्षेप के डर से असुरक्षित महसूस करें। पूरी कोशिश यह संदेश देने की है कि पार्टी उनके साथ तो है, परंतु आने वाले दिनों में उसके फैसलों का केंद्र एकमात्र वही नहीं होंगे।
उनकी रिहाई के बाद सपा प्रमुख द्वारा दिया गया बयान पार्टी की इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है और अब मुलाकात में इसे और विस्तार देने की कोशिश होगी, क्योंकि सपा की चिंता आजम का पुराना रवैया और तीखी बयानबाजी भी है। भाजपा की हिंदुत्व की रणनीति असफल करने के लिए सपा, मुस्लिमों के प्रति संवेदनशील रहते हुए बहुसंख्यकों को भी साधे रखना चाहती है।
ऐसे में तीखी बयानबाजी भाजपा को ध्रुवीकरण का अवसर उपलब्ध करा सकती है। क्योंकि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को मुस्लिम मतदाताओं का पूरा साथ मिला था, पार्टी अब भी उनको अपने ही पक्ष में मान रही है। माना जा रहा है सपा प्रमुख की मुलाकात में आजम को संयमित भूमिका निभाने की सलाह दी जाएगी। हालांकि यह कोशिश कितनी कामयाब होगी, यह तो मुलाकात के बाद ही सामने आएगा।
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