नियमावली बने तो यूपी वन विभाग में भर्ती हों वन्यजीव चिकित्सक, इस वजह से हो रही देरी
उत्तर प्रदेश में वन्यजीव चिकित्सकों की नियमावली न बनने से 30 पदों पर भर्ती अटकी है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामलों में राहत कार्य प्रभावित हो रहा है। वर्तमान में केवल 11 चिकित्सक ही उपलब्ध हैं, जबकि नए काडर में कई पद खाली हैं। संविदा और आउटसोर्स डॉक्टरों को वरीयता देने के मुद्दे पर नियमावली अटकी हुई है।

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। अब तक नियमावली न बनने से 30 वन्यजीव चिकित्सकों की भर्तियां नहीं हो पा रही हैं। आए दिन मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं में राहत व बचाव कार्य के लिए वन्यजीव चिकित्सकों की जरूरत पड़ती है लेकिन प्रदेश में एक नियमित सहित 11 चिकित्सक ही हैं।
चार जून को अलग बनाए गए वन्यजीव चिकित्सकों के काडर में एक-एक निदेशक व अपर निदेशक, दो मुख्य वन्यजीव चिकित्साधिकारी, छह उप मुख्य वन्यजीव चिकित्साधिकारी व 20 वन्यजीव चिकित्साधिकारियों के पद हैं। वन्यजीव चिकित्साधिकारियों के पदों पर सीधी भर्ती से नियुक्तियां होनी हैं लेकिन अब तक नियमावली न बनने से भर्तियां अटकी हुईं हैं।
नियुक्तियां, यूपी लोक सेवा आयोग के माध्यम से होनी हैं। अभी लखनऊ चिड़ियाघर में एक चिकित्सक को छोड़ कहीं भी नियमित डाक्टर नहीं हैं। गोरखपुर में एक डाक्टर पशुपालन विभाग से प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं।
इसके अलावा कानपुर चिड़ियाघर व इटावा लायन सफारी में दो-दो, दुधवा टाइगर रिजर्व, पीलीभीत टाइगर रिजर्व, कतर्नियाघाट, व जटायू संरक्षण केंद्र में एक-एक डाक्टर संविदा/आउटसोर्स पर तैनात हैं।
योग्य डाक्टरों की कमी के कारण आपात परिस्थितियों में तत्काल डाक्टर मौके पर पहुंचकर राहत व बचाव कार्य नहीं कर पाते हैं। वन्यजीवों की सेहत पर भी इसका असर पड़ रहा है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रमुख सचिव अनिल कुमार का कहना है कि नियमावली बनाने की चल रही प्रक्रिया के तहत संबंधित विभागों से परामर्श लिया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि नियमावली में सबसे बड़ा पेंच संविदा व आउटसोर्स डाक्टरों का यह फंसा हुआ है कि उन्हें भर्तियों में कैसे वरीयता दी जाए?

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