चालीस करोड़ के घोटाले में पकड़ा गया कालीचरण, बीमा कंपनी का जिला प्रबंधक अभी भी फरार, अब तक 19 गिरफ्तार
महोबा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 40 करोड़ के घोटाले में एक और गिरफ्तारी हुई है। कुलपहाड़ पुलिस ने हमीरपुर निवासी कालीचरण को गिरफ्तार किया, जो ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, महोबा। जिले में वन विभाग, नदियों, पहाड़ों सहित चकमार्ग की जमीन पर फर्जी तरीके से प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत 40 करोड़ का चूना लगाने के मामले में गिरफ्तारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सोमवार को थाना कुलपहाड़ में दर्ज मुकदमे में वांछित चल रहे आरोपित कालीचरण पुत्र गयादीन निवासी ग्राम पहाड़ीवीर थाना राठ हमीरपुर को गोंदी चौराहा कस्बा कुलपहाड़ के पास से गिरफ्तार किया गया।
प्रभारी निरीक्षक थाना कुलपहाड़ विनोद कुमार सिंह ने बताया कि आरोपित कालीचरण ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में धोखाधड़ी कर लाभ लेने के उद्देश्य से अपने उपयोग में आने वाले मोबाइल नंबर का प्रयोग करते हुए फर्जी आवेदन किया था।
मोबाइल भी बरामद किया गया है। अब तक इस मामले में महिला समेत पुलिस 19 आरोपितों को जेल भेज चुकी है, लेकिन अब तक इफको टोकियो बीमा कंपनी के जिला प्रबंधक निखिल को गिरफ्तार नहीं किया जा सका। वहीं, इस मामले में उपनदेशक कृषि रामसजीवन का कहना है कि अभी जांच चल रही है।
जिले में हुए फसल बीमा घोटाले में शहर कोतवाली, चरखारी, कुलपहाड़, अजनर व थाना पनवाड़ी में कुल छह मुकदमे दर्ज किए गए हैं। 27 अगस्त को बीमा कंपनी इफको टोकयो के जिला प्रबंधक निखिल सहित 26 नामजद व अन्य अज्ञात पर मुकदमा शहर कोतवाली में दर्ज हुआ था।
कृषि विभाग के बीमा पटल सहायक अतुलेंद्र विक्रम को भी निलंबित किया जा चुका है। 24 सितंबर को जिला सत्र न्यायालय ने पांच आरोपितों की जमानत भी खारिज कर दी थी।
इस तरह किया गया फर्जीवाड़ा
फसल बीमा में फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों ने कंपनी से सांठगांठ कर ऐसे गांवों को चुना, जहां चकबंदी प्रक्रिया चल रही है। बीमा करने के लिए पोर्टल (प्रधानमंत्री फसल बीमा पोर्टल) पर भू-स्वामी व बटाईदार अपना बीमा करा सकता है।
चकबंदी प्रक्रिया वाले गांवों का डाटा प्रदर्शित नहीं होता, जिससे कोई भी 10 रुपये के स्टांप पर बटाईनामा बनवाकर जमीन पर बीमा करा सकता है। इसमें वह जो जानकारी भर देता है वह सही मानी जाती है। खाली स्टांप भी इसमें लगाया जा सकता है। उसी के कागजातों के आधार पर बीमा होता है।
इसकी जांच बीमा कंपनी ही करती है। इसके बाद व्यक्ति टोल फ्री नंबर पर फोन कर नुकसान की जानकारी देता है। इसकी जांच भी बीमा कंपनी करती है और क्लेम पास कर भुगतान दे देती है। जाहिर है कहीं न कहीं बीमा कंपनी के लोग भी इसमें शामिल है। किसी भी मामले का सत्यापन नहीं किया गया। यदि सत्यापन कराया जाता तो शायद फर्जी भुगतान होने से बच जाता।

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