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    'ईवीएम नहीं बैलेट से हों चुनाव', मायावती ने SIR की डेट बढ़ाने की मांग करते हुए दिया सुझाव

    Updated: Tue, 09 Dec 2025 07:16 PM (IST)

    बसपा प्रमुख मायावती ने ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका है और चुनाव आयोग को इस पर ध्या ...और पढ़ें

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    मायावती ने SIR की डेट बढ़ाने की उठाई मांग।

    राज्य ब्यूरो, लखनऊ। संसद में चुनाव सुधार पर चर्चा के बीच बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के बजाय बैलेट पेपर से मतदान कराने की मांग उठाई है। मायावती ने मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की समय सीमा बढ़ाने और चुनावों में आपराधिक इतिहास छिपाने की स्थिति में पार्टी के बजाय संबंधित प्रत्याशी को जवाबदेह बनाए जाने का भी सुझाव दिया है।

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    बसपा सुप्रीमो ने मंगलवार एक्स पर लिखा कि बसपा, एसआईआर के विरोध में नहीं है, परंतु मतदाता सूची में नाम भरने की प्रक्रिया के लिए निर्धारित समय सीमा कम है। इसकी वजह से बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) के ऊपर भी काफी दबाव है और कई अपनी जान भी गवां चुके हैं।

    जल्दबाजी में अनेकों ऐसे गरीब वैध मतदाताओं के नाम रह जाएंगे, जो काम के लिए बाहर गए हैं। ऐसे में वर्तमान समय सीमा को बढ़ाकर उचित समय दिया जाना चाहिए। उन्होंने लिखा कि चुनाव आयोग का निर्देश है कि आपराधिक इतिहास वाले प्रत्याशियों को हलफनामे में इसका पूरा ब्योरा देना होगा।

    वहीं संबंधित राजनीतिक दल को अपने स्तर से भी यह सूचना राष्ट्रीय अखबारों में प्रकाशित करनी होगी। पार्टी का कहना है कि कई बार टिकट लेने वाले व्यक्ति अपना आपराधिक इतिहास पार्टी को नहीं बताते हैं।

    ऐसे में औपचारिकताओं की जिम्मेदारी पार्टी के बजाय संबंधित प्रत्याशी पर डालनी चाहिए और तथ्य छिपाने की स्थिति में कानूनी जवाबदेही और जिम्मेदारी भी उसकी ही होनी चाहिए।

    बसपा सुप्रीमो ने आगे लिखा कि ईवीएम पर उठ रहे सवालों के चलते अब विश्वास पैदा करने के लिए ईवीएम द्वारा वोट डलवाने की जगह पुनः बैलेट पेपर से ही वोट डलवाने की प्रक्रिया लागू की जाए।

    ऐसा यदि अभी नहीं हो सकता तो कम से कम वीवीपैट के डब्बे में जो वोट डालते समय पर्ची गिरती है, उन सभी पर्चियों की गिनती सभी बूथों में करके ईवीएम के वोटों से मिलान किया जाए।

    इसमें ज्यादा समय लगने का तर्क बिलकुल भी उचित नहीं, क्याेंकि अगर सिर्फ कुछ और घंटे गिनती में लग जाते हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिये, जबकि वोट डालने की चुनाव प्रक्रिया महीनों चलती है।