पीएचसी-सीएचसी तो छोड़िए, यूपी में जिला अस्पतालों में नहीं हैं वेंटिलेटर; देखिए किसे जिले का कैसा है हाल
उत्तर प्रदेश के प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी/सीएचसी) में वेंटिलेटर की भारी कमी है, जिससे मरीजों को निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। कई केंद्रों पर अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे जैसी बुनियादी जांचें भी उपलब्ध नहीं हैं। स्टाफ की कमी से स्थिति और भी गंभीर है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से इस बारे में रिपोर्ट मांगी है, क्योंकि कई जिलों में वेंटिलेटर की सुविधा न होने से मरीजों को लखनऊ रेफर किया जाता है, जिससे उनकी जान का खतरा बना रहता है।

जागरण टीम, लखनऊ। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) के साथ जिला अस्पतालों में भी वेंटिलेटर नहीं है, जो स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे में एक गंभीर समस्या को उजागर करता है। यह दिक्कत खासकर उन क्षेत्रों में अधिक है, जहां मरीज पूरी तरह से पीएचसी, सीएचसी और जिला अस्पतालों पर ही निर्भर हैं।
स्वास्थ्य केंद्रों पर उपकरण तो छोड़िए, अल्ट्रासाउंड-एक्सरे और खून की कई जांचें भी नहीं हो पा रही हैं। ऐसे में रोगी निजी अस्पताल में इलाज के लिए मजबूर होते हैं। नियमानुसार पीएचसी में न्यूनतम एक चिकित्सा अधिकारी और 12 पैरामेडिकल स्टाफ होने चाहिए, जबकि सीएचसी में अधीक्षक के अतिरिक्त पीडियाट्रिक, गाइनी और जनलर मेडिसिन के एक-एक डाक्टर जरूरी होते हैं।
हालांकि, अधिकतर सीएचसी-पीएचसी डाक्टरों और नर्सिंग एवं पैरामेडिकल स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं, जिसकी वजह से कई बार गंभीर मरीज सही और समय से इलाज न मिलने से दम तोड़ देते हैं। जब राजधानी का यह हाल है तो बाकी जिलों का क्या कहना। 
दरअसल, हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर की उपलब्धता और आवश्यकता के संबंध में राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। कोर्ट ने कोविड-19 महामारी के अनुभव का उल्लेख करते हुए कहा है कि भविष्य में किसी आपात स्थिति में वेंटिलेटर की त्वरित उपलब्धता के लिए राज्य सरकार को ठोस तंत्र विकसित करना चाहिए। 
सबसे बड़े जिला अस्पताल में सिर्फ 28 वेंटिलेटर बेड
प्रदेश के सबसे बड़े जिला अस्पताल बलरामपुर में सिर्फ 28 वेंटिलेटर बेड हैं, जबकि यहां रोजाना पांच हजार मरीजों की ओपीडी होती है और 778 बेड हैं। जरूरत के मुताबिक, यहां आइसीयू में कम से कम 50 वेंटिलेटर बेड होने चाहिए। वहीं, सिविल अस्पताल में रोजाना करीब साढ़े तीन हजार रोगियों की ओपीडी होती है, पर यहां 16 वेंटिलेटर बेड हैं। लोकबंधु अस्पताल में सिर्फ 10 आइसीयू बेड हैं। 
रेफरल सेंटर बनकर रह गए सीएचसी-पीएचसी
लखनऊ में शहर और ग्रामीण इलाकों में कुल 84 पीएचसी और 20 सीएचसी हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर केवल रेफरल सेंटर के तौर पर काम कर रहे हैं, क्योंकि वहां मरीजों का ठीक से इलाज नहीं हो पाता। स्टाफ की कमी, सुविधाओं की अनदेखी और डाक्टरों की लापरवाही जैसे कारणों से ये स्वास्थ्य केंद्र मरीजों की जरूरतों को पूरा करने में विफल हो रहे हैं।
