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    UP Politics: वंचितों के साथ को हाथी से साइकिल की रेस, सपा की बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी

    Updated: Wed, 08 Oct 2025 07:07 AM (IST)

    विधानसभा चुनाव से पहले सपा बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। कांशीराम परिनिर्वाण दिवस पर सपा राजधानी से जिलों तक कार्यक्रम आयोजित करेगी। सपा डॉ. आंबेडकर के बाद अब कांशीराम के नाम का सहारा ले रही है। प्रदेश में वंचित वर्ग की 21% आबादी है जिस पर सपा की नजर है। अखिलेश यादव लगातार कांशीराम का उल्लेख कर रहे हैं।

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    वंचितों के साथ को हाथी से साइकिल की रेस

    दिलीप शर्मा, लखनऊ। विधानसभा चुनाव भले ही दूर है, परंतु जातीय गोलबंदी के लिए वंचित वर्ग का साथ पाने की जमीन अभी से तैयार हो रही है। भाजपा और कांग्रेस तो इस दौड़ में हैं ही, कांशीराम परिनिर्वाण दिवस पर हाथी (बसपा) और साइकिल (सपा) में रेस चल रही है।

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    सपा की कोशिश बसपा का कोर वोट बैंक कहे जाने वंचित वर्ग में बड़ी सेंध लगाने की है। डा. बीआर आंबेडकर के सहारे मतदाताओं में पैठ बनाने को पसीना तो पहले ही बहाया जा रहा था, अब बसपा के संस्थापक कांशीराम के नाम के सहारे भी बढ़त बनाने का दांव चला गया है।

    नौ अक्टूबर को जहां बसपा द्वारा अपने संस्थापक के परिनिर्वाण दिवस पर बड़ा आयोजन करने जा रही है, वही सपा भी राजधानी से लेकर जिलों तक में उनको श्रद्धांजलि देगी।

    प्रदेश में वंचित (अनुसूचित जाति) वर्ग की 21 प्रतिशत से ज्यादा आबादी है। लगभग 300 विधानसभा सीटों पर इन मतदाताओं का प्रभाव माना जाता है। किसी समय कांग्रेस का साथ दिखने वाला यह वर्ग, वर्ष 1984 के बहुजन आंदोलन के बाद कांशीराम के साथ जुड़ा।

    जब मायावती आगे बढ़ीं तो यह वर्ग बसपा का कोर वोट बैंक कहलाने लगा। मायावती को चार बार मुख्यमंत्री बनाने के पीछे इसी एकतरफा वोट को बड़ी वजह माना जाता है। हालांकि, वर्ष 2012 में बसपा की सत्ता जाने और वर्ष 2014 में मोदी लहर के बाद स्थिति बदली है।

    पिछले कई चुनावों में इस वर्ग का वोट बंटता रहा है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा और उसके गठबंधन ने संविधान और आरक्षण के खतरे में होने का नारा बुलंद किया था। सपा ने डा. आंबेडकर, कांशीराम सहित अन्य महापुरुषों के सहारे पैठ बनाने की कोशिश की।

    उस चुनाव में सपा को 37 सीटों पर जीत मिली। सपा पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) के नारे के साथ इसे दोहराना चाहती है। इसी रणनीति के तहत आंबेडकर जयंती पर जहां सात दिनों का आयोजन किया गया था, वहीं कांशीराम जयंती पर भी बसपा के समानांतर खड़ा होने की कोशिश की गई।

    सपा प्रमुख अखिलेश यादव लगातार कांशीराम का उल्लेखकर वंचितों की नब्ज थामने के प्रयास में जुटे हैं। अब कांशीराम परिनिर्वाण दिवस पर भी यही रणनीति अपनाई गई।

    गुरुवार को पार्टी मुख्यालय पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव मौजूद रहेंगे। जिलों में भी पार्टी के सभी जनप्रतिनिधियों और प्रमुख नेताओं को मौजूद रहने और अधिक से अधिक वंचित वर्ग के लोगों को जोड़ने के निर्देश दिए गए हैं।

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