Lucknow Jagran Samvadi 2025: युवाओं का काम है परंपराएं तोड़ना और देश-दुनिया को हिंदी पढ़ाना
Jagran Samvadi 2025: अभिव्यक्ति का उत्सव साहित्य के युवा चेहरों के साथ प्रशस्त हुआ तो तीव्रता से अग्रसर होता गया। विमर्श हुआ और जोरदार हुआ। निष्कर्ष यह रहा कि परंपराएं तोड़ना और देश-दुनिया को हिंदी पढ़ाना युवा लेखकों का काम है, क्योंकि हिंदी से प्रेम करने का कोई तर्क नहीं है।

साहित्य के युवा चेहरे पर कवि पारितोष त्रिपाठी
महेन्द्र पाण्डेय, जागरण, लखनऊ : आज के एक दशक पूर्व लोग एक विचारधारा में रहते थे, लेकिन इंटरनेट मीडिया के आने के बाद युवा किसी विचारधारा के लेखक के पास नहीं गए, तब लेखक ही पाठकों के पास आए। लेखकों ने जाना कि पाठक क्या चाहते हैं।
अभिव्यक्ति का उत्सव साहित्य के युवा चेहरों के साथ प्रशस्त हुआ तो तीव्रता से अग्रसर होता गया। विमर्श हुआ और जोरदार हुआ। निष्कर्ष यह रहा कि परंपराएं तोड़ना और देश-दुनिया को हिंदी पढ़ाना युवा लेखकों का काम है, क्योंकि हिंदी से प्रेम करने का कोई तर्क नहीं है।
लखनऊ जागरण संवादी के दूसरा सत्र 'साहित्य के युवा चेहरे' में विमर्श के लिए कवि पारितोष त्रिपाठी, भाषाविद् कमलेश कमल, उपन्यासकार भगवंत अनमोल मंचासीन हुए। संचालक राहुल नील ने पारितोष से पुस्तक लिखने के ट्रेंड पर प्रश्न किया- क्या टीवी पर प्रसिद्ध हो जाएं तो किताब ले आएं? त्रिपाठी ने कहा, ''ऐसा नहीं है। यदि ऐसा होता तो इंटरनेट मीडिया पर रील पोस्ट करने वाले कलाकार बेस्ट सेलर होते। मेरी परवरिश ऐसी हुई है कि मैं पुस्तकें लिख पा रहा हूं।
उन्होंने कहा, ''परंपराएं अब टूट रही हैं। हिंदी का दायरा बढ़ रहा है। दुनिया के श्रेष्ठ फुटबालर डेविड बेकहम हिंदी में टैटू बनवाते हैं। हिंदी से हमें प्रेम है। इस पर कोई तर्क नहीं। अंग्रेजी तो मार-मारकर सिखाई गई है। लोकल से ग्लोबल की यात्रा करनी है तो अंग्रेजी आनी चाहिए, लेकिन ध्यान रखना होगा कि ईमानदारी से किया गया कार्य ही स्वीकार होता है।
नील ने लेखक की विचारधारा पर प्रश्न किया तो भगवंत अनमोल ने अपनी बात शायरी के अंदाज में रखी कि जब तक ये बिके नहीं थे कोई पूछता नहीं था, आपने खरीदकर अनमोल कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि पहले के लेखक एक विचारधारा में रहते थे, लेकिन हम किसी विचारधारा में नहीं गए। लेखक का काम है दिशा दिखाना और हम ये काम कर रहे हैं।
विचारधारा की बात भाषा की ओर मुड़ी तो कमलेश कमल ने कहा कि हिंदी की धमक कहीं गई नहीं थी। ये मिथक है कि लोग हिंदी नहीं पढ़ रहे हैं। विश्व का सबसे बड़ा अखबार दैनिक जागरण हिंदी का है। आज सांस्कृतिक रूप से भाषाई बोध जगा है। यह कहना ही सही नहीं है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य भाषित प्राणी भी है।
भाषा उसके कार्य-संवाद का माध्यम भी है। हिंदी भाषा का प्राणतत्व है। शब्द ही संसार पर शासन करते हैं। एक-एक शब्द को आप ठीक से जानते हैं तो ये कामधेनु गाय की तरह होते हैं। निराश, हताश, आरंभ, प्रारंभ जैसे शब्दों की वैज्ञानिकता और तार्किकता को समझाते हुए कहा कि व्यक्ति को वैज्ञानिक और तार्किक दोनों होना चाहिए।
अगला प्रश्न भाषा की तकनीक पर हुआ तो कमलेश ने कहा कि तकनीक के स्तर पर भाषा में समस्या कतई नहीं है, लेकिन आप तकनीक से दूर नहीं हो सकते। तकनीक का अवश्य सहारा लीजिए, क्योंकि जो बदलाव आज के दौर में आए हैं, उन्हें बदला नहीं जा सकता। किंताबें हिंदी में बिक रही हैं। बस बाजार की मांग क्या है, ये समझना होगा। हमें पाठक को भी समझना होगा। आप क्या कहना चाहते हैं और किसके लिए कहना चाहते हैं ये भी समझना होगा। भगवंत अनमोल ने कमलेश कमल की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लेखक भी शिक्षक होते हैं। वह सरल भाषा में गंभीर साहित्य लिखते हैं। उन्हें पाठकों के मन की बात तो समझनी ही पड़ेगी।
चाय सी मोहब्बत से बाप की कविता तक
पारितोष त्रिपाठी ने श्रोताओं के मन को समझा और उसी के अनुसार अपनी कविताएं सुनाईं। अपनी कृति 'चाय सी मोहब्बत' की पंक्तियों से लोगों को आनंदित किया। 'तू क्यों डरती है बदनामी से तुझे बस दोस्त बताया करता हूं...', 'तुम मेरी सलामती की दुआ न करो...' के बाद बिहार चुनाव पर केंद्रित कविता 'वही लाता है बाढ़ फिर वही नाव लेकर आता है...' सुनाया तो लोग ठहाके लगाने लगे। इसके बाद- 'सुनो कि देखा कल उसे तकिया खरीदते हुए...' से आज के युवाओं की दशा व्यक्त की। 'बारिश में छत टपकती है उसकी जो घर आपके बनाता है.'' से श्रमिकों के हालात के साथ समाज की विडंबना पर व्यंग्य किया। पिता पर कविता 'जब बाप समझ में आ जाए तब तक वो रहता नहीं ' सुनाकर अपने विचारों को विराम दिया।

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