कई पीएचसी-सीएचसी पर अल्ट्रासाउंड की मशीनों महीनों से खराब हैं हैं। ऐसे में वेंटिलेटर जैसी सुविधा की उम्मीद करना बेईमानी होगी। बीकेटी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 15-15 लाख रुपये के जांच उपकरणों पर धूल जम गई है। कारण है कि यहां चार माह से रिजेंट ही नहीं है।
सीएचसी पर सामान्य एलएफटी, केएफटी, सीबीसी और हार्मोनल प्रोफाइल जैसी खून जांचें ही नहीं हो पा रही हैं। सीएचसी अधीक्षक डा. जेपी सिंह ने बताया चार माह से रिजेंट नहीं है। इसके लिए उच्चाधिकारियों को अवगत कराया गया है। सीएचसी-पीएचसी पर वेंटिलेटर नहीं होता है।
वहीं, सरोजनीनगर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर तो न एक्सरे मशीन है न ही अल्ट्रासाउंड। रेडियोलाजिस्ट न होने के कारण पिछले डेढ़ साल से मरीजों का
अल्ट्रासाउंड नहीं हो पा रहा है। इसी प्रकार मलिहाबाद सीएचसी पर रेडियोलाजिस्ट न होने से अल्ट्रासाउंड की जांच ठप है। वेंटिलेटर नहीं है। रेडियोलाजिस्ट की कमी से इटौंजा सीएचसी पर अल्ट्रासांउड के लिए 10 दिन तक प्रतीक्षा करना पड़ता है। गुडंबा सीएचसी पर भी यही हाल है। उतरेटिया, मोहनलालगंज, काकोरी, माल सीएचसी और पीएचसी पर भी वेंटिलेटर तो दूर की बात है, अल्ट्रासाउंड-एक्सरे और खून की जांचें नहीं हो पा रही हैं। 
सीतापुर 
सीएचसी-पीएचसी में सामान्य सुविधाएं हैं, लेकिन वेंटिलेटर नहीं है। जिला अस्पताल के आइसीयू में वेंटिलेटर बेड तो हैं, लेकिन विशेषज्ञ न होने से उपयोग नहीं हो रहा है। कोविड के बाद जिला अस्पताल में 22 वेंटिलेटर लगाए गए थे। टेक्नीशियन को प्रशिक्षण दिलाया गया था, लेकिन विशेषज्ञ डाक्टर न होने से प्रयोग नहीं किया जा रहा है। देखरेख के अभाव में वेंटिलेटर पर धूल जम रही है। ऐसे में गंभीर रूप से बीमार और हादसों में घायल होने वाले रोगियों को जिला अस्पताल से तुरंत लखनऊ रेफर कर दिया जाता है। 
अमेठी 
सड़क दुर्घटना में घायल एवं गंभीर रोग से पीड़ित मरीजों को जिला अस्पताल तो छोड़िए, मेडिकल कालेज में उपचार नहीं मिल पाता है। मेडिकल कालेज में और जिला अस्पताल में कुल 24 वेंटिलेटर स्थापित हैं। चिकित्सक एवं स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण न मिल पाने के चलते वेंटिलेटर की सुविधा मरीजों को नहीं मिल पाती है। 
गोंडा
जिले के 16 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व 55 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है। मेडिकल कालेज से संबद्ध बाबू ईश्वर शरण चिकित्सालय में 40 वेंटिलेटर हैं, लेकिन सब निष्क्रिय स्थिति में हैं। रोगी को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ने पर तुरंत लखनऊ रेफर कर दिया जाता है। कई बार गंभीर स्थिति में मरीज की रास्ते में ही जान चली जाती है। 
लखीमपुर खीरी
सीएचसी-पीएचसी में तो नहीं, लेकिन जिला अस्पताल में 10 वेंटिलेटर बेड हैं। इमरजेंसी में दो वेंटिलेटर बेड हैं। यह कस्बा ओयल है, जो इसके अलावा जिले की 15 सीएचसी व 60 पीएचसी में वेंटिलेटर के अलावा कई अन्य सुविधाओं की दरकार है। ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों को इलाज की काफी दिक्कतें होती हैं। ऐसे में मजबूरन निजी अस्पताल का रूख करना होता है। 
