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    मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण रद करने के खिलाफ सरकार की अपील पर सुनवाई पूरी, कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 07:22 PM (IST)

    राज्य सरकार ने चार जिलों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण के सम्बंध में पारित शासनादेशों को रद् करने के एकल पीठ के निर्णय के विरुद्ध विशेष अपील दाखिल की। न्यायालय ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित कर लिया। अपीलार्थी की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने न्यायालय को बताया कि एकल पीठ के आदेश के बाद चारों जिलों के मेडिकल कॉलेजों में फिर से काउंसलिंग करना पड़ेगा।

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    मेडिकल कॉलेजों के आरक्षण सम्बंधी शासनादेश रद् करने के खिलाफ सरकार की अपील पर पूरी हुई सुनवाई।

    विधि संवाददाता, लखनऊ। राज्य सरकार ने अम्बेडकर नगर, कन्नौज, जालौन व सहारनपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण के सम्बंध में पारित शासनादेशों को रद् करने के एकल पीठ के निर्णय के विरुद्ध विशेष अपील दाखिल की गई है। आज उस अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद आदेश संरक्षित कर लिया है।

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    यह सुनवाई न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ के समक्ष हुई। अपीलार्थी की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता जे एन माथुर ने न्यायालय को बताया कि एकल पीठ के आदेश के बाद चारों जिलों के मेडिकल कॉलेजों में फिर से काउंसलिंग करना पड़ेगा तथा इसका असर बाकी राज्यों के जिलों पर भी पड़ सकता है।

    पुनः काउंसलिंग से शीट पाए हुए अभियार्थी बाहर हो जाएंगे तथा उनका रास्ता और भी कॉलेजों में बंद हो जाएगा क्योंकि बाकी जगह लगभग हो चुका है।

    उल्लेखनीय है कि एकल पीठ ने यह पाते हुए कि शासनादेशों दिनांक 20 जनवरी 2010, 21 फरवरी 2011, 13 जुलाई 2011, 19 जुलाई 2012, 17 जुलाई 2013 व 13 जून 2015 के जरिए आरक्षित वर्ग के लिए को 79 प्रतिशत से अधिक सीटें सुरक्षित की गई हैं, उक्त शासनादेशों को निरस्त कर दिया है, साथ ही उक्त कॉलेजों में आरक्षण अधिनियम, 2006 का सख्ती से अनुपालन करते हुए, नये सिरे से सीटें भरने का आदेश दिया है।

    याची के अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने दलील दी थी कि उक्त मेडिकल कॉलेजों में राज्य सरकार के कोटे की कुल 85-85 सीटें हैं जबकि सिर्फ 7-7 सीटें अनारक्षित श्रेणी के लिए रखी गई हैं। वहीं महानिदेशक, चिकित्सा शिक्षा व ट्रेनिंग की ओर से दलील दी गई थी कि इंदिरा साहनी मामले में शीर्ष अदालत यह स्पष्ट कर चुकी है कि 50 प्रतिशत की सीमा अंतिम नहीं है।

    इससे अधिक आरक्षण दिया जा सकता है। हालांकि, एकल पीठ इस दलील से सहमत नहीं हुयी व कहा कि उक्त सीमा सिर्फ नियमों का पालन करते हुए, बढ़ाई जा सकती है।

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