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    बिहार चुनाव के रिजल्ट के बाद दोहरी रणनीति पर काम करने में जुटी सपा, अखिलेश की पार्टी के अंदर क्या चल रहा है? 

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 06:57 PM (IST)

    समाजवादी पार्टी (सपा) 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए दोहरी रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी 2024 के लोकसभा चुनावों में मिली बढ़त को आगे बढ़ाना चाहती है। इसके लिए मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण पर जोर दिया जा रहा है और बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए के नारे को आगे बढ़ा रहे हैं और भाजपा पर छल से चुनाव जीतने का आरोप लगा रहे हैं।

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    दिलीप शर्मा, लखनऊ। बिहार विधानसभा चुनाव में आए अप्रत्याशित परिणामों के बाद वर्ष 2027 में होने वाले प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए सपा ने दोहरी रणनीति के सहारे बिसात बिछाना शुरू कर दिया है। पार्टी वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों की बढ़त को अगले विधानसभा चुनाव और आगे बढ़ाना चाहती है।

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    लोकसभा चुनाव में विपक्ष का संविधान और आरक्षण पर खतरे का नैरेटिव, सपा की जीत की बड़ी वजह साबित हुआ था। पार्टी को अब बड़ा मुद्दा बनने की वही क्षमता मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के विरोध में नजर आ रही है। पार्टी रणनीति के तहत स्थानीय स्तर पर अपने मतदाताओं के नामों की मतदाता सूची में बनाए रखने की कोशिश है।

    इसके लिए बूथ स्तर पर पीडीए प्रहरी बनाए गए हैं। पार्टी नेताओं और जनप्रतिनिधियों को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे अपने मतदाताओं के नाम जुड़वाएं और पात्रों के नाम न काटने दें। दूसरी ओर इसे बड़े चुनावी मुद्दे के रूप में जनता के बीच गढ़ने का प्रयास हो रहा है और बिहार चुनाव परिणाम के सहारे भाजपा पर लगातार हमला किया जा रहा है।

    वर्ष 2017 में उप्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली सपा को वर्ष 2017 में भाजपा के हाथों के करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 2022 में भी पार्टी सत्ता वापस पाने में नाकाम रहीं थी और उसके 111 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी।

    इस बीच वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावाें में भी सपा को प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा था, परंतु वर्ष 2024 के लोकसभा में सपा ने 37 सीटों पर जीत हासिल कर भाजपा को तगड़ा झटका दिया था। उस चुनाव में सपा ने अपने पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) को नारे को आजमाया था और वर्ष 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए इसी रणनीति काे आगे बढ़ाया जा रहा है।

    इसके साथ सपा प्रमुख अखिलेश यादव हर वर्ग को साधने के लिए पीडीए की रोज नई परिभाषाएं गढ़ रहे हैं और युवाओं को जोड़ने के लिए विजन इंडिया की मुहिम भी छेड़ दी गई है। वहीं पार्टी, बिहार चुनाव में एनडीए की हार की उम्मीद लगाए थी। सपा ने बिहार में चुनाव नहीं लड़ा था, परंतु पार्टी मुखिया ने महागठबंधन के पक्ष में 25 जनसभाएं की थीं।

    पार्टी का मानना था कि बिहार में भाजपा की हार से यूपी में सपा के पक्ष में माहौल बनेगा, अब विपरीत परिणाम आने पर रणनीति में थोड़ा बदलाव किया जा रहा है। पार्टी एसआइआर और भाजपा द्वारा छल से चुनाव जीतने के मुद्दे को वर्ष 2027 के चुनावों के लिए अहम मान रही है।

    इसी रणनीति के तहत सपा प्रमुख लगातार इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि भाजपा वर्ष 2027 के चुनावों में बेईमानी की तैयारी में जुटी है। आशंका जताई थी कि यदि किसी का नाम सूची से कट गया तो हो सकता है आगे उनको योजनाओं का लाभ भी न मिले।

    दूसरी तरफ पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं को एसआइआर के दौरान काटे जाने वाले एक-एक नाम का रिकार्ड रखने को कहा गया है, जिससे गलत कार्रवाई होने की सूरत में उदाहरण और सबूतों के साथ मुद्दे के मजबूत किया जा सके। हालांकि भाजपा और एनडीए गठबंधन भी जिस तरह से चुनावी तैयारी में जुटा है, वैसी स्थिति में सपा की रणनीति कितनी कामयाब होगी यह तो वर्ष 2027 में ही सामने आएगा।