Mumtaz Khan : मुमताज को मिला कड़ी मेहनत का फल, देश की ओर से हॉकी खेलने का नहीं था अनुमान
Indian Woman Hockey Player Mumtaz Khan निम्न आय वर्ग के परिवार में दो जून की रोटी और कपड़ा ही दूभर होता है। ऐसे में खेल और कोचिंग के बारे में कोई कैसे सोचेगा लेकिन परिवार ने मुझे सिर्फ अवसर ही नहीं बल्कि एक खिलाड़ी के तौर पर सभी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई। यदि ऐसा नहीं होता तो मैं आज टीम इंडिया का हिस्सा नहीं होती।

विकास मिश्र, जागरण, लखनऊ : मुमताज यानी विशिष्ट। नाम से तो कोई भी मुमताज हो सकता है, लेकिन नाम के अनुरूप मुकाम हासिल करना विरलों के ही बूते होता है। लखनऊ की मुमताज खान ने जब पहली बार हॉकी स्टिक पकड़ी तो देश की ओर से खेलने का अनुमान नहीं था, लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी उसने अनवरत मेहनत के दम पर यह मुकाम पा लिया।
22 वर्षीया हॉकी खिलाड़ी मुमताज ने कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में धमाकेदार प्रदर्शन से देश का मान बढ़ाया, जिसमें विशेष तौर पर जूनियर एशिया कप, जूनियर वर्ल्ड कप और यूथ ओलंपिक शामिल है। हाल ही में मुमताज खान का चयन सीनियर महिला हॉकी एशिया कप के लिए टीम इंडिया में किया गया। एशिया कप महिला हॉकी चीन के हांगझोउ में पांच से 14 सितंबर तक होगी।
सामान्य मैदान से ड्रिबलिंग कर विश्वस्तरीय एस्ट्रोटर्फ तक सफर
लखनऊ के सामान्य मैदान से ड्रिबलिंग कर विश्वस्तरीय एस्ट्रोटर्फ तक सफर तय करने वाली मुमताज ने संघर्ष से सफलता का मुकाम पाया। मुमताज ने बताया मेरी जैसी पृष्ठिभूमि से ताल्लुक रखने वाली लड़की के लिए घर से बाहर निकलना भी जटिल था। निम्न आय वर्ग के परिवार में दो जून की रोटी और कपड़ा ही दूभर होता है। ऐसे में खेल और कोचिंग के बारे में कोई कैसे सोचेगा, लेकिन परिवार ने मुझे सिर्फ अवसर ही नहीं, बल्कि एक खिलाड़ी के तौर पर सभी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई। यदि ऐसा नहीं होता तो मैं आज टीम इंडिया का हिस्सा नहीं होती। हॉकी की बदौलत सम्मान और नौकरी भी मिली, लेकिन घर की परिस्थिति सहज नहीं हो पाई है। मां और पिता जी अभी भी ठेले पर सब्जी बेचते हैं।
मुमताज खान ने शौक में ही स्टिक थामी
अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी मुमताज खान ने शौक में ही स्टिक थामी थी, लेकिन उसी शौक को उन्होंने अपना जुनून बनाया और शीर्ष पर पहुंच गईं। दरअसल मुमताज को दौड़ना बहुत पसंद था, इसलिए एथलीट बनना चाहती थी। स्टेडियम में दौड़ लगाते देख हॉकी की कोच नीलम सिद्दीकी ने पूछा कि हॉकी खेलना है तो मैं तुरंत हां कह दिया। वर्ष 2014 में लखनऊ हास्टल में दाखिला मिला। मई में जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में यूपी की टीम में चयन भी हो गया। इसके बाद सफर आगे बढ़ता गया और सफलता मिलती है। मुमताज ने बताया कि मैं आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल रही हूं तो इसका श्रेय मां-पिता जी, कोच नीलम सिद्दीकी और हॉकी इंडिया के मुख्य चयनकर्ता डा. आरपी सिंह को जाता है, जिन्हें कठिन समय में मुझे प्रोत्साहित किया।
मुमताज ने बताया कि निश्चित तौर पर हॉकी ने मुझे सम्मान, पहचान और नौकरी दी, लेकिन मेरा परिवार बहुत बड़ा है और खर्च भी अधिक है। हम लोग सात भाई-बहन हूं। मेरी नौकरी से घर का पूरा खर्च नहीं चल पाता है। मैंने पिता जी से बड़ी दुकान डालने के लिए कहा, लेकिन वह बहनों की शादी की बात कहकर टाल देते हैं। नौकरी के साथ सब्जी का ठेला ही अभी भी परिवार के गुजर-बसर का सहारा है।
ओलंपिक में खेलने के बार में मुमताज ने कहा कि इस बारे में अभी कुछ कहना ठीक नहीं है। मेरा ध्यान सिर्फ अपने प्रदर्शन और फिटनेस पर है। प्रत्येक टूर्नामेंट मेरे लिए महत्वपूर्ण होता है और मैं अपना सौ प्रतिशत देती हूं। अभी मेरा ध्यान अगले माह चीन में होने वाले एशिया कप पर है। इसके लिए ट्रेनिंग भी चल रही है। हां, एक खिलाड़ी के तौर पर मैं देश के लिए ओलंपिक पदक जीतना चाहती हूं। मुझे मां-पिता जी के आशीर्वाद पर पूरा भरोसा है कि मेरा यह सपना भी सच होगा।
मुमताज को भरोसा है कि भारतीय महिला हॉकी टीम एशिया कप में फाइनल पहुंचेगी। हम एशिया कप का खिताब जीतने के इरादे से जा रहे हैं। हमारी टीम बेहद संतुलित और आक्रामक है। भारतीय टीम चैंपियन बनने की प्रबल दावेदार है। टीम की तैयारी भी बहुत अच्छी चल रही है।
दृढ़ संकल्प के साथ कड़ी मेहनत करें
सूबे की लड़कियों के लिए मुमताज का संदेश यह है कि आर्थिक संकट और पारिवारिक बंदिशों के डर से सपना देखना बंद न करें, बल्कि बड़े लक्ष्य को पाने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ कड़ी मेहनत करें तो सफलता निश्चित मिलेगी। भारतीय टीम में मैं अकेली विपरीत परिस्थिति से आने वाली खिलाड़ी नहीं हूं, मेरे पहले भी संघर्ष करने वाले विजयी हुए हैं और भविष्य में भी सफल होंगे।
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