Janmashtami पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान की आभा ने मोह लिया मन, लाखों श्रद्धालु बने अद्भुत पल के साक्षी, हर ओर गूंजे जयकारे
मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से ब्रज पहुंचे और कान्हा के जन्मोत्सव के साक्षी बने। जन्मस्थान पर विशेष आयोजन हुए जिनमें पंचामृत अभिषेक और पुष्पार्चन शामिल थे। विदेशी भक्त भी इस उत्सव में शामिल हुए और भगवान कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। रात 12 बजे भगवान का अभिषेक किया गया।

विनीत मिश्र, मथुरा। यह कान्हा का ब्रज है। पूरी दुनिया अपने भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन मना रही है, तो ब्रजवासी लाला कौ। लाला के जन्मोत्सव की खुशियां हर सड़क हर गली में तारी हैं। नटवर नागर श्रीकृष्ण के 5252वें जन्मोत्सव का साक्षी बनने लिए शनिवार को लाखों-लाख श्रद्धालु ब्रज में थे। कोई कान्हा में लड्डू गोपाल ढूंढता रहा, कोई बांकेबिहारी।
कोई गोवर्धन पर्वत की छवि देखता रहा, कोई द्वारकाधीश की। यह उनके प्रति अगाध प्रेम ही है कि देश के कोने-कोने से श्रद्धालु इस अद्भुत पल का साक्षी बनने को पहुंचे हैं। दिन भर हर पग रोशनी से लिपटकर दमक रहे जन्मस्थान की ओर बढ़ते रहे और जयघोष गूंजता रहा। रात 12 बजे। लाला का आगमन हुआ तो फिर क्या था, बच्चे -बूढ़ों के साथ ब्रज का कण-कण खुशियों से नहा गया।
शनिवार को कान्हा का 5252वां जन्मोत्सव था। जन्मस्थान से एक दिन पहले ही शोभायात्रा निकाल बधाई दी जाने लगी। शनिवार सुबह साढ़े पांच बजे से आयोजन शुरू हो गए। मंगला आरती के बाद आराध्य का पंचामृत अभिषेक व पुष्पार्चन हुआ। मंगला आरती में उमड़ी भीड़ यह बताने के लिए काफी थी कि आराध्य की झलक श्रद्धालु अपने मन मंदिर में बसा लेना चाहते हैं। दिन चढ़ता रहा और भीड़ बढ़ती रही।
घड़ी की सुई दोपहर के 12 बजा रही थी और जन्मस्थान के अंदर और बाहर श्रद्धालु इतने कि पैर रखने की भी जगह नहीं बची। भागवत भवन में भजन कीर्तन हुए, तो श्रद्धालु कान्हा की आराधना में खो गए। नटवर नागर के प्रति श्रद्धा कितनी है यह थाईलैंड की पद्मावती, मिया और पिचाया से पूछिए। पहली बार जन्माष्टमी पर ब्रज में आई हैं। लहंगा-चोली की वेशभूषा और हाथ में मोरपंख। कुछ हिंदी और कुछ अपनी स्थानीय भाषा में बोलीं, यहां बहुत आनंद आया।
दो दिन से यहीं डेरा डाले हैं। हर बार आने की इच्छा लेकर। बाकी श्रद्धालु जन्मस्थान के गेट पर माथा लगाते रहे, तो फिर इन तीनों ने भी मस्तक झुकाया। पद्मावती का पहले नाम अप्सरा था, तीन साल पहले कृष्ण की भक्ति हुईं, तो नाम पद्मावती रख लिया। हरदोई जिले में कटियारी क्षेत्र के खसारी गांव के लज्जाराम मास्टर की उम्र 70 हो गई, साथी राजपाल सिंह को भी लाए।
पहली बार यहां पहुंचे। जन्मस्थान से कुछ दूर दंडवत हुए और फिर रज माथे से लगाई। बोले, जीवन धन्य हो गया। पूरी जिंदगी जन्माष्टमी पर नहीं आ पाए, अब सौभाग्य मिला। जो आनंद बरस रहा है, दुनिया में नहीं मिलेगा। जन्मस्थान से दूर गली में सुस्ता रहे अलीगंज के राजेश कुमार और उन्नाव के बुधवारी मुल्ला निवासी राजेश कुमार द्विवेदी दो दिन पहले आए।
दोनों रास्ते में मिले, जान-पहचान हुई और फिर दो दिन से साथ घूम रहे। राजेश द्विवेदी 12 वर्ष से जन्माष्टमी पर आते हैं। बोले, यहां सुकून है, इसीलिए इसे तीन लोक से न्यारी नगरी कहा गया है। गांव के नौ साथियों के साथ आए लखीनपुर के रंजीत सिंह नौवीं बार आए हैं। आने की बेहद खुशी है। मुरादाबाद की रीना तीन लड्डू गोपाल की सेवा करती हैं।
तीनों को अलग-अलग टोकरी में लाईं। अपने कान्हा को ब्रज के लाला से मिलाने। बोलीं, इनका भी मन था जन्मोत्सव देखने को तो ले आई। इधर,शाम सात बजे से ही श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में सुगंधित दृव्य का छिड़काव प्रारंभ हुआ। इस बार आपरेशन सिंदूर की झलक भी दिखी। जन्मस्थान की आभा ने मन मोह लिया।
रात 11 बजे जन्मस्थान पर श्री गणेश, नवगृह स्थापना के साथ पूजन प्रारंभ हुआ। घड़़ी की सुई ने 12 बजने का इशारा किया और गूंजने लगे देवकी के लाला के जयकारे। 11.59 बजते ही लाला के प्राकट्य दर्शन के लिए भागवत भवन स्थित युगल सरकार के कपाट बंद हो गए।
12 बजे चलित विग्रह भागवत भवन में रजत कमल पुष्प पर आराध्य को विराजमान किया गया और कामधेनु गाय के प्रतीक से दुग्धाभिषेक प्रारंभ हुआ। कान्हा का अभिषेक हुआ और उधर, लाखों कंठों से जयकारे लगते रहे। रात दो बजे शयन आरती होने तक दर्शन को भीड़ उमड़ती रही।
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