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    मिलेट से मेडिसिन तक 197 शोध बदलेंगे खेती और सेहत की तस्वीर, 18 करोड़ की शोध परियोजनाओं को मंजूरी

    Updated: Wed, 08 Oct 2025 02:00 AM (IST)

    उत्तर प्रदेश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने 197 शोध परियोजनाओं को 18 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। इन परियोजनाओं में कृषि स्वास्थ्य पर्यावरण और उद्योग जैसे क्षेत्र शामिल हैं। कृषि क्षेत्र में मिलेट फसलों और गन्ना उत्पादन में सुधार पर जोर दिया जाएगा। स्वास्थ्य क्षेत्र में कैंसर और हड्डी सर्जरी में सुधार के लिए शोध किए जाएंगे। इन शोधों से राज्य में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

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    मिलेट से मेडिसिन तक 197 शोध बदलेंगे खेती और सेहत की तस्वीर

    विवेक राव, लखनऊ। उत्तर प्रदेश अब सिर्फ परंपरागत खेती या इलाज का केंद्र नहीं रहेगा, बल्कि नवाचारों की प्रयोगशाला बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (सीएसटी-यूपी) ने शोध और विकास प्रोत्साहन मद के अंतर्गत 197 शोध परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिन पर करीब 18 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इन परियोजनाओं में कृषि, स्वास्थ्य, पर्यावरण और उद्योग जैसे क्षेत्र शामिल हैं, जिनसे आने वाले वर्षों में राज्य की खेती, सेहत और तकनीकी क्षमता में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।

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    शोध प्रस्तावों में सबसे अधिक कृषि, बायोटेक्नोलाजी क्षेत्र से 30, जबकि मेडिकल और इंजीनियरिंग से 24-24 केमिकल साइंस में 19, पर्यावरण विज्ञान में 21, फार्मा में सात, फिजिकल साइंस में 20, सूचना प्रौद्योगिकी में 18 शोध परियोजनाओं को स्वीकृति मिली है। इसमें कृषि और संबद्ध क्षेत्रों से जुड़े कई प्रोजेक्ट किसानों की आय और उत्पादन क्षमता को सीधे प्रभावित करेंगे।

    महा योगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, गोरखपुर के डा. विमल कुमार दुबे मिलेट फसलों में पाए जाने वाले एंडोफाइटिक बैक्टीरिया की विविधता पर शोध करेंगे, जिससे सूखा और कीट-प्रतिरोधी मिलेट विकसित करने की दिशा में नई राह खुलेगी। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय अयोध्या के डा. कमल रवि शर्मा मिर्च की फसलों को थ्रिप्स कीट से बचाने की टिकाऊ रणनीति तैयार करेंगे।

    भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ की डा. श्वेता सिंह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित तकनीक से गन्ने की किस्मों में वायरस से होने वाली गिरावट का आकलन करेंगी। फर्रुखाबाद के डा. रंजीत यादव प्राकृतिक रंगों के विकास पर काम करेंगे, जिससे उपभोक्ताओं और न्यूट्रास्यूटिकल उद्योग को सुरक्षित विकल्प मिलेंगे।

    डीएवी कालेज कानपुर के डा. अमित रघुवंशी फिंगर मिलेट की फफूंद जनित बीमारियों से सुरक्षा के लिए शोध कर रहे हैं, जो भविष्य की खाद्य सुरक्षा से सीधे जुड़ा है। झांसी की डा. शुभा त्रिवेदी मशरूम उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए एग्रो-रेजिड्यू के उपयोग की संभावनाएं तलाशेंगी।

    इन शोधों से किसानों की आय बढ़ाने, रासायनिक निर्भरता घटाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में बड़ी मदद मिलेगी। वहीं, स्वास्थ्य क्षेत्र में केजीएमयू लखनऊ के चिकित्सक कैंसर रेडिएशन से क्रोमोजोम पर पड़ने वाले असर, गर्भवती महिलाओं और नवजातों के मेटाबालिक प्रोफाइल और हड्डी सर्जरी के बाद कठोरता के बायोमार्कर पर अध्ययन करेंगे।

    डाॅ. अमिया अग्रवाल नई थ्री डी प्लेट प्रणाली विकसित कर रहे हैं, जिससे चेहरे और जबड़े की सर्जरी में रिकवरी और सटीकता दोनों बढ़ेंगी। परिषद के अनुसार प्रत्येक शोध परियोजना पर औसतन 15 से 16 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे और इन्हें दो से तीन वर्षों में पूरा किया जाएगा।

    इन शोधों से अकादमिक जगत में प्रगति के साथ-साथ कृषि उत्पादन, औद्योगिक उत्पादकता और जनस्वास्थ्य में भी ठोस सुधार देखने को मिलेगा। इन नवाचारों का असर आम जनता तक सीधे पहुंचेगा।