BSP Rally in Lucknow: बसपा मुखिया मायावती अपनी बात पर अडिग, पार्टी अकेले लड़ेगी 2027 का विधानसभा चुनाव
मायावती ने कांशीराम से परिनिर्वाण दिवस पर सपा और कांग्रेस सहित अलग-अलग दलों के आयोजनों को वंचित वर्ग को गुमराह करने का षड्यंत्र करार दिया। समाजवादी पार्टी पर अपनी सरकार के समय अनुसूचित जाति- जनजाति के संतों- महापुरुषों की उपेक्षा का आरोप लगाया। समाज के लोगों से सावधान रहने का आह्वान किया।

राज्य ब्यूरो, जागरण, लखनऊ: उत्तर प्रदेश में वर्ष 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने बसपा के संस्थापक कांशीराम के 19वें परिनिर्वाण दिवस पर अपने दो संकल्प को दोहराया है।
लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर उमड़े बसपा के बड़े हुजूम के बीच मायावती ने कहा कि बसपा वर्ष 2027 का विधानसभा चुनाव अकेले और अपने दम पर लड़ेगी। बसपा मुखिया ने स्पष्ट कहा कि हमको किसी के सहयोग की जरूरत नहीं है और अपने दम पर वर्ष 2027 में 2007 की तरह ही उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार बनाएंगे।
बसपा से संस्थापक कांशीराम के 19वें परिनिर्वाण दिवस पर आयोजित समारोह बसपा ने भीड़ जुटाकर शक्ति का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम में मायावती ने वर्ष 2027 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा की और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का भरोसा जताया। इस दौरान मायावती, सपा, कांग्रेस और भाजपा पर हमलावर रहीं, लेकिन सर्वाधिक हमला उन्होंने समाजवादी पार्टी पर ही बोला। उन्होंने कहा कि सपा तो सर्वाधिक जातिवादी पार्टी है। भाजपा और कांग्रेस की निगाह भी कुछ जातियों के वोट पर रहती है।
मायावती ने कांशीराम से परिनिर्वाण दिवस पर सपा और कांग्रेस सहित अलग-अलग दलों के आयोजनों को वंचित वर्ग को गुमराह करने का षड्यंत्र करार दिया। समाजवादी पार्टी पर अपनी सरकार के समय अनुसूचित जाति- जनजाति के संतों- महापुरुषों की उपेक्षा का आरोप लगाया। समाज के लोगों से सावधान रहने का आह्वान किया।
मायावती ने कहा कि बसपा को छोड़कर अन्य दल आरक्षण लागू करने को लेकर गंभीर नहीं है। लोगों को आरक्षण का पूरा लाभ अब तक नहीं मिला है। सभी जगह पर प्रमोशन में आरक्षण लागू करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम व पिछड़े समाज का विकास अधूरा है। दलित, पिछड़े और मुस्लिम समाज को एकजुट होना होगा और हमारे कार्यकर्ता के लिइ बूथ स्तर पर बहुजन समाज जोड़ना जरूरी है। प्रदेश में सख्त कानून व्यवस्था बदहाल करना भी बेहद जरूरी है।
मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश में अब बसपा की सरकार बनाना बहुत जरूरी है। प्रदेश में अच्छी सरकार की सख्त जरूरत है। यहां पर दलितों का वोट बांटने का काम हो रहा है। समाज के स्वार्थी लोगों को इस काम में लगाया गया है। ऐसी स्वार्थी लोगों से सावधान रहना होगा। उन्होंने कहा कि लखनऊ में आज की भीड़ ने सारे रिकॉर्ड तोड़े हैं। उन्होंने भाजपा सरकार को रैली स्थल की मरम्मत कराने पर धन्यवाद ज्ञापित किया।
भतीजे आकाश को जमकर सराहा
बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अपने संबोधन में भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर आकाश आनंद को आगे बढ़ाने का भी इरादा साफ कर दिया। आकाश की मेहनत की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्हें लोकप्रियता बसपा में बढ़ रही है, यह अच्छी बात है। वह मेरे मार्गदर्शन में लगातार बेहतर तरीके से काम कर रहे हैं।
कभी वंचित-शोषित समाज पर एकछत्र राज रहा
वर्ष 1984 में कांशीराम का स्थापित बहुजन समाज पार्टी का कभी वंचित-शोषित समाज पर एकछत्र राज रहा है, लेकिन वर्ष 2012 में सत्ता से बाहर होने के बाद से पार्टी को चुनाव दर चुनाव झटका ही लग रहा है। लोकसभा से लेकर विधानसभा तक के चुनाव में ‘हाथी’ के चारों खाने चित होने से बसपा के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराता दिख रहा है। मायावती ने पार्टी के राष्ट्रीय स्तर तक के पदाधिकारियों के साथ ही प्रदेश की 403 विधानसभा सीट के 1.62 लाख से अधिक बूथ में से प्रत्येक से पांच-छह लोगों को लाने का लक्ष्य रखा है।
वर्ष 2007 में थे 206 विधायक, अब सिर्फ एक
वर्ष 2007 में पहली बार ‘दलित-ब्राह्मण’ सोशल इंजीनियरिंग के सहारे 403 में से 206 विधानसभा सीटें व 30.43 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली बसपा के इस समय सिर्फ एक विधायक है। न कोई सासंद है और न ही विधान परिषद में एक भी सदस्य है। वर्ष 2012 में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला फेल होने से सूबे की सत्ता गंवाने के बाद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी का खाता तक नहीं खुला था। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी ‘दलित-मुस्लिम’ फार्मूला फेल रहा। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से हाथ मिलाने पर पार्टी के 10 सांसद चुने गए, लेकिन वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का एक विधायक ही जीता। दलित वोटों की मजबूत दीवार दरकने से पार्टी का जनाधार नौ प्रतिशत से कहीं अधिक खिसक गया। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में मायावती ने ‘दलित-मुस्लिम’ फार्मूले पर बड़ा दांव लगाया, लेकिन न वंचित साथ आया, न मुस्लिम। पार्टी न केवल शून्य पर सिमट गई बल्कि 10 प्रतिशत और जनाधार खिसक गया। गर्त में जाती पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने के लिए मायावती, संगठन में नए प्रयोग करने के साथ ही अपने भतीजे आकाश आनंद पर दांव जरूर लगाया लेकिन अब तक वह भी कोई कमाल नहीं कर सके हैं।
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