बलरामपुर 
संयुक्त जिला अस्पताल में 21 वेंटिलेटर की व्यवस्था है लेकिन, इसके संचालन के लिए टेक्नीशियन नहीं हैं। इसके साथ ही 90 कंसंट्रेटर जिला मेमोरियल अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है। नवजात व जननी को समुचित स्वास्थ्य सेवाएं देने में जिला महिला अस्पताल प्रशासन की सांसें फूल रही हैं। कहने के लिए तो यहां सिक न्यू बार्न केयर यूनिट है, लेकिन आक्सीजन की आपूर्ति सिलिंडर के भरोसे है। वार्डों में पाइपलाइन के माध्यम से आक्सीजन आपूर्ति की योजना अभी अधर में है। जटिल प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की हालत गंभीर होने पर उखड़ती सांसों को वेंटिलेटर की संजीवनी नहीं मिलती है। 
हरदोई
मेडिकल कालेज अस्पताल में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान पीएम केयर फंड से करीब 69 वेंटिलेटर खरीदे गए थे। कोरोना काल में यह वेंटिलेटर मरीजों को जीवनदान देते रहे, लेकिन इसके बाद सिर्फ शो-पीस बनकर रह गए हैं। कुछ वेंटिलेटर सर्जिकल वार्ड तो कुछ इमरजेंसी लगे हैं, लेकिन चलाने वाले नहीं नहीं हैं। कई वेंटिलेटर तो निष्क्रिय होने के चलते खराब भी हो गए। यहां गंभीर मरीजों का इलाज सिर्फ निजी अस्पताल के भरोसे है। 
श्रावस्ती
कोविड के दौरान और बाद में कुल संयुक्त जिला चिकित्सालय भिनगा को आठ वेंटीलेटर बेड मिले। वेंटीलेटर अस्पताल में उपलब्ध हैं, लेकिन वेंटीलेटर यूनिट नहीं है। इससे यह क्रियाशील नहीं हैं। वेंटीलेटर चलाने वाला स्टाफ भी नहीं हैं। गंभीर मरीजों को वेंटीलेटर के लिए बहराइच या लखनऊ रेफर किया जाता है।
अयोध्या 
जिले के अस्पतालों में कुल 151 वेंटीलेटर उपलब्ध हैं। राजर्षि दशरथ मेडिकल कालेज में सबसे अधिक 119 वेंटीलेटर बेड उपलब्ध हैं। जिला अस्पताल में आठ, महिला अस्पताल और श्रीराम अस्पताल में 12-12 वेंटीलेटर हैं। इसमें से मेडिकल कालेज के विभिन्न विभागों में 50 बेड पर रोगियों को यह सुविधा मिल रही है, लेकिन 12 क्रियाशील हैं। जिला एवं महिला अस्पताल में वेंटिलेटर बेड नहीं हैं। 
सुलतानपुर
मेडिकल कालेज में कुल 28 वेंटिलेटर सक्रिय मोड में हैं। इनमें से आठ गंभीर रूप से बीमार बच्चों को जरूरत पड़ने पर उपलब्ध कराए जाते हैं। आइसीयू में पांच-पांच बेड के दोनों वार्डों में दो-दो वेंटिलेटर लगाए गए हैं, शेष इमरजेंसी में हैं। संचालित करने के लिए दो टेक्नीशियन रखे गए हैं। चिकित्सकों को वेंटिलेटर चलाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। 
रायबरेली
जिले में कोरोना काल में वेंटिलेटर की खरीद की गई थी। कोरोना काल के बाद वेंटिलेटर जिला अस्पताल के स्टोर में रखे गए। उच्चाधिकारियों ने आइसीयू वार्ड बनाने के निर्देश दिए। इसके बद जिला अस्पताल में आठ बेड का आइसीयू वार्ड बनाकर आठ वेंटिलेटर लगाए गए।
इनके संचालन और आइसीयू में मरीजों की देखभाल के लिए दो चिकित्सक और चार नर्सिंग स्टाफ को राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में प्रशिक्षण के लिए 22 जुलाई को भेजा गया था। तीन माह का प्रशिक्षण 22 अक्टूबर को पूरा हुआ। अब जिला अस्पताल में आइसीयू की सुविधा मरीजों को मिलने लगी है।

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