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    Govardhan Puja: दूध की धार से अभिषेक, अन्नकूट का भाेग; गिरिराज महाराज मंदिर में उमड़ा आस्था का सैलाब

    Updated: Wed, 22 Oct 2025 11:14 PM (IST)

    गोवर्धन में अन्नकूट महोत्सव में गिरिराज महाराज को अन्न का पर्वत समर्पित किया गया। दूध की धारों से अभिषेक हुआ, जिससे भक्ति और भव्यता का संगम दिखा। लाखों भक्तों ने परिक्रमा की और अन्नकूट का भोग लगाया। तीन दिनों तक गोवर्धन भक्ति और उत्साह से सराबोर रहा, जहाँ हर दिशा में 'राधे राधे' के जयघोष गूंजते रहे।

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    गिरिराज महाराज के दर्शन को उमड़ी आस्था। जागरण

    रसिक शर्मा, जागरण, गोवर्धन। ‘लै कै ग्वाल बाल लाल गिरिवर पुजाय लियौ... तोपे चढ़ै दूध की धार...’ द्वापर की यह ध्वनि बुधवार को फिर ब्रजभूमि में गूंजी। पर्वतराज गोवर्धन को अन्न का पर्वत समर्पित हुआ तो दूध की धारों से गिरिराज महाराज का अभिषेक होता रहा। सिर पर छबरिया रखकर भक्तों ने जब गिरिराजजी को अन्नकूट प्रसाद समर्पित किया, तो भक्ति और भव्यता एकाकार हो उठी। गोवर्धन के मुकुट मुखारविंद से लेकर आन्यौर, जतीपुरा, राधाकुंड, बरसाना और नंदगांव तक श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा। देशी परिधान से संवरी विदेशी संस्कृति, कान्हा की भक्ति से सराबोर हुई तो गिरिराजजी की भूमि मानो विश्व का मानचित्र बन गई।

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    गिरिराज महाराज को समर्पित हुआ अन्न का पर्वत, गोवर्धन महाराज पर अनवरत चली दूध की धार

     

    धार्मिक पुस्तकों में उल्लेख है कि आज ही के दिन द्वापरयुग में श्रीकृष्ण ने इंद्र पूजा का विरोध कर गिरिराज महाराज की पूजा आरंभ की थी। ग्वालों की टोली के संग उन्होंने सप्तकोसीय परिक्रमा की और अन्नकूट भोग समर्पित किया। तबसे यह परंपरा आज तक निभाई जा रही है। कहा जाता है कि उस समय इतना दूध चढ़ाया गया कि ब्रज की गलियां दूध से भर गई थीं। बुधवार को वही दृश्य फिर जीवंत हो उठा। गिरिराज की शिलाओं पर सुबह से शुरू हुई दूध की धार देर शाम तक नहीं थमीं।

     

    श्रद्धा, संस्कृति और समर्पण का अद्भुत संगम बना गोवर्धन

     


    बुधवार भोर से ही गिरिराज तलहटी में भक्तों की कतारें लग गईं। मुकुट मुखारविंद मंदिर, दानघाटी, हरदेव मंदिर और गौड़ीय मठों से छबरिया लेकर निकले भक्तों ने गिरिराज महाराज को अन्नकूट समर्पित किया। महिलाएं भी पारंपरिक परिधानों में सिर पर छबरिया रख पूजन में सम्मिलित हुईं। भजन-कीर्तन की मधुर ध्वनियों और ‘गिरिराज महाराज की जय’ के जयकारों से सात कोस की परिक्रमा मार्ग गूंज उठा।

     

     72 घंटे तक उमड़ती रही आस्था, 25 घंटे बनी रही मानव श्रंखला, करीब 30 लाख लोगों ने पूजे गोवर्धन

     

    गिरिराज प्रभु के आंगन में भारतीय भक्ति में विदेशी संस्कृति का संगम देखने को मिला। भारत की पारंपरिक साड़ियों और धोती-कुर्तों में सजे विदेशी श्रद्धालु भी सात कोस वारे गिरिराज का गुणगान करते दिखाई दिए। गोवर्धन इस दिन सचमुच मिनी विश्व बन गया था। जहां भाषा, देश और संस्कृति सब एक ही नाम में लीन थे, श्री गिरिराज धरण की जय।


    यूं सजा अन्नकूट

    अन्नकूट भोग में सैकड़ों प्रकार के पकवान सजाए गए। पूड़ी, कचौड़ी, सब्जियां, कढ़ी, चावल, मिष्ठान, पूआ, माखन, मिश्री, मठरी, खीर, रसगुल्ला, रबड़ी, पापड़ और अचार तक। भक्तों ने अपने घरों से लाए पकवानों को गिरिराजजी को अर्पित किया और प्रसाद ग्रहण किया।


    गिरिराज मुकुट मुखारविंद मंदिर की ओर से रिसीवर कपिल चतुर्वेदी के नेतृत्व में अन्नकूट शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में कृष्ण-बलराम के स्वरूपों के साथ मानसी गंगा की परिक्रमा करते हुए छप्पन भोग अर्पित किए गए। परिक्रमा मार्ग में तिल भर जगह नहीं बची थी। भक्त भजनों पर झूमते हुए गिरिराज परिक्रमा करते रहे। राधाकुंड और आन्यौर के प्राचीन अन्नकूट स्थलों पर ब्रजवासी परंपरागत पकवानों से भरी थालियां लेकर पहुंचे। हरदेव मंदिर पर गोस्वामी समाज और दानघाटी मंदिर सेवायतों ने भी अन्नकूट भोग अर्पित किया।


    इतिहास के झरोखे से


    पौराणिक मान्यता है कि जब इंद्र ने ब्रज भूमि पर मेघों को प्रलय वर्षा का आदेश दिया, तब सात वर्ष के कन्हैया ने सात कोस लंबे गिरिराज को अपनी कनिष्ठा पर उठाकर सात दिन-सात रात तक ब्रजवासियों की रक्षा की। तभी से गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव का आरंभ हुआ। दीपावली के अगले दिन से शुरू होने वाली यह परंपरा आज भी ब्रज की पहचान बनी हुई है।गोवर्धन में बुधवार का दिन न केवल भक्ति और परंपरा का प्रतीक बना, बल्कि उसने फिर साबित किया कि ब्रज में श्रद्धा सिर्फ निभाई नहीं जाती, वह युगों-युगों तक जीवंत रखी जाती है।

     

    तीन दिन तक उमड़ी आस्था

     

    भक्ति की गंगा जब गोवर्धन में बही तो हर दिशा 'राधे राधे' के जयघोष से गूंज उठी। तीन दिन तक गोवर्धन पर्वत की तलहटी भक्ति, उत्साह और आनंद के अद्भुत संगम में डूबी रही। सात कोसीय (21 किमी) परिक्रमा मार्ग पर 24 घंटे तक श्रद्धालुओं की मानव श्रृंखला बनी रही। मृदंग, ढोल, मंजीरों की थाप और हरिनाम संकीर्तन के साथ भक्तों ने गोवर्धन महाराज की परिक्रमा की। सोमवार शाम से शुरू हुआ यह आस्था का प्रवाह बुधवार देर रात तक अनवरत बहता रहा। तीन दिन तक बदलते वक्त के साथ भी गोवर्धन की तस्वीर नहीं बदली। बस बढ़ती रही श्रद्धा, बढ़ता गया उत्साह। देश ही नहीं, विदेशों से आए भक्तों ने गिरिराज महाराज की वंदना की। तलहटी के प्रत्येक कुंड, मंदिर और मार्ग पर श्रद्धा के दीप जगमगाते रहे। हर ओर भक्ति की महक, प्रेम की ऊर्जा और सेवा की भावना बह रही थी। पुलिस और प्रशासन की सतर्कता के बीच तीन दिन तक भक्तों की भीड़ में अनुशासन का अद्भुत उदाहरण देखने को मिला।

    30 लाख भक्तों ने की परिक्रमा


    स्थानीय श्रद्धालुओं के अनुसार, इस वर्ष करीब 30 लाख भक्तों ने गिरिराज महाराज की परिक्रमा की। जब ब्रजभूमि में भक्तों का सैलाब उमड़ा तो स्वयं गिरिराज महाराज की आराधना में आसमान भी दीपों से सज गया। गोवर्धन पूजा महोत्सव ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि जहां भक्ति है, वहां गिरिराजजी हैं, और जहां गिरिराजजी हैं, वहां आनंद का अनंत सागर